मेरे गाँव में आपको ऐसे जीव बहुतायत में मिल जाएँगे जो चोर से चोरी करने को कहते हैं तो दूसरी ओर साध यानी घरवालों को कहते हैं जागते रहने को.घरवाले भी खुश और चोर भी प्रसन्न.गाँव वाले ऐसे लोगों को दोगला कहकर सम्मानित करते हैं.कुछ ऐसा ही खेल इन दिनों केंद्र सरकार राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में खेल रही हैं.एक तरफ तो सिपाही यानी सी.बी.आई. आदि एजेंसियों को जाँच में लगा दिया कि दूध का दूध और पानी का पानी करो तो वहीँ दूसरी ओर टीम कलमाड़ी यानी चोरों को सेवा विस्तार भी दे दिया.अब सी.बी.आई. समेत जांच में लगी सभी एजेंसियां जांच की प्रगति के लिए जरुरी दस्तावेजों के लिए टीम कलमाड़ी की दया पर निर्भर है.यह जाँच है या जाँच के नाम पर देश को धोखा दिया जा रहा है?इतना ही नहीं खेलों के आयोजन पर हुए व्यय की जांच कर रहे कैग के अंकेक्षक दस्तावेज गायब होने या नष्ट कर दिए जाने का आरोप भी लगा रहे हैं.इन फाइलों के बारे में पूछने पर दूसरी जाँच एजेंसी सी.बी.आई.को आयोजन समिति बता रही है कि समिति को छोड़कर चले गए किसी अधिकारी को इन फाइलों के बारे में जानकारी होगी.आयोजन समिति के अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी तो संविदा पर रखे गए थे और खेल ख़त्म होने के बाद उनमें से ६०% दफ्तर छोड़कर जा चुके हैं.ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि टीम कलमाड़ी जाँच में किस तरह सहयोग कर रही है.कहते हैं कि काठ की हांड़ी दोबारा आग पर नहीं चढ़ती लेकिन कांग्रेस पार्टी तो आजादी के बाद न जाने कितनी बार यह चमत्कार कर चुकी है और फ़िर से ऐसा ही करने की कोशिश में है.टीम कलमाड़ी की हरकतों को लेकर सरकार की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजिमी है.सरकार को इस बात का फैसला लेना ही होगा कि वह घोटाले के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दिलवाना चाहती है या मामले को येन केन प्रकारेण रफा-दफा कर उनका बचाव करना चाहती है.ए.राजा चूंकि घटक दल से थे इसलिए उनपर कार्रवाई को लेकर केंद्र की कोई मजबूरी हो सकती है लेकिन कलमाड़ी तो उसकी पार्टी के ही हैं.फ़िर उसकी सरकार क्यों उनकों बचाने की कोशिश कर रही है?वादा तो किया गया था कि खेल के बाद सभी छोटे-बड़े आरोपियों को निष्पक्ष जांच के द्वारा सजा दिलाई जाएगी.क्या इस नूरा-कुश्ती को ही कांग्रेसी भाषा में निष्पक्ष जाँच कहते हैं?क्या कोई बिल्ली को ही दही की रक्षा का भार सौंप देता है?लेकिन हमारी मनमोहिनी-जनमोहिनी सरकार ने देश के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करते हुए बिल्ली यानी टीम कलमाड़ी को ही अभी भी सरकारी दही यानी राष्ट्रमंडल खेलों के फंड की देखभाल करने का भार दिया हुआ है वह भी तब जब उसका दही पर हाथ साफ़ करना जगजाहिर हो चुका है.इस प्रकार जब यह साबित हो चुका है कि सरकार भ्रष्टाचार के सभी मामलों की सिर्फ लीपापोती करने के प्रयास में है तो फ़िर हमारे सामने देश को न्याय दिलाने के लिए संयुक्त जांच समिति जाँच के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता.न्यायिक आयोग भी एक विकल्प हो सकता है लेकिन इतिहास से प्राप्त अनुभव बताता है कि ऐसा करने से भी देश को न्याय मिलने की सम्भावना नगण्य है और इसमें २-४ दशकों का समय भी लग जाता है.
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