टीआरपी और पाखंड चेहराआलेख बेहद समयानुकूल लगा किंतु टी आर पी के लिये मीडिया की हथकण्डे बाज़ी के लिये पाठक /दर्शक भी सनसनाहट पसंद करतें हैं.१० फ़ीसदी लोग ही सही मायने में सच्चे पाठक या दर्शक हैं और इसी बात का फ़ायदा उठाता है "मीडिया" . मीडिया ही क्यों मनोरंजन जगत भी इसी का उदाहरण है. सबको चाहिये सनसनाहट रूमानी बातैं, अधनंगे चित्र गनीमत है कि बेडरूम तक इनका बस नहीं चलता. वरना खैर छोड़िये एक दौर था पति-पत्नि भी मनोहर कहानियों टाइप की किताबें घर में छिप कर बांचते थे. किंतु ब सारे विषय कथानकों में लपेट कर सामान्य रूप से टी०वी० पर परोसे जा रहे हैं. टी आर पी के लिये भागते मीडिया की दुर्दशा की ज़वाब देही हमारी भी तो उतनी ही है भाई
16.11.10
मीडिया की हथकण्डे बाज़ी के लिये पाठक दर्शक भी ज़िम्मेदार हैं
Posted by Girish Kumar Billore
Labels: टी०आर०्पी०
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