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22.11.10

वो सही तो कहते हैं…….


हम भारतीयों की विश्व में एक पुरानी पहचान रही है और वो है अपने मेहमानों के सम्मान करने का अंदाज, दरअसल हमारे पूर्वजों के द्वारा मेहमानों को भगवान का दर्जा दिया गया है लेकिन आज पूर्वजों द्वारा मिली इस वरासत को हम मिटटी में मिलाते नजर आते हैं विश्व में इतनी बड़ी पहचान के बावजूद जब कोई विदेशी हमें हीन भावना से देखता व अपमानजनक शब्द हमारे प्रति बोलता है तो कस्ट जरुर होता है लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है की वो ऐसा बोलने पे मजबूर है अपने देश से सात समुन्दर पार हमारे सुन्दर से सोने की चिड़िया जैसे देश को नजदीक से देखने की लालसा लिए हमारे धरती पर कदम रखने के बाद उसे क्या मिलता है एक तरफ सम्मान तो दूसरी तरफ छोटी या बड़ी झिझोरी हरकत,ऐसे में लाख सम्मान के साथ हमारे द्वारा की गयी एक अपमानजनक हरकत हमें उसकी नजर में हीन कर देती है और तब जब वो हमें हीन भावना से देखते या अपशब्द बोलते है तो क्या गलत करते है!
कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घिनौनी हरकत देखने को मिली वक्त था शाम का, जगह एक लोकल गाजियाबाद से दिल्ली जाने वाली ट्रेन, मै और मेरा दोस्त दिल्ली जाने के लिए जैसे ही उस बोगी में चढ़े एक खाली सिट देख मेरे दोस्त ने झट से जगह पर कब्ज़ा करते हुए मुझे बैठने के लिए बोला और मै भी बिना कुछ सोचे समझे उस पर कब्ज़ा जमा लेना ही उचित ही समझा…………बैठने के तुरंत बाद जब मैंने अपना सर सामने की तरफ किया की अचानक ही मुझे एक भीड़ सी दिखाई दी अब चुकी भीडो को देख सच्चाई पता लगाने की आदत ने मुझे परेशान करना सुरु कर दिया की आखिर माजरा क्या है की लोग खाली सीटों को झोड्कर एक जगह झुण्ड बना कर क्यों खड़े है अपने दोस्त से इसी विचार विमर्श में लगा था की अचानक आँखों ने हकीकत जानने में सफलता पा ही ली दरअसल उस भीड़ के अन्दर दो विदेशी मेहमान(एक लड़का और एक लड़की) बैठे हुए थे और चारो ओर से अपने देश के कुछ मनचले ब्यक्तित्वा जो अपने आप को काफी समझदार समझाने की कोशिश कर रहे थे घेरे हुए थे जिसमे कुछ तो तेरे नाम अंदाज के बाल रखे थे तो कुछ के जींस फटे हुए थे कुछ ने अपने सर्ट के सारे बटन को जन बुझ कर तोड़ रखा था तो कुछो ने जींस को ऐसे पहना था जिसे देख कर ऐसा लगता था की उन्होंने बटन बंद करने की बजाय फेबिकोल से अपने बदन पर छिपा रखा हो, खैर छोडिये कोई कुछ भी पहने इससे क्या अब आपने तो अंदाजा लगा ही लिया होगा की वो झुण्ड कैसा होगा………………अब इतना सब कुछ देखने के बाद मै तो एक दम से धयान केन्द्रित कर नज़ारे को देखने में लगा था बिच बिच में कुछ आवाजें भी सुनने को मिल रही थी जो इस भाति लग रहा थ की स्कूल में टीचर बच्चो से कल का कम दिया हुआ आज सुन रहे हो जैसे वाट्स योर नेम,कंट्री नेम,योर वर्क,बस इतना ही यही कुछ वाक्य ऐसे थे जो सभी सम्मानित लोग एक के बाद एक करके पूछ रहे थे ………………………….इससे अधिक कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था अब उसका कारन कुछ भी हो सकता है या तो भीड़ को इकट्ठा किये लोग इससे ऊपर कुछ पूछना उचित ही न समझ रहे हो या फिर इससे अधिक आता ही न हो वैसे ब्य्क्तित्वों को देख कर बाद वाला कारन ही ज्यादा कारगर साबित हो रहा था और ये सब भी प्रशन उस विदेशी लड़की से ही किये जा रहे थे बेचारे उस लड़के के तरफ तो कोई देखना भी पसंद नहीं कर था……………..