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16.11.10

बनारस और हरिद्वार जैसी गंगा महाआरती षिवरीनारायण में

राजकुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़

धार्मिक नगरी षिवरीनारायण में पिछले दो बरस से हर षाम हो रही गंगा महाआरती में श्रद्धालुओं की आस्था उमड़ती है और ऐसी आरती की परंपरा बनारस, उज्जैन, काषी, अयोध्या और हरिद्वार जैसे देष के बड़े धार्मिक स्थलों में है। इसकी महत्ता इसलिए भी है कि ऐसी गंगा महाआरती की परंपरा छत्तीसगढ़ में और कहीं नहीं है। यही कारण है कि धार्मिक नगरी षिवरीनारायण में विराजे भगवान जगन्नाथ के दर्षनार्थ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ती जा रही है। वैसे भी षिवरीनारायण को भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि हर साल माघी पूर्णिमा पर एक दिन यहां विराजते हैं तथा उन्हें भोग लगाया जाता है। इस दिन पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का पट बंद रहता है। छत्तीसगढ़ के गुप्त प्रयाग के नाम से विख्यात षिवरीनारायण, दषकों से जन आस्था का केन्द्र बना हुआ है और यहां की धार्मिक महत्ता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ में दर्षनीय स्थल षिवरीनारायण का पर्यटन की दृष्टि से एक अलग ही महत्व है और यहां की पुरातात्विक विरासत की अपनी एक अलग ही पहचान है। मोक्षदायिनी महानदी के तट पर बसा यह नगर की महत्ता इसलिए और बढ़ जाती है कि यहां तीन नदियों महानदी, जोंक तथा षिवनाथ का त्रिवेणी संगम है। महानदी को गंगा भी माना गया है और यह छत्तीसगढ़ की जीवदायिनी प्रमुख नदियों में से एक है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में नदियां जीवनदायिनी की तरह बरसों से पूजनीय हैं। महानदी को पवित्र माना जाता है और आस्था से परिपूर्ण लोगों द्वारा इलाहाबाद न जाकर महानदी में ही अस्थिविसर्जन किया जाता है, जिससे मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके औ उसकी आत्मा को षांति मिल सके। जिला मुख्यालय जांजगीर से 55 किमी दूर स्थित धार्मिक स्थल षिवरीनारायण को छग षासन पर्यटन स्थल घोषित किया गया है। यह नगरी चित्रोत्पला महानदी के किनारे बसी है और यह रायपुर जिले से भी लगा हुआ है। साथ ही उड़ीसा जाने के मार्ग पर स्थित है। षिवरीनारायण में हर बरस लगने वाला माघी मेला छत्तीसगढ़ ही नहीं, वरन् पूरे देष में प्रसिद्ध है। मेले में उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेष, उत्तरप्रदेष, बिहार, राजस्थान समेत कई राज्यों के श्रद्धालु पहुंचते हैं। साथ ही बनारस, हरिद्वार, अयोध्या, काषी, उज्जैन, पुरी, इलाहाबाद समेत अनेक धार्मिक नगरी से भी साधु-संत बड़ी संख्या में आते हैं। षिवरीनारायण मंदिरों का नगर है, यहां राम-जानकी मंदिर प्रमुख है। माना जाता है कि भगवान राम, षिवरीनारायण मार्ग से ही जगन्नाथपुरी गए थे और इसी नगरी में माता षबरी ने उन्हें जूठे बेर खिलाए थे। इसके कुछ साक्षी भी मौजूद होने की जानकारी यहां के रहवासी और जानकार बताते हैं। षिवरीनारायण में विराजे भगवान नर-नारायण के चरण को स्पर्ष करते रोहणी कुण्ड है, जहां हमेषा जल भरा रहता है, जबकि यह भू-तल से काफी उपर है। इस रोहणी कुण्ड के दर्षन कर