आज 26 / 11 जैसे दुर्भाग्य पूर्ण प्रकरण की दूसरी बरसी है और ये हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है की इस सबके दोषी को सरकार दामाद की तरह पाल कर बैठी है, मेरी ये रचना उन सभी को समर्पित है, जो निर्दोष होते हुए मारे गये और वो जवान जो इन निर्दोषों के प्राण बचाने की खातिर शहीद हो गये........
मैं नही जानता मेरा लिखा गजल की श्रेणी में आता है या नही मेरे जो मन के भाव कसाब जैसे देशद्रोहियों को जीवित देखकर आते हैं शब्दों में व्यक्त है........ मैंने इसमें भावावेश में नेताओं के लिए कुछ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया है जिसके लिए मुझे कोई खेद नही है........
26 / 11 का वो मंजर, जब भी याद आता है,
हवा करती है सरगोशी, बदन ये काँप जाता है ||
करकरे जैसे जांबाजों की, मौत जब जब याद आती है,
जाँ ही बस नही निकलती, कलेजा मुंह को आता है||
लाशों के जखीरे पर, खड़ा होकर कोई नेता,
खुद के नपुंसक वजूद तले, शहादत का मजाक उडाता है||
खुद घर में जिन्दा मुजरिम को, दामाद बनाकर पाले है,
और पकिस्तान उन्हें सजा दे, इसकी गुहार लगाता है||
भगत बनाकर माँ, बेटे को ,सरहद पर मरना सिखाती है,
और देश के नपुंसक नेता उन्हें, बेमौत मरवाता है||
वो दस आकर एक सौ पिचहत्तर, सरेआम भून देते हैं,
हमारा क़ानून एक को मारने, सबूतों की दुहाई लगाता है||
पडौसी ने हमे समझा अभी तक, हिजड़ा ही दोस्तों,
जब जी में आता है, हमारे घर आ, हमे वो मार जाता है||
भारतीयनेता अमेरिका के सामने, अपनी नामर्दी की दहाड़ लगाते है,
हवा करती है सरगोशी, बदन ये काँप जाता है||
हवा करती है सरगोशी, बदन तब काँप जाता है ||
भारतीय होने पर सर, शर्म से जमी में गड जाता है||
28.11.10
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आपकी कलम की आग जला भी सकती है और रौशनी भी फैला सकती है... बहुत दम है... एक गुज़ारिश है की भारतीय होने पर शर्मिंदा ना हों... कमियां है हम में मगर बहुत अच्छाइयां भी मिली हैं इस मिटटी से हमें... और हम होंगे कामयाब एक दिन... मन में विशवास... पूरा है विशवास ... हम होंगे कामयाब एक दिन!
आँखों में नमी और आदर सहित
Post a Comment