अविनाश जी ब्लॉग की दुनिया में आपके ''मोहल्ला'' पर अपने घर,अपना मोहल्ला को चित्रित करती तस्वीर आपकी अनुभुतियो एवं संवेदनाओं को चित्रित करती प्रतीत होती है,सुदूर देश में बैठा कोई उस रिक्शे ,उस देहाती बाजार में हिन्दुस्तान की छवि देखता है तो कोई आपका देश्ला भाई लोग (ख़ास कर दरभंगा,समस्तीपुर, मधुवनी ,बेगुसराय,खगरिया,कटिहार के भाई लोग) मोहल्ला में ,आप में संभावनाएं तलाशते हैं। आज भी बेगुसराय के शीर्ष साहित्यकार,पत्रकार आपके देशीपन एवं कर्मठता की चर्चा करते नही अघाते हैं तो अशांत भोला जैसे बुजुर्ग कलमकार यह कहने में नही चुकते हैं की हाँ अविनाश मेरे शिष्य जैसा है उसमें ओज ,जोश और परिवर्तन की इच्छा कुलांचे मारती रहती है। महोदय न तो मैं आपसे मिला हुं और न ही आपके पत्रकारिता पृष्ठभूमि के बारे में जानता हुं। ब्लॉग लेखन में आने के बाद मोहल्ला से आपको जाना और आज आप से,सिर्फ़ आपको संबोधित करते हुए कुछ कहना चाहता हुं।
भाई जी,मैं यह नही कहना चाहता हुं की आप के द्वारा गाजा को दी जा रही सहानुभूति और श्रधांजलि ग़लत है बल्कि मैं यह कहना चाहता हुं की अपने घर,अपने मोहल्ले,और उसमें रहने वाले अपने लोग जो असहाय ,वेवश और मुर्दा बनकर तमाशा बन गए हैं को आपकी ऐसी सहानुभूति ,श्रधांजलि और संवेदना की जरुरत है उनको सच्चे अर्थों में आप जैसे शीर्ष ब्लोगरो से उम्मीद है जो उनकी दारुण कारुणिक व्यथा को विमर्श का रूप देकर समाधान तलाशने की दिशा में पहल करें,बहरी हो चुकी न्याय व्यवस्था के कान में शब्दों को गरम कर उदेल कर बताएँ की क्या इन पीडितों को भारतीय लोकतंत्र में जीने जीने का अधिकार नही है,इन भुक्त भोगिओं को इसी हालत में छोड़ कर विदेशी समस्याओं के पीछे अपनी उर्जा व्यय करना मुझे थोडा नही पचा तो इधर उगलने के वास्ते आ गया मैं।
जब मेरी निगाहें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत में रहने का गौरव हासिल किए उन वंचितों,पीडितों ,अभागों पर टिकती हैं जो अपना सब कुछ गँवा कर ,लुटाकर आपके घर में,आपके मोहल्ले में,विक्षिप्त होती जा रही सामाजिक जीवन में ,घुट-घुट कर ,जीने को अभिशप्त हैं,पढे लिखे कहे जाने वालों के पैर पकड़ कर फरियाद करने वालों को,उनके आंखों से बहने वाली अविरल अश्रु धारा को देख कर ह्रदय विदीर्ण होने लगता है ,ख़ुद को विवशता के आगोश में जकडा पाटा हुं जब इनके लिए कुछ नही करने की टीसह्रदय को रोज छलनी करती है,पौरुश्ता को ललकारती है,अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाती दिखती है मुझे।
आपके ''मोहल्ला'' पर एक मृत मासूम को फूलों से लदा देखकर मुझे याद आ गया वह मार्मिक क्षण जिसे चाह कर भी रोक नही सका और आप तक खींच कर ले आया । मैं जो बताने जा रहा हुं वह भद्र जनों के लिए कोमन बात हो सकती है लेकिन थोडी देर रुक कर,ठिठक कर आगे वर्णित जिवंत पात्रों के चेहरे पर निगाह टिका कर,उनके द्वारा भुगते गए समय के साथ थोडी देर चहल कदमी करेंगे तो मेरी तरह आप भी उबल पड़ेंगे,फट पड़ेंगे और आपको भी स्वीकार करना पड़ जाएगा की पहले अपने मोहल्ले के दर्द को कम कर लें ,फ़िर विदेशों के दर्द को कम करेंगे क्यूंकि समाधान कहीं न कहीं हिन्दुस्तान की गलिओं से गुजरने के बाद ही मिलेगा।क्योंकि यह भले ही बेगुसराय के एक मोहल्ले की कथा हो लेकिन ऐसे हजारों,लाखों मोहल्ले बिखरे पड़े हैं हमारे चारों और जिन्हें सचमुच बहस,विमर्श की जरुरत नही न्याय और संबल की जरुरत है ऐसे अनगिनत वंचितों को।