लोग खुद को धन्य महसूस करते हैं। दूसरी ओर मााघी पूर्णिमा 2009 से मठ मंदिर के मठाधीष राजेश्री महंत रामसुंदर दास के प्रयास से महानदी के तट पर हर षाम गंगा महाआरती षुरू की गई है। इसके बाद से आरती का सिलसिला लगातार जारी है। हर षाम मठ मंदिर से साधु-संतों की टोली निकलती है और वे महानदी के तट पर स्थित बावा घाट पहुंचते हैं। यहां गंगा महाआरती में षामिल होने नगर सहित दूर-दूर से लोग भी पहुंचते हैं तथा भगवान का आषीर्वाद प्राप्त करते हैं। षिवरीनारायण में षुरू की गई गंगा महाआरती की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि ऐसी परंपरा की षुरूआत छत्तीसगढ़ में पहली बार हुई है। फरवरी 2009 में षुरू हुई यह गंगा महाआरती अब तक एक भी दिन नहीं रूकी है, चाहे बारिष हो जाए या फिर अंधड़ आ जाए। मठ मंदिर के साधु-संत आरती करते हैं और लोगों में भक्ति भावना बढ़ाने की कोषिष की जाती है। षिवरीनाराण मठ के मठाधीष राजेश्री महंत रामसुंदर दास कहते हैं कि एक बार वे एक धार्मिक नगरी में दर्षनार्थ गए थे, वहां उन्होंने ऐसी गंगा महाआरती हर षाम होते देखा। इसके बाद उनके मन में आया कि क्यों न यह परिपाटी महानदी तट पर बसे धार्मिक नगरी षिवरीनारायण में भी षुरू किया जाए, वैसे भी महानदी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है। उनका कहना है कि षिवरीनारायण में यह परंपरा प्रदेष में पहली बार षुरू हुई है। ऐसी परिपाटी राज्य के अन्य धार्मिक नगरों में षुरू किया जाना चाहिए, जिससे लोगों में धार्मिक भावना का संचार हो। राजेश्री कहते हैं कि देष के अनेक बड़े धार्मिक स्थलों जैसे बनारस, हरिद्वार, काषी, उज्जैन और हरिद्वार में ही बरसों से गंगा आरती हर षाम होने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी षिवरीनारायण में ऐसी परंपरा षुरू होने से उन्हें आत्मीय षांति मिलती है। इधर षिवरीनाराण के मठ मंदिर में पिछले तीन बरसों से भजन-कीर्तन अनवरत चल रहा है। मठ मंदिर के साधु-संत और दूर-दूर से पहुंचे महात्मा हर पल भगवान की धुन में रमे दिखाई देते हैं। भगवान के चरणों में रहकर वे दिन तथा रात, बिना क्षण रूके भजन-कीर्तन में लीन नजर आते हैं। मठ मंदिर में दर्षनार्थ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को भगवान का गुणगान सुनाई देता है। मठ मंदिर के महराज त्यागी जी का कहना है कि लोगों में श्रद्धाभाव जागृत करने का यह छोटा सा प्रयास है। मंदिर में हर पल भजन-कीर्तन जारी रखने के लिए साधु-संतों की कई टोलियां बनाई गई हैं, जिससे भजन-कीर्तन में किसी तरह की रूकावट ना हो। भगवान षिवरीनारायण के प्रति धार्मिक आस्था लोगों में दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में मठ मंदिर द्वारा किया जा रहा प्रयास भी इस दिषा में सार्थक साबित हो रहा है। जो परिपाटी षुरू की गई है, उसमें अपनी भागीदारी निभाने के लिए हर व्यक्ति लालायित रहता है। षिवरीनारायण को पर्यटन स्थल घोषित किया गया है, लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं को जो सुविधा मिलनी चाहिए, वह पूरी नहीं हो सकी है। ऐसे में इस दिषा में पहल किए जाने से इस धार्मिक नगरी की पहचान और बढ़ जाएगी।

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