अभी ये चल ही रहा था की अचानक एक तरफ से पानी के बोतल का ढक्कन किसी ने लड़के को ऐसे कैच कराया की शायद उसे इन्डियन क्रिकेट टीम का सदस्य बनाया जाय तो बाऊंड्री से भी किसी बैट्समैन को रन आउट करवाया जा सकता है………………………………खैर डर से परेशान उस लड़की को कुछ देर बाद रहत की सांश मिली जब दो तिन स्टेसन के बाद इन धुरंधरों का स्टेसन आया और ये उतरना सुरु कर दिए खैर इनके उतरते हुए के चीज थोड़ी सी अच्छी लगी इनका उस लड़के को नजरंदाज कर लड़की के हाथ को मिला का बाय कहना अब मकसद क्या था मालूम नहीं………….इतना सब कुछ देखने के बाद अपना क्या अपने को तो सफ़र में ही एक मशाला मिल गया था जिसका अनुभव कर आप लोंगो के सामने परोशने का,की किसी के अनुभव को जानने और पूछने का आदि मै अपने दोस्त से बोल उनके अनुभव को जानने के लिए उनके तरफ बढ़ा मुझे अपने तरफ आते देख वो एक बार फिर से परेशानी झेलने के लिए तैयार होने लगे इतने में मै वहां पहुंचा चूका था और जो कुछ आप लोंगो से पाया है का इस्तेमाल करते व अपने परिचय को देते हुए वहां बैठने अनुमति मांगी बैठने की उनकी संस्तुति आने तक खड़ा देख कर उस लड़के ने झट से बैठने को बोला,अब मै बैठ चूका था शुरुआत उनका नाम जानने से करते हुए पहले उनके देश के बारे में जानने की कोशिश किया फिर अपने देश भारत के बारे में हमेशा अच्छे व सम्मानजनक शब्द सुन शक्ति का एह्शाश करने वाला मै भारत के बारे में झट से उनके विचार को जानने की कोसिस किया तो डरी सहमी हुई लड़की से धीरे से उत्तर मिला भारत तो बेहद सुन्दर है यहा के लोग भी काफी ब्यवहारिक मद्दद्गर व सज्जन है लेकिन……………………लेकिन सुन उत्सुकता से भरकर मैंने तुरंत सवाल दागा लेकिन क्या………..जबाब मिला आपको बुरा लगेगा…….मैंने आश्वासन देते हुए बोला आप कह सकते हो पर उसने बोला कुछ लोंगो के ब्यवहार से इसकी सुन्दरता में कमी दिखती है खैर ये सुन कर कुछ देर के लिए तो मै चुप ही हो गया लेकिन बाद में बिलकुल भी बुरा नहीं लगा अब आप लोंगो कैसा लगा आप जाने लेकिन कोई भी ब्यक्ति वही कहेगा जो उसका अनुभव होगा,इससे आगे सवाल फेंकने का मौका ही नहीं मिला कारन स्टेसन पर ट्रेन खड़ी जो हो चुकी थी! खैर बाहर निकल बस में बैठने के बाद उसका ये शब्द दिमाग में घूमता ही रहा की भारत तो बेहद सुन्दर है यहाँ के लोग भी काफी सज्जन है ब्यवहारिक है मददगार भी है लेकिन कुछ …………… फिर वहां ऐसा प्रतीत हुआ की वो कौन सा गलत कहते है सही तो कहते है, शायद यहाँ पर प्रचलित मुहावरा बिलकुल सटीक ही बैठता है एक मझली पुरे तालाब को गन्दा कर देती है!हमें दुसरो के प्रति किसी भी प्रकार का ब्यवहार करने से पहले ये बात जरुर अपने दिमाग में रखना चाहिए की विदेशों में हमारे भी भाई बहन माँ बाप घुमने व काम धंधा करने जाते है कम से कम अपने लिए न सही उन्हें वहां अच्छा ब्यवहार मिले उनके लिए तो उचित ब्यवहार करना ही चाहिए! हमें कुछ भी करने से पहले यह याद रखना चाहिए कि भारत एक शक्तिशाली और सुन्दर रास्ट्र है और हम सब इसके संतान तथा इसे और इसकी छवि को और चमकाना हम भारतियों का धर्म होने के साथ साथ परम कर्तब्य भी है!जय भारत!

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