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16.11.10

आनरकीलिंग:झूठी साख और खुद की मौत………………!


आज इन्शान अपने द्वारा बनाये या समझे जाने वाले अपनी झूठी साख में इतना चूर है की उसको बचाने के लिए अपनों को मौत के घाट उतारते हुए थोडा भी नहीं सोचता! शायद आज हर एक इन्शान इस अपनी झूठी साख को अपनों से यहाँ तक की अपनी बेटी से अपने बेटे से अपने पिता-माता भाई-बहन जैसे अनमोल रिश्तों से ज्यादा बड़ा मानते हुए जीने का आदि हो चूका है,उसको तो शायद हर पल बस इसी बात की चिंता रहती है की ऐसा या वैसा करने पर समाज क्या कहेगा,यहाँ तक की अपने बच्चो को ये बताने की बजाय की समाज के लिए क्या उचित है और क्या करना चाहिए जैसी बातों को छोड़ सिर्फ ऐसी ही बातों को सोच कर हर पल घुटता रहता है की समाज ये कहेगा-समाज वो कहेगा,समाज में ऐसा नहीं होता-समाज में वैसा नहीं होता,समाज इसकी मान्यता नहीं देता-समाज उसकी मान्यता नहीं देता……………दरअसल रीती और रिवाजों के घेरे में कैद इन्शान की जिन्दगी आज हर पल इन्ही वाक्यों को अपने जेहन में रख कर जीने पर मजबूर होती सी दिखाई पड़ती है आज हर एक प्राणी समाज में अपने द्वारा बनाये इन्ही रीती रिवाजों को अपनी साख मानता है और अपने ही द्वारा बनाये इस झूठी साख को अपना सब कुछ मान कर कुछ भी कर गुजरने को हर पल तैयार रहता है,यहाँ तक की इन्ही रीती रिवाजों के घेरे में घूमता इन्शान अपनी जिन्दगी को पूरी तरह जीने की लालसा रखते हुए भी जी नहीं पाता है!
दरअसल यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न तो ये खड़ा होता है की समाज,इन्शान और साख इन तीनो में बड़ा कौन है? जिसके चक्कर में इन्शान की पूरी जिन्दगी जद्दोजहद करती रहती है ये तो पता नहीं,लेकिन यह तो स्पस्ट है की समाज में मनुष्य जन्म लेता है और मनुष्य से ही समाज का निर्माण भी होता है फिर सवाल यह खड़ा हो जाता है की जब समाज के अन्दर जन्मे मनुष्य के द्वारा ही समाज का निर्माण होता है तो फिर ऐसे में साख कैसे बड़ा हो सकता है जिस साख को अपना सब कुछ मान कर उसको बचाने के लिए आज इन्शान अपनों तक को मौत के घाट उतारने में थोडा सा भी नहीं हिचकता! सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है की अपने खून से ज्यदा प्यारा कोई चीज किसी के लिए कैसे हो सकता है जिस शरीर को इन्शान अपने ही खून पसीने की कमाई से सिच कर बड़ा करता है यहाँ तक की अपने कम खाकर भी अपने खून से जन्मे को ज्यादा खिलाता है अपने कम पढ़े होने के बावजूद भी अपने खून को ज्यादा बिद्वान बनाना चाहता है अपने खून के चोट लगने पर दर्द खुद महशुश करता है यानि कुल मिला कर अपने खून से जन्मे को भी इन्शान खुद अपना ही शरीर समझता है तो फिर इतना सब कुछ होते हुए भी यहाँ तक की अपने से जन्मे शरीर को अपना ही शरीर मानते हुए भी तथा इतना प्यार होते हुए भी क्यों एक झूठी साख (इज्जत) के लिए इन्शान खुद को मार देता है आखिर यह घिनौनी हरकत जिसको आज हम आनरकीलिंग के नाम से जानते है ये किसकी देन है यह घिनौनी हरकत जिसको सुनने पर रोंगटे खड़े हो जाते है क्यों आज समाज में अनेको बुराईयों के साथ अपने पांव को मजबूती के साथ जमाता जा रहा है कभी कभी तो समाज में पांव जमा चुकी ये विभिन्न प्रकार की बुराईयाँ इसी समाज की देन लगती हैं! जब आज इन्शान आधुनिकता के समुद्र में अपने आप को भरपूर तरीके से डूबा देना चाहता है तो फिर वही इन्शान क्यों किन्ही बिन्दुओं पर पुराने बनाये हुए रीती रिवाजों को निभाने के चक्कर में पड़ जाता है जबकि हकीकत तो ये है की जिन रीती रिवाजों को आज समाज में निभाने की कोशिश की जाती है वो उस समय के बनाये हुए है जब इतनी आधुनिकता का दौर नहीं था तब इन्शान अपनी सभ्यता में जीना चाहता था दूसरों की सभ्यता को अपनाना नहीं,तब समाज में बिना शादी शुदा किसी लड़के लड़की को एक साथ एक छत के निचे पति पत्नी के तरह से रहने की मान्यता नहीं थी,तब समाज में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जवान लड़कों के द्वारा जवान लड़कियों के होठों पर खुलेआम लिपस्टिक नहीं लगाया जाता था,तब समाज में लड़कियों को उच्च सिछा के लिए घरों से बाहर रहना तो दूर दस किमी की दुरी पर स्थित कालेज जाना भी समाज के खिलाफ ही समझा जाता था,तब परिवार का हर एक सदस्य एक साथ बैठ कर टीवी के कार्यक्रम नहीं देखा करते थे और ना ही इतने आधुनिक खुले बिचारों वाले या जिसको नग्न प्रदर्शन भी कहा जा सकता है जैसे प्रोग्राम तो टीवी पर नजर भी नहीं आते थे…………………….यानि उस समय और इस समय में जमीन और आसमान का अंतर है और कही न कही ऐसा लगता है की आधुनिकता के दौर में रीती रिवाजों को जोड़ने के प्रयाश में आज समाज में ऐसी घिनौनी हरकतों का जन्म होता है कही पर इन्शान पुराने रीती रिवाजों को भुला कर आधुनिकता को अपना रहा है और फिर वही इन्शान कही किसी बिंदु पर आधुनिकता में लिप्त जिन्दगी में रीती रिवाजों के द्वारा बने अपने साख को ढूढने की कोशिश करता है एक पुरानी और लोक प्रचलित कहानी है की एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती है ये बिलकुल सटीक लगती है आधुनिकता में डूबने के बाद रीती रिवाजों को ढूढने की कोशिश ही ऐसी घिनौनी हरकतों को जन्म देती है

