हंसती आंखों में भी गम पलते हैं पर कौन जाए इतनी गहराई में।
अश्कों से ही समंदर भर जाएंगे बैठो तो जरा तन्हाई में।।
जिंदगी चार दिन की है इसे हंस कर जी लो।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।
तुमसे मिलने की चाहत हमे कहां कहां न ले गई।
वफा का हर रंग देख लिया हमने तेरी जुदाई में।।
जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।
7 comments:
अबरार अहमद भाई अब किस किस शेर की तारीफ़ करे हर शेर एक से बड कर एक हे,बहुत बहुत शुक्रिया इतने अच्छे शेरो के लिये.
जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।
अबरार अहमद भाई अब किस किस शेर की तारीफ़ करे हर शेर एक से बड कर एक हे,बहुत बहुत शुक्रिया इतने अच्छे शेरो के लिये.
जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।
अबरार अहमद भाई अब किस किस शेर की तारीफ़ करे हर शेर एक से बड कर एक हे,बहुत बहुत शुक्रिया इतने अच्छे शेरो के लिये.
जिस सुकून के लिए भटकता रहा दर दर अबरार।
या खुदा वो छुप कर बैठी रही कहीं तेरी खुदाई में।।
अबरार भाई, क्या बात है जिंदगी का फलसफा भर दिया आठ लाईनो में।
मुझे आपकी पक्तियो -
"जिंदगी चार दिन की है इसे हंस कर जी लो।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।"
से आचार्य चार्वाक की एक उक्ती याद आ गयी, शेरो शायरी के बीच संस्कृत की उक्ति के इस्तेमाल के लिये माफ करियेगा -
यावत् जीवेत सुखं जीवेत, ऋणंकृत्या घृतं पिबेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:।।
क्या करे अबरार भाई जमीनो जात के लिये लडने वाले नासमझ आजतलक आपकी व चार्वाक की बात सुनने समझने को तैयार नहीं हो रहे है।
अबरार भाई, क्या बात है जिंदगी का फलसफा भर दिया आठ लाईनो में।
मुझे आपकी पक्तियो -
"जिंदगी चार दिन की है इसे हंस कर जी लो।
क्या रखा है आखिर जमीन ओ जात की लडाई में।।"
से आचार्य चार्वाक की एक उक्ती याद आ गयी, शेरो शायरी के बीच संस्कृत की उक्ति के इस्तेमाल के लिये माफ करियेगा -
यावत् जीवेत सुखं जीवेत, ऋणंकृत्या घृतं पिबेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:।।
क्या करे अबरार भाई जमीनो जात के लिये लडने वाले नासमझ आजतलक आपकी व चार्वाक की बात सुनने समझने को तैयार नहीं हो रहे है।
very beautiful...
very impressfull.
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