जी बेगुसराय मुख्यालय से तीसकिलोमीटर पूरब साहेब पुर कमाल से तीन किलोमीटर दक्षिण गंगा के तट पर स्थित समस्तीपुर गाँव का मनोहर पंडित ,उसकी पत्नी और समूचे गाँव वाले आजीवन उस दिन को चाह कर भी नही भूलेंगे जिस दिन कलयुग ने इस गाँव के एक गरीब मजदुर परिवार पर कहर बरपाया था और आए दिन देश के विभिन्न भागों में निठारी जैसे कहर रोज टूट रहे हैं लेकिन हम विमर्श बहस के कोहबर से बाहर नही निकल रहे हैं। नही तलाश पा रहे हैं समाधान जो वक्त के वेरहम चाल के साथ और जटिल होती जा रही है । वर्ष २००३ का मई महीना .संध्या के पाँच बजे मनोहर पंडित का छः वर्षीय बेटा गणेश अपने मोहल्ले में बाल बुत्रुक के साथ उछल रहा है ...कुदक रहा है ...दुनिया दारी के पेंच से इतर वह बच्चा अपनी निश्छल ,सरल सहज भाव से दुनिया को जी रहा है ........दौरल गया माँ के पास ...माँ माँ ...सन्पापरी ...दु गो रुपा दे न.....माँ से सिक्का लेकर अपनी दहलीज से निकल कर जो बाहर गया रात के आठ बजे तक कोई पता नही...माँ बाप परेशान ,अनिष्ट की आशंका वल्वती होती गयी लेकिन हमने किसका क्या बिगाडा है शब्द से संबल लेता उनका धैर्य तब दम तोड़ दिया जब रात गहरी होती चली गयी। आस पड़ोस के लोगों के सहयोग से गणेश को खोजने का अथक जतन किया गया ,रात के लगभग एक बजे गणेश का बाप सौ पचास ग्रामीणों को साथ लेकर हर घर की किवाड़ को बेचैनी से पीटता हुआ अपने लाल को खोजने में मदद मांगते हुए मेरे घर पर भी आया। मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बन कर ग्रामीणों के साथ दियारा,बहियार,गाछी,भुस्कार,तालाब,नदी मतलब रात भर ख़ाक छानते रहे। अपहरण की कल्पना निराधार इसलिए साबित हो रही थी की पचास रुपए रोज कमाने वाले मजदुर से कोई फिरौती की रकम के लिए यह उपक्रम क्यों करेगा। बौखते-बौखते फरीच हो गया ...न गणेश मिला और न ही कोई सुराग जिससे कुछ पता लगाया जा सके। हमलोग असमंजस में थे ही की बाँध तरफ़ से तीन चार गो बुत्रुक चिल्लाते गिरते बजरते आया की ''उ...मकई के खेत में कौवा ला गई छई ......एगो लहाश छई रे...'' सारे ग्रामीणों का हुजूम ...अपार जन समूह .......मकई की लहलहाती फसल की हरियाली के कलेजे पर छः साल का वह मासूम रक्तरंजित...लाश में तब्दील होकर दहला दिया था हमारी आत्मा को। लाश की स्थिति ऐसी थी की सर का बाल मुंडा हुआ,नाक,कान किसी धारदार हथियार से काटा हुआ गायब .....पाँव का ,हाथ का,जांघ का ,पेट का,सीना का सारा मांस छीला हुआ,शरीर के नाम पर सिर्फ़ हड्डी का ढांचा .....अति ह्रदय विदारक क्षण......असहनीय दृश्य ....... वह मासूम उसका लाश हम भीड़ से यह सवाल करता नजर आ रहा था की आख़िर मैंने क्या बिगाडा था भाई जी,चाचा जी,दादा जी जो आप लोगों ने एक मासूम को ऐसी मौत दी? स्थानीय थाना को सूचित किया गया ,घंटे भर में थाना प्रभारी सदल बल घटना स्थल पर पहुँच कर लाश को कब्जे में लेकर औपचारिकता निभा कर रह गए। मैं उन दिनों ''दूसरा मत'' साप्ताहिक पत्रिका से जुड़ा था ,इस घटना ने इतना विचलित कर दिया था की गणेश की माँ और बाप की शून्य में निहारती निगाहों से अपनी निगाह मिला नही पा रहा था...मुझे कलम और कैमरा बेकार लगने लगा,आक्रोश की परिणति का यह अंजाम। थाना प्रभारी ने अनुसंधान प्रारंभ किया निष्कर्ष यह निकला की बच्चे की हत्या गाँव के एक दबंग ने ही करवाई है क्यूंकि उसे किसी मादरचोद ने बताया था की तुम्हारा डीह गिध्ध डीह है अगर तुम अपने डीह की शुधि के लिए एक बालक का बलि नही दोगे तो तुम्हारा खानदान खत्म हो जायेगा। स्थानीय मीडिया में यह ख़बर छाया रहा,दो-चार नामजद अभियुक्त भी बने ...अब देखिये उसके बाद का सीन।