2 comments:

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

धर्मेश जी,
सादर वन्देमातरम,
आनर किलिंग जैसे ह्रदय विदारक विषय पर एक मर्मस्पर्शी पोस्ट|वस्तुतः प्रेम को दागदार करते हुए इन प्रसंगों में आज का युवा भी कम जिम्मेदार नहीं है..प्रेम जैसे पवित्र चीज को बदनाम किया जा रहा है...क्या क्षणिक भावुकता ही प्रेम होता है? तेजी से दरकते रिश्ते और असफल होते प्रेम विवाह सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है| जय भारत,जय भारती

shrish srivastava said...

लेख अच्छा, मगर हकीक़त से परे।
श्रीमान जी, आपका लेख अच्छालेख अच्छा था मगर हकीक़त से परे। था मगर हकीक़त से परे। ओनर किलिंग की घटनाओ पर विचार रखते समय क्या हम देखते हैं कि यदि हमारे घर की बेटी ऐसा करे तो हम क्या करते। किसी मुद्दे को गंभीर मानकर उसपर टिप्पड़ी देना जितना आसान होते है उससे कही ज्यदा मुस्किल उससे गुजरना होता है। क्या समाज में कोई बेशर्मो की तरह रह सकता है। क्या कोई माँ-बाप बच्चो को आवारा छोड़ सकता है? अगर प्यार में धोखा खाई कोई लडकी आत्महत्या कर ले तो उसका पूरा दोष माँ-बाप को दिया जाता है। यदि उनका भविष्य बनाने के लिए यही माँ-बाप बंदिशे लगते है तो उन्हें जालिम kha जाता है। मान्यवर समाज में जीना है तो उन्ही तौर तरीको को अपनाना होगा जिससे एक अच्छी पहचान बने। आज बदलते परिवेश में जहा प्यार को महज जिस्म की भूखा मिटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उस पर टीका टिप्पड़ी करना कोई उचित नहीं समझाता। लिहाज़ा पहले उन मर्जो को ढूंढा जाय जो ऐसे हत्यों के लिए कारन बनते है। यदि पाश्चात्य सभ्यता अपने देश से दूर फेक दी जाय तो सायद यह घटने थम जाय।