सेनापति पांडुरंग महादेव बापट का जीवन संघर्ष
अरविन्द विद्रोही
किसी भी देश की पहचान उसके गौरवशाली,संघर्षमय इतिहास से होती है।हजारों वर्षों की दासता और दासता की बेड़ियों को तोड़ने में लगे मातृभूमि के लाड़लों की एक बृहद् समृद्धिशाली,त्यागमयी गौरवपूर्ण गाथा है,जो पीढ़ी दर पीढ़ी देश के युवाओं को प्रगति व आत्मसम्मान के पथ पर ले जाने हेतु पथ-प्रदर्शक का कार्य करती रहेगी।भारत-भूमि देवभूमि यूॅं ही नही कही जाती है।यह धरा अपना बचपन,अपनी जवानी,अपना सर्वस्व धरती माता के चरणों में,सेवा में,रक्षा में अर्पित कर देने वाले सपूतों की जन्मदात्री है।एैसे ही एक भारत के लाल पांडुरंग बापट का जन्म 12नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर-महाराष्ट में हुआ था। प्रारम्भ में ही आपको बताते चलें कि इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था-सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज,समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है।साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,महात्मा गॉंधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे।बापट को भक्ति,ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी।बापट ने पारनेर में प्राथमिक शिक्षा के बाद बारह वर्ष की अवस्था में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल-पूणे में शिक्षा ग्रहण की।पूणे में फैले प्लेग के कारण बापट को पारनेर वापस लौटना पड़ा।गृहस्थ जीवन में आपका प्रवेश 18वर्ष की आयु में हुआ।अपनी मौसी के घर अहमदनगर में मैटिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 5वॉं स्थान तथा जगन्नाथ सेठ की छात्रवृत्ति प्राप्त की।कचेहरी में दस्तावेज-नवीस का कार्य आपने इसी दौरान किया।उस समय 12रू प्रति माह की छात्रवृत्ति आपने संस्कृत विषय में हासिल की।उच्च शिक्षा हेतु 3जनवरी,1900 को 20वर्ष की उम्र में डेक्कन कॉलेज,पूणे में दाखिला लिया।छात्रावास में टोपी लगाकर बाहर जाने के नियम का असावधानी पूर्वक उल्लंघन करने के कारण आपको 6महीने छात्रावास से बाहर रहने का दण्ड़ मिला।इस अवसर पर सतारा के नाना साहब मुतालिक ने बापट को अपने कमरे में रख कर सहारा दिया।अपनी उच्च शिक्षा को जारी रखने के उद्देश्य से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् बापट ने बम्बई पहुॅंच कर स्कूल में अस्थायी अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया।सौभाग्य से बापट को मंगलदास नाथूभाई की छात्रवृत्ति मिल गई।अब बापट मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड पहुॅंच गये।यहां के कवीन्स रायफल क्लब में आपने निशानेबाजी सीखी। भारतीय क्रान्ति के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा,जिन्होंने लन्दन में क्रान्तिकारियों के लिए इण्डिया हाउस की स्थापना की थी,इण्डियन सोशलाजिस्ट नामक अखबार से क्रांति का प्रचार-प्रसार किया था,उस महान विभूति से यहीं पर पांडुरंग महादेव बापट की मुलाकात हुई।ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत की परिस्थिति विषय शेफर्ड सभागृह में निबन्ध-वाचन के अवसर पर श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उपलब्ध करायी गयी सामग्री के आधार पर आपने भाषण दिया,आपका निबन्ध छपा।तत्काल मुम्बई विद्यापीठ सिफारिश पर बापट की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई।अपनी मातृभूमि की दशा को बखान करने की कीमत चुकायी बापट ने।अब बापट ने क्रान्ति की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया।इण्डिया हाउस में रहने के दौरान बापट,वीर सावरकर के सम्पर्क में आये।आपको पेरिस बम कौशल सीखने भेजा गया।अपनी विद्वता का इस्तेमाल आपने अपने देश की सेवा व लेखन में किया।दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में होने वाले 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में वॉट शैल अवर कांग्रेस डू तथा 1907 में सौ वर्ष बाद का भारत आपके कालजयी लेख हैं। मजदूरों-मेहनतकशों-आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को तेज करने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह पर बापट भारत वापस आये।शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुॅंचे।यहां कई क्रांतिकारियों के साथ आपकी बैठक हुई।इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम प्रकरण में दो माह बाद गिरफतार हो गया,जो मुखबिर बन गया।बापट की भी तलाश प्रारम्भ हो गई।साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में पुलिस के हाथों बापट की गिारफतारी हुई।इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतःबापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका।पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर घर आकर सामाजिक सेवा,स्वच्छता जागरूकता,महारों के बच्चों की शिक्षा,धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये।पुलिस व गुप्तचर बापट के पीछे पड़े रहे।1नवम्बर,1914 को पुत्र रत्न की प्राप्ति के पश्चात् नामकरण के अवसर पर प्रथम भोजन हरिजनों को कराने का साहसिक कार्य किया था-बापट ने।अप्रैल1915 में पूना के वासु काका जोशी के चित्रमय जगत नामक अखबार में फिर 5माह बाद तिलक के मराठी पत्र में बापट ने कार्य किया।पूणे में भी सामाजिक कार्य व रास्ते की साफ-सफाई करते रहते थे-बापट।