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26.3.08

जब हम असभ्य थे

जब हम असभ्य थे अँधेरी गुफाओं मैं रहते थे
कपडे नहीं पहनते थे
हमारा चेतना- बोध कितना परिपक्व था
हम पशु-पक्षियों की भाषा भी समझ लेते थे
आज हम सभ्य हैं ,निओंन रौशनी मैं रहते हैं
मगर कितने बोने और कद हीन हो गए हैं
की आदमी होकर आदमी की भाषा नहीं समझ पते हैं।
पंडित सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी ,आप यकीन मानिये अपुन आपकी भाषा समझ रहा है ,साला कुछ तो बी प्राब्लम जान पड़ती है साला अपुन या तो आदमी नहीं है या तो आप.......
ही ही ही

गौरव मिश्रा (वाराणसी) said...

tab sab kuchchh achchha tha. lekin bhadaasi nahi honge.

Anonymous said...

AB MAIN KYA BOLUN ,DOCTOR SAHEB AUR GAURAV BHAI NE TO MUNH KI BAAT CHHIN LI NIRAV DAA.