गाँव दो ध्रुवों में बाँट गया ,दोगली राजनीति चालू,झंडा वाले ,कुर्ता पैजामा वाले भाई लोग को मुद्दा मिल गया...''जिला प्रशाशन हाय हाय'' ''कातिल को गिरफ्तार करो'' रोड जाम चक्का जम......हो हल्ला हंगामा चालू। उधर अभियुक्त भाई लोग मनोहर पंडित को गांड में लौरा दे रहा है की केस वापस लो नही तो बेटा वाला हाल तोरो करेंगे। एक तो पुत्र शोक ऊपर से धमकी....मनोहर कभी थाना प्रभारी का गोर धरता तो कभी डी एस पी के दुआर पर मुडी बजार्ता .....एस पी से फरियाद करता रहा .....जनता दरबार में मामला ले गया....मानवाधिकार आयोग को लिखा....न्याय के लिए भटकता रहा इधर अभियुक्त खुल्ला घूमते रहे गाँव में डंका बजाते रहे की पुलिस को तो पैसा दिया उ हमरा बार नही उखाड़ लेगी। धरती पर दानवों का नंगा नृत्य?मनोहर,उसकी पत्नी ,उसके शुभ चिन्तक घटना के चार साल बाद आज भी याचक की मुद्रा में न्याय दाताओं से उम्मीद बंधे हुए बैठे हैं....अपने मासूम के हत्यारों को न्याय दाता के साथ मटर गस्ती करते देखती निगाहें बहुत कुछ कह जाती है। आप में से हर पाठक इस घटना की तह में जा कर जानकारी ले सकता है की पिछले चार सालों में कितने एस पी आए गए लेकिन आज की तारीख तक वह परिवार हम कलम चलाने वालों से यह सवाल करता नजर आ रहा है,जिस से बचने की कोशिश करते हुए हम और हमारा शाशन प्रणाली अपनी धुन में मस्त है और वह पीड़ित शून्य में टकटकी लगा कर हिब रहा है....उसकी आंखों से अब आंसू की बूंदे भी नही टपकती हैं...प्रतिशोध की लावा दिखती है .....हताशा और याचना की जगह विक्षिप्तता और शून्यता ने ले ली है। अविनाश जी ऐसे न जाने कितने मनोहर और गणेश की जीवित मृत आत्माएं हमारे गली मोहल्ले में चीत्कार कर रही है और हमारा प्रयास उनके लिए सचमुच नपुंसक हो गया है। तो क्या हो उपाय इस सदी व्यवस्था से त्राण पाने के लिए,आख़िर इन पीड़ित,वंचित को लोकतंत्र में जीने का भी हक़ नही दिया जा सकता है?आज वर्षों बाद गणेश के लाश की बदबू मेरे बंद नाक में घुस कर दिमाग को बदबूदार बना रही है,उबल रहा हुं मैं ...फट रहा है मेरा मन ...पूछना चाहता है सवाल उन मादर चोदों भौन्सरी वालों से की न्याय अगर इतनी जटिल है तो अब मत दो न्याय की दुहाई.....मत पधाओ संविधान का पाठ.....इसलिए मैंने अपनी जो राय बनाई है वह यह है की अपने घर को अपने मोहल्ले पर हो रहे ऐसे वज्र्पातों को रोकने के लिए हम कलम कारों को जमीं पर निष्कर्ष खोजने की जरुरत है न की अफगानिस्तान,गाजा और इराक़ के लोगों की समस्याओं को देख कर अपनी उर्जा व्यय करने से बेहतर यह होगा की पहले हम अपने घर को दुरुस्त करने की कवायद प्रारंभ कर दें। वैसे छोटी मुंह बड़ी बात नही करना चाहिए इसलिए भूल-चुक माफ़ करेंगे अविनाश भाई।
10 comments:
ये मुसलमानों वाला विषय अविनाश का फ़ेवरेट विषय है, अपने घर में आग लगी है, और ये महाशय दूसरे का हालचाल जानने उसके घर जाने के लिये लोगों को उकसा रहे हैं, इन्हें न कश्मीरी पंडित दिखते हैं, न दिल्ली के मारे गये सिख… लगता है कुछ ब्लॉगरों को भी अब विदेश से पैसा मिलने लगा है, विषय चबाने-चूसने के लिये…
हिला दिए भाई आप तो.
