एक बेनाम आंसू मेरी आंखों मैं रहता है ,
जब भी तेरी याद आती है मुझ से कहता है ,
बह जाऊं या रूक जाऊं या धड़कते दिल की सदा बन जाऊं
बस अब टू इन आंखों को उस बेवफा का इन्तेजार रहता है
गर वह आ जाए सामने कभी चलते चलते
मेरी बेनाम धडकनों को नयी सदा दे जाए
कई अन कहे लफ्ज़ मेरे तहरीर हो जाए
गर वह अपने कुछ पल मेरे कर जायें
जानता हूँ ये के उसे प्यार मुझसे नही मगर
फ़िर भी बेवजह उससे प्यार करता हूँ मैं
शायद के कभी एक पल के लिए उसे ख्याल आए
कोई टू है जो मुझे चाहता है , मैं उसे प्यारी हूँ
और वह सब छोर के मेरे पास आ जाए
पर कहाँ ये सब टू इस बेनाम आँसू की हसरतें हैं
जो पूरी भी ना हो सकें, मिट भी ना सकें
इस बेनाम आँसू को बहने ना दूँगा मैं
बस उसकी मुहब्बत को ही दिल मैं जगा दूंगा में।
साभार एक पाकिस्तान के मित्र से
3 comments:
रजनीश भाई,कितनी भयंकर कविता लिक्ख दिहे हौ हमका तो रुलाई आवै लाग अब बताएं कि का कीन जाए? प्रभु,मुंबई आये हो तो एक फोन ही कर लिया होता ,नाराज हो क्या?
badhiya hai bhaya
अरे वाह वाह हमर मित्र के लिखल कविता दो गो बुजुर्ग के नीक लागल बा। मजा आ गवा ।
वैसी डॉक्टर साब का बताये नाम्बर्वे नही है वैसे भी नही टू बड़े भाई से बत्वा टू कर ही लेते .
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