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23.11.10

साइकिल की कीमत शरीर ।

वास्‍तविकता का किसी एक से ताल्‍लुक नहीं होता,उसके दायरे में हर कोई आ सकता है।अंतर केवल परिस्थितियों का होता है।जैसे ही आपके सामने वैसी दशायें आयेंगी,आप अनिवार्य रूप से प्रभावित होंगें ही।उससे निपटने का राश्‍ता आपकी अंत:शक्ति या संस्‍कार दे सकता है।लेकिन जब बाजार आपके परिवार व समाज आपके संस्‍कारों पर हमला करने लगे तो आप चाहते हुये भी स्‍वंय को नहीं बचा पायेंगें।शरीर को स्‍वस्‍थ रखने का काम शायद साइकिल कर सकती है।लेकिन यहॉं साइकिल की कीमत एक महिला का शरीर बन गयी। यह कहानी एक ऐसी ही वास्‍तविकता है।एक छोटा सा परिवार एक कस्‍बे में रहता है। इस परिवार में दो छोटे बच्‍चे व उनके माता पिता रहते हैं।बच्‍चों की आदत जैसी होती है,उसी तरह इन बच्‍चों को भी मीठा खाने का शौक है।लेकिन बच्‍चे अंग्रजी पब्लिक स्‍कूल में पढतें हैं,उनकी मंहगी फीस लगभग प्रतिमाह एक हजार रूपये हो जाती है।उन्‍हें अपने मॉं-बाप की आमदनी का पता है।बच्‍चे अपनी मिठाई के शौक को पूरा करने के लिये पास के गुरूद्धारे में चले जातें हैं।गुरूद्धारे में सप्‍ताह में एक दिन हलुआ व चने का प्रसाद जरूर बनता है।इनके यहॉं ऐसा कोई महीना नहीं आ सकता,जिसकी पहली तारीख या अन्तिम तारीख को मीठा खाने के लिये डेयरी मिल्‍क की चाकलेट मिल जाये।इनके परिवार की कुल आय लगभग साढे तीन हजार रूपये है।परिवार का पुरूष एक दुकान पर काम करता है,जहॉं उसका आना-जाना साइकिल से होता है।यानि साइकिल का पहिया रोजी-रोटी का साधन है,इसके एवज में उसे दो हजार रूपये मिलते हैं। इस परिवार के पास अपना एक पुस्‍तैनी मकान है,जिसका एक हिस्‍सा उन्‍होंने किराये पर उठा रखा है।इसका किराया पन्‍द्रह सौ रूपये मिलता है।लेकिन अचानक एक दिन परिवार के मुखिया की साइकिल चारी हो जाती है।इस तरह हर रोज की दिक्‍कतों में यह ऐसी दिक्‍कत अचानक आ जाती है जसकी भरपायी सबसे पहले की जानी जरूरी है।साइकिल के बिना दुकान का मालिक उस आदमी को नौकरी से हटा देगा।सही बात यह थी कि दुकान का मालिक साइकिल खरीदने में कुछ मदद करता लेकिन ऐसा नहीं हुआ।ऐसे समय दुकान के मालिक ने कोई दया-भाव नहीं दिखाया,और बेचारे नौकर को नौकरी से हटाने की धमकी दे डाली।उसने कहा,साइकिल के बिना आप काम नहीं कर सकते अत:आपके पास साइकिल होनी अनिवार्य है।अब उस आदमी के पास साइकिल खरीदने के सिवाय कोई राश्‍ता नहीं था। उसने अपने एक मिलने जुलने वाले अर्द्ध‍ मित्र से तीन हजार रूपये दो परसेन्‍ट ब्‍याज पर उधार लिये ताकि वह साइकिल खरीद सके।मेहनत व बचत करके उन्‍होंनें उधार चुकाना शुरू ही किया था कि एक दिन एक बच्‍चा बुखार की ऐसी चपेट में आया कि एक हफते में बच्‍चा ठीक हो सका लेकिन डाक्‍टरों की फीस ने उनकी गरीबी का आटा और गीला कर दिया।इस समय रूपये उधार देने वाले मित्र ने उसके घर ज्‍यादा ही आना जाना शुरू कर दिया।यह दोस्‍त उसी शहर के एक डिग्री कालेज में क्‍लर्क है,इसने अपने ठाठ-बाट रहीसों जैसे कर रखें हैं।इस तरह इस दोस्‍त ने पीडित व संकट में फंसे परिवार का गलत फायदा उठाया और एक दिन बच्‍चों की मॉ से शरीरिक सम्‍बध बना लिये।शुरू-शुरू में उस महिला ने दुखी मन से इस गरीबी के कष्‍ट को सहा लेकिन अब उसके लिये सामान्‍य हो चला है।अब उसे कढाई या सिलाई के कार्य के लिये जाना कहीं जाना जरूरी नहीं है।जोकि पहले वह करती थी,जिसकी छोटी-मोटी कमाई से बचत कर तंग होते सम्‍बंध व कपडों को बचाती व बनाती थी।इसे आम आदमी की हकीकत समझें या एक कहानी,आप स्‍वंय तय करिये।

2 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

हकीकत है... आम है...

Unknown said...

आपने गरीबी की सच्ची तस्वीर और हक़ीकत बङ़े ही सरल-सीधे शब्दों में पेश की है।