अगर हमारे आप में से आर्थिक रूप से मजबूत कोई साथी शीघ्र ही उनके साथ न खड़ा हुआ तो संभव है कि इसी पोर्टल पर हम-आप जल्द ही उनके गुजर जाने की खबर गमगीन होकर पढ़ें। मन ही मन श्रद्धांजलि देने के बाद उनकी यादों को अपने मस्तिष्क के आर्काइव में दफन कर रुटीन के काम-धाम निपटाने में लग जाएं। जो व्यक्ति अपनी जिंदगी में हमेशा सच के पाले में खड़ा हुआ, झूठ से लड़ा, मुश्किलों से जूझते हुए आगे बढ़ा, वो अब न चाहते हुए भी जिंदगी से हार मानने की कगार पर पहुंच गया है।
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2 comments:
दादा,क्या अब तक किसी आर्थिक रूप से मजबूत साथी ने मदद के लिये आपको बोला? मुझे तो किसी ने किसी ने अब तक चूं-चां तक नहीं करी....
दादा,
पैसे वाले होने के बाद लोग साथी नही रहते, मदत करते वो हैं जो पैसे वाले नही होते हैं और मदत चाहिए भी इन्हें ही होता है, दस हजार से लखटकिया होने वालों के मन में पत्रकारिता की व्यवसायीकता के अलावे कुछ नही.
और हम स्साले चूतिये भडासी बस भड़ास भड़ास कर सकते हैं, पैसे वाले जो नही हैं, मगर फ़िर भी औकात के हिसाब से अपनी अपनी चड्ढी बेचने के लिए तैयार हैं.
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