जो विचाधारा लोगो पर थोपी जाती है उसकी कोई जीवन रेखा नहीं होती कुछ समय बाद समाज द्वारा नकार दी जाती है लेकिन जो विचारधारा लोगो द्वारा अपनाई जाती है अथवा मानवतावाद का पक्ष लेती है वह कभी ग़लत प्रभाव नहीं डालती वह भावनाओ को ठेस नहीं पहुंचाती, परन्तु सभी धर्मो एवं लोगों को साथ लेकर चलते हुए हितकारी होती है सभी लोग दूसरों के ऊपर शासन करना चाहते है, पर कोई पालन करना नहीं चाहता अगर कोई सेवा करता है तो लोग उसके सामने झुकते हैं जबरदस्ती झुकाने वाला तो घमंडी है और मानवतावाद के ऊपर कलंक है आरोप- प्रत्यारोप करते हुए सभी लोग अपने विचारधारा में संकीर्ण हो चुके हैंकोई किसी की सुनना नहीं चाहता सभी लोग अपने-आप में अपने को सही मानते हैं और लेखक भी बिना सुने दिन-रात लोकतंत्र की हत्या में लगे हुए हैं इन्हे केवल अपनी संकीर्ण विचारधारा से मतलब है, दूसरों की भावनओं से नहीं व्यंग लिखते समय ये सारी सीमाए पर कर जातें हैं ये केवल अपनी संकीर्ण विचारधाराओं के तुष्टिकरण में लगे दिखते हैं और आज के दौर में तो मीडिया सहित आम लोगो की भाषाओं में भी संकीर्णता आ गई हैं अब इन्सान की नजरों में इन्सान की कीमत नहीं रही विचारको को अपने अलावा सभी लोग बेवकूफ लगते हैं क्या यही उस वृक्ष का फल हैं जिसे प्रसिद्ध लेखकों नें सीचा था, जिसे गांधीवादी लोगो ने सीचा था जो भारत अपने उदारवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध था उसका लेखन राजनीती से भी घृणित हो गया अब व्यंग केवल हँसी-मनोरंजन का और दोष गिनने का साधन बनकर रही गया है लेखक भारत की रीढ़ की हड्डी हैं, अगर इन्होनें संकीर्णता अपनाई तो भारत को अपनी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन करवाना पर सकता है
9.9.08
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2 comments:
बहुत ही ज्ञानवर्द्धक बातें लिखी है आपने।
कोहली जी,
भड़ास है, जिसे उगला आपने.
बेहिचक उगलते रहिये, इसी बहने लोगों को कड़वी बातें चखने को मिलेंगी.
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