काफ़ी दिनों से पढ रहा हूँ भड़ास-मोहल्ला को लेकिन कोई भी आगे आकर कैसा भी ज्वलंत मुद्दा उठाने की कोशिश भर नहीं कर सका है,
क्योंकि शायद ये कोशिश टी.आर.पी. से मेल नहीं खाती है, लेकिन इससे भी इतर आपने जो लेख लिखा है वो वाकई में हिला देने वाला है और उन लोगों की आंखे खोलने वाला है जो सिर्फ़ प्रसिध्द होना चाहते हैं, वो लोग महत्वाकांक्षी भी हैं और पोपुलैरिटी ईगो के शिकार भी हैं, वो कुछ भी उगल देने वाले भी होते हैं लेकिन वो जहर की जगह अब फ़ूल ही उगल रहे हैं.
'गाजा'-- पता है इसके बारे में लिखा गया एक भी अंग्रेजी शब्द उसे गूगल की सर्च रेटिंग में पहले पन्ने पर खड़ा कर देता है,क्योंकि इस एक शब्द के ऊपर कितनी राजनीति और चंद डॉलर कमाने की मानसिकता छिपी हुयी है वो शायद आप नहीं जानते लेकिन ये वो ही जानते हैं जो विश्व में होने वाली घटनाओं की जलती आग से अपने हाथ सेंकते हैं,
वैश्विक सहानुभूति और विदेशी चंदा इसके परिणाम हैं.
सीधा फ़ंडा है अगर सहानुभूति पानी हो तो ब्लॉग,रेडियो,ई-मेल इश्तहार आदि में किसी लाश,औरत और बच्चे की तस्वीरें लगा दो वो हिट और दया का पात्र मिनटों में बन जायेगा.
और ये लोग इसके आगे-पीछे की परवाह तक नहीं करते
भुज,निठारी,सुनामी आदि में ये गिरगिट लोग आगे तो आ गये लेकिन अब ये लोग कहाँ हैं?
और ये गाजा पट्टी पर क्या कर रहे हैं?
ये सवाल खुद उन लोगों को अपने आप से पूछना चाहिये क्योंकि पहले भी वो ऐसे बेकार के कामों में अपना समय बर्बाद करते चले आ रहे हैं
कमलेश मदान
बहुत अच्छा। मन के विचलित होने के बावजूद आपने अपनी पीड़ा को सही स्वर देने का प्रयास किया है। हां, शब्दों का संस्कार बनाए रखें, यह मेरा व्यक्तिगत अनुरोध है आपसे। आशा करता हूं, समय अवश्य बदलेगा। रामधारी की धरती अपराधों के लिए, उनपर रोकथाम की पहल के लिए जानी जाएगी।
अविनाश को पैसा मिला है मुसलमानो की आवाज उठाने के लिये चाहे गलत हो या सही ,उसे पैसे कमाने है जी,आप कहा से ये पंडित की बात उठालाये .इस को पढकर तो अविनाश का मोहल्ला खुश होगा चलो एक से तो बदला लिया गया. इस मोहल्ले की मानवता सिर्फ़ दलितो और मुस्लमानो के लिये ही दिखती है
मोहल्ले को सिर्फ़ मुसलमानो की आवाज उठाने के लिये चाहे गलत हो या सही पैसा मिल रहा है ,उसे पैसे कमाने है जी,आप कहा से ये पंडित की बात उठालाये .इस को पढकर तो अविनाश का मोहल्ला खुश होगा चलो एक से तो बदला लिया गया. इस मोहल्ले की मानवता सिर्फ़ दलितो और मुस्लमानो के लिये ही दिखती है
मनीष राज, आपकी चिंता में शरीक और आपकी भाषा का मुरीद हूं। हम कुछ न कर पाएं तो भी इतना तो करें कि हरामी लोगों को संतत्व का अनुभव न करने दें। किसी मच्छर तरह उनके कान में घुसकर भिनभिनाते रहें। उनकी मोटी खाल में सूंड़ धंसाकर उन्हें दो पल खुजलाने को मजबूर कर दें। कम से कम इतना बेचैन तो उन्हें कर ही दें कि अपनी न सही, भाषा की दुर्गति पर ही वे कुछ बोल बैठें। आज नहीं आएंगे, दस-बीस साल बाद आएंगे, लेकिन ऐसे लोग भी अपने बीच से आएंगे जरूर, जो इनके खिलाफ गालियों से ज्यादा धारदार कुछ दूसरी चीजें आजमाएंगे..
थोड़ा छोटा लिखाअ कीजिए
कवि कुलवंत
http://kavikulwant.blogspot.com
AAP SABHI VARISHTH LEKHAKON KO HARDIK BADHAAI KI AAPNE MERE JAISE CHHOTE LEKHAK KA HAUSLA BADHAYA HAI.SABON KE AASHIRVAD KA AKANKSHI
JAI BHADAS
JAI YASHVANT
MANISH RAJ BEGUSARAI
मनुष्यता को तार-तार कर देनेवाला जघन्यतम कृत्य.
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