बापट ने मराठा पत्र छोड़ने के बाद पराड़कर के लोक-संग्रह दैनिक में विदेश राजनीति पर लेखन करने के साथ-साथ डॉ0श्रीधर व्यंकटेश केलकर के ज्ञानकोश कार्यालय में भी काम किया।आपकी पत्नी की मृत्यु 4अगस्त,1920 को हो गई।इस समय बापट 2अगस्त,1920 से चल रही श्रमिक मेहतरों की मुम्बई में चल रही हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे।झाडू-कामगार मित्रमण्डल का गठन कर सन्देश नामक समाचार पत्र में विवरण छपवाया।मानवता की शिक्षा देते हुए,मुम्बई वासियों को जागृत करने हेतु,गले में पट्टी लटका कर भजन करते हुए 1सितम्बर,1920 को आप चौपाटी पहॅंुचे।यह हड़ताल सफल हुई। इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए डा0नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर आपने हस्ताक्षर अभियान चलवाया,घर-घर भ्रमण किया,लेख लिखे,सभायें आयोजित की।बापट ने राजबन्दी मुक्ता मण्डल की भी स्थापना की।कालेपानी की कठोर यातना से इन्द्रभूषण सेन आत्महत्या कर चुके थे तथा उल्लासकर दत्त पागल हो गये थे।महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बॉंध बॉंधने की योजना टाटा कम्पनी ने की।मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बॉंध से 54गॉंव और खेती डूब रही थी।विनायक राव भुस्कुटे ने इस के विरोध में सत्याग्रह चला रखा था।1मई,1922 को दूसरे सत्याग्रह की शुरूआत होते ही बापट को गिरफतार कर 6माह के लिए येरवड़ा जेल भेज दिया गया।छूटने के बाद बापट मुलशी के विषय में घूम-घूम कर कविता पाठ करते,प्रचार फेरियां निकलवाते।नागपुर में बेलगॉंव तक भ्रमण किया बापट ने।अब बापट सभाओं में कहते,-अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए,बम मारने के दिन आ गये हैं।मुलशी प्रकरण में 23अकतूबर,1923 को बापट तीसरी बार गिरफतार हो गये।रिहाई के बाद रेल पटरी पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थर बिछाकर,हाथ में तलवार,कमर में हथियार और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर बापट धोती की कॉंख बॉंधे अपने 5साथियों के साथ खड़े थे।इस रेल रोको आन्दोलन में गिरफतारी के बाद 7वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे।मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला।रिहाई के बाद 28जून,1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।विदेशी बहिष्कार का आन्दोलन चला।अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुॅंच गये।सिर्फ 5माह बाद ही गिरफतार हुए बापट ने वकील करने से मना कर दिया।7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली।जेल में रहने के ही दौरान बापट के माता-पिता की मृत्यु हो गई।बाहर कांग्रेस ने सार्वजनिक हड़ताल व सभायें की।येरवड़ा जेल में बन्द गॉंधी जी के अनशन के समर्थन में बापट ने जेल में ही अनशन किया।सूत कातने,कविता लिखने,साफ-सफाई करने में वे जेल में अपना समय बिताते।अनशन में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें बेलगांव भेज दिया गया।23जुलाई,1937 को रिहा कर दिये गये सेनापति बापट के रिहाई के अवसर पर स्वागत हेतु बहुत विशाल सभा हुई।सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया।द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का किया -फारवर्ड ब्लाक ने।भाषण दिये गये।कोल्हापुर रियासत में धारा144 लागू थी,वहॉं भाषण देने के कारण आपको गिरफतार की कराड़ लाकर छोड़ दिया गया।आपने फिर कोल्हापुर में सभा कर विचार रखे।5अप्रैल,1940 को मुम्बई स्टेशन पर आपको गिरफतार कर कल्याण छोड़ा गया तथा मुम्बई प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।नजरबन्दी के बावजूद आपने चौपाटी में पुलिस कमिशनर स्मिथ की मौजूदगी में उर्दू में भाषण दिया,इस अवसर पर अंग्रेज का पुतला तथा यूनियन जैक भी जलाया गया।बापट को गिरफतार कर नासिक जेल में रखा गया।यहां पर बापट का वीर पुत्र वामनराव भी द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध की सजा में बन्द थे।20मई,1944को आपकी पुत्री का देहान्त हो गया तथा सात माह की नातिन की जिम्मेदारी भी आप पर आ गई। नवम्बर,1944 में विद्यार्थी परिषद का आयोजन हुआ।चन्द्रपुर,अकोला की सभाओं के बाद बापट अमरावती की सभा के पहले गिरफतार हो गये।एक वर्ष की सजा हो गई।1946 में दुर्भिक्ष पड़ा।इस अवसर पर मजदूरों का साथ दिया सेनापति बापट ने तथा सहायता निधि जमा करके मजदूरों की मदद की।मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट ने ली थी,अक्षरशःपालन किया।देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति का अधिकांश समय जेल में ही बीता।संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट सदैव हमारे मध्य सदैव प्रेरणा बन करके रहेंगे।आजादी के दिन 15अगस्त,1947 को बापट ने पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया।सेनापति बापट की देहावसान 28नवम्बर,1967 को हुआ था।पुणे-मुम्बई में सेनापति बापट के सम्मान में एक प्रसिद्ध सड़क का नामकरण किया गया है।
2 comments:
thanx sir ji..hamare senani ke baare me itna sab kuch batane aur unke chhupe huye sangharsh ko dunia ke saamne laane ke lie..thanx again
jai hind...utsahvardhan ke liye dhanyavad...
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