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20.11.10

भीड़

आज ज़िन्दगी के मायने बदल गए है .हर जगह भीड़ है .शुकून नहीं मिलता .कृत्रिम भीड़ ही ज्यादा दिखाई देती है वास्तविक हो तो कोई बात नहीं .सड़क पर भीड़ ...बाजार में भीड़ ...आकाश में भीड़ ...सागर में भीड़ ...मंदिर मस्जिद में भीड़ ....संसद में भीड़ ...स्कुल कालेज में भीड़ ...अस्पताल में भीड़ ... हर जगह भीड़ ही भीड़ .
भीड़ अच्छी बात हो सकती है पर इसे नियंत्रित किया जाय तो ...प्रशिक्षित किया जाय तो ,पर ऐसा  नहीं है, यह और बेतरतीब ढंग से बढती ही जा रही है .कुछ सियासी लोगों के लिए संजीवनी ही है .भीड़ में गुणवता लाने की कोशिश नहीं हो रही ,इसे बोझ बताने का चलन बढ़ रहा है . सरकार इसे अपनी नाकामी का बहाना बना रही है .
आगे भीड़ और बढ़ेगी ही ..तब बहाना बनाने वालो पर यह भारी साबित होगी . आपाधापी में जो आज कुछ चंद  लोग जो घी पी रहे है ..कल उनके मुंह से यह भीड़ घी छीन कर पी जायेगी ...तब व्यवस्था का दोष देना मुर्खता की बात होगी . आज ही चेत ले इससे सुन्दर कुछ नहीं होगा .

2 comments:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

aaj loktantr bheedtantr me tabdeel ho chuka hai aur yah karne wale siyasi log iska bharpoor fayda bhi utha rahe hain.

RAJNISH PARIHAR said...

is bheed me ham kitne akele ho gaye hai....