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3.3.08

सोचता हूं तो

सोचता हूं तो अजीब लगता है।
वो दूर है पर करीब लगता है।।

सुकुनोचैन से जीता है वो आदमी लेकिन
शक्ल से हमेशा गरीब लगता है।।

उम्र भर जिसको इत्तफाक समझा हमने।
वो कायदे से अब नसीब लगता है।।

फासला रख के जिससे चलते रहे हर कदम।
आज वो ही अपना रकीब लगता है।।

जिंदगी भर जिसे समझने की कोशिश की।
अपने जेहन को वो ही अदीब लगता है।

2 comments:

Unknown said...

badhiya...good

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईजान,सुंदर और गहरे भाव हैं....