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24.4.08

मनीषा नाम के हिजड़े का भड़ासियों द्वारा बहिष्कार प्रशंसनीय है,यही होना चाहिये.......

एक तरफ भड़ास से जुड़े लोग भावुक होने का नाटक करते नहीं थकते हैं, लोगों की बातों में मीन-मेख निकालते नहीं थकते हैं, महिला-दलित चिंतन का घंटा इधर भी पूरी ताकत से बजाने से पीछे नहीं हटते हैं तो ऐसे में भला इनके बीच में एक हिजड़े का क्या काम हो सकता है? उसे तो भगवान ने भी दंडित कर रखा है तो भला हम जैसे भावुक किस्म के भड़ासी उसे अपने बीच क्यों जगह दें। इसलिये सबसे सुन्दर तरीका अपनाया है कि इसे तो बस नज़रअंदाज करे रहो, इग्नोर करे रहो तो एक दिन अपने आप ही हौसला पस्त हो जाएगा और वापस लौट जाएगा अपनी नारकीय दुनिया में जहां से आया है। हम जैसे कुछ दो-एक जड़बुद्दि लोग हैं जैसे कि यशवंत दादा,मुनव्वर आपा और मैं जो उनकी ओर तवज्जो देते हैं बाकी लोग इस हिजड़े की तरफ तो देखिये भी मत वरना अशुद्ध हो जाएंगे इसका लिखा पढ़ कर कहीं आप भी हिजड़े बन गए तो गजब हो जाएगा। इसलिये बेहतर है कि लड़कियों को प्रोत्साहित करिये जो कि पुण्य का काम है,महिला मुक्ति का पुनीत कार्य है या फिर किस्सागोई और कविताओं का हलुआ सानिये और एक दूसरे को चटाते रहिये। अगर किसी हिजड़े के लिखे पोस्ट पर कमेंट कर दिया तो उसकी हौसलाअफ़जाई हो जाएगी जोकि हमारे सभ्य समाज के लिये ठीक नहीं है। आज लिख रहा है कल को हमारे साथ बैठ कर खाना खाएगा मुझे तो ये सोच कर भी उल्टी आ रही है। सुन्दर लड़कियों की बात ही कुछ और है मुनव्वर आपा के शब्दों में कहूं तो सुन्दर लोगों का तो पादना भी लोगों को संगीत और हगना भी व्यंजन बनाना लगता है। मैं उन सभी भड़ासियों का आभारी हूं जिन्होंने मनीषा नामक हिजड़े को भड़ास में पर हाशिये पर सरका रखा है भले ही वो ऊपर सलाहकारों में हो। आप सबका हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए एक बार फिर से उनका पोस्ट पेल रहा हूं अब मैं बस आने वाले दस दिनों में यही एक पोस्ट दुराग्रही,हठी,दंभी की तरह से रोज सुबह-सुबह डाला करूंगा और आप लोग इसेनज़रअंदाज करके कविता-कहानी डालते रहना बस शाम तक फिर ये किनारे सरक जाएगा और आप लोग ऊपर आ जाएगें

4 comments:

Anonymous said...

रूपेश भाई,
ये आप कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो, ये हमारा भडास है, और यहाँ पे किसी को नाइंसाफी मिले ये सम्भव ही नही क्योँ की ये दलालों का अखबार नही की तेल लगाने वालों की ख़बर लगेगी और ना तेल लगाया तो हटा दी जायेगी, मनीषा जी हमारी सम्मानीय सलाहकार हैं और कोई माई का लाल इन्हे नजरअंदाज नही कर सकता, वैसी मुनवर जी ने सही कहा की सभी चुतिये को लोंडियों की चूत बड़ी प्यारी लगती है और बुढेहों या लोंडे , लोंडियों के व्यंजन का मजा सभी लेना चाहते हैं, बहन का लोडा हमारा समाज है ही दोगले चरित्रों से भडा हुआ है , की हमारी बीवी को कोई ना देखे और हम सारे की बिवियौं की चढ्ही के अंदर तक झाँक लें।
वैसी मुझे बहूत दिनों से ये अहसास हो रहा है की भडास अपने मकसद से भटकता सा लग रहा है, ये मुद्दों पर भडास निकलने की जगह है ना की कहानियाँ और कवितायेँ करने की जगह, जिसे देखो कोई ना कोई कुछ ना कुछ पेले जा रहा है , अबे भडासी मुद्दे उठाऊ जिसे तुम्हारे चुतिये संपादक ने उठाकर कबाड़ में डाल दिया क्यूंकि दोगले मालिकों को वह पसंद नही था, यहाँ सब पसंद है पेलो पेलो और जी भर के पेलो, मगर नही जो अपने बाथरूम मैं भी कविता ना पढ़ सके यहाँ पेल रहे हैं, साले कहानी सुन सुन के चुतड् में आग लगी जा रही है, कहने को चौथा पाया मगर साले में बकरी बाँध दो तो बकरे इस पाये को ले के भाग जाए,भाई मेरा मन किसी को गरियाने का नही है, मगर रूपेश भाई का गुस्सा जायज है,

अरे यहाँ अपने मुद्दे उठाओ और लोगों के मुद्दों पे ध्यान दो,
कम से कम समाज के काले चेहरे जिसे गरिया तो रहे हो मगर ख़ुद भी काले हो से दूर हटो और अपने चरित्र को चरितार्थ करो।

subhash Bhadauria said...

डॉ.रुपेशजी आपने नारी वादियों को अच्छा पकड़ा
मनीषा जैसे विकलांग जनों की समस्या उन्हें नज़र नहीं आयेगी वे तो बेचारी रोती बिलखती नारी के टसुये पोछने को कंधो की लाइन लगा देंगे और चुपके से रसमलाईपर हाथ पांव दोनों साफ कर देंगे.
भाई ये नारी नाम की जड़ी बूटी चिरकाल से देव दानव दोनों को विचलित करती आयी हैं भड़ासी भी इसके तिलिस्म से कैसे बचे रह सकते है.जहा कमसिन सुंदर नारी की रचना देखी पहुँच गये लुच्चे आपकी बहुत अच्छी कविता है. अरे कविता अच्छी नहीं गधैया को फोटो अच्छा है चाटो चाटो.
हम क्या करें हमसे भड़ासी ठुकासी सब दूर दूर भागते हैं पता है क्यों गोलाइयाँ और गहराइयाँ जो हम में नहीं है. हमने तो फिलहाल लिखना ही छोड़दिया क्या करें पर आज आपकी पोस्ट ने मुँह खुलवा लिया.आप धैर्य बनायें रखे.आमीन
मैने एक ग़ज़ल में इन कमजर्फों को इस तरह पेश किया था.सचित्र देखे.
http://subhashbhadauria.blogspot.com/2008/01/blog-post_14.html

ग़ज़ल
अपने अपनों को बाँटते देखो.
एक दूजे की चाटते देखो.

हंस और बगुले जाल डाले हैं,
मिलके मछली को फाँसते देखो.

कुत्ता रोया है हिचकियाँ लेकर,
एक हड्डी के वास्ते देखो.

चील कौवों को भी मिली जूठन,
रह गये लोग ताकते देखो .

भेड़िए आ गये हैं बस्ती में,
भोली भेड़ों को काँपते देखो.

आग मिलकर जलाओ लोगो अब,
रहनुमा के ना रास्ते देखो.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.15-08-08 समय-09-30AM

अबरार अहमद said...

डाक्टर रूपेश की इस पोस्ट पर राय पहले दे चुका हूं। डाक्टर भदौरिया कि गजल इतनी अच्छी लगी कि कमेंट बाक्स तक मुझे खींच लाई। इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं।

Anonymous said...

भदोरिया जी, रुपेश भाई के मर्म को तो आपने समझा ही साथ मी शानदार घजल भी मार डाली ,
वाह वाह शानदार है.