भाई लोगों हिंदी दिवस निकट आ रहा है और इसलिये अभी से राजभाषा विभाग के कर्मचारी जो साल भर सुखी रहते हैं एक सप्ताह काम करेंगे। राजभाषा सप्ताह मनाया जाएगा। हिंदी-हिंदी करा जाएगा तो हम क्यों पीछे हटें? हम ही अपनी एक देसी हिंदी की एक रचना उगल रहे हैं जिसे जमें तो चख कर देखो भाई अच्छी लगे तो पूरी निगल लेना वरना उल्टी कर देना। एक बात का यकीन है कि अगर गले से नीचे उतर गयी हजम हो जाएगी,पेट खराब न होगा वैसे रचना सुपाच्य है.......
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
यस - नो के रोग सै भासा बीमार भई,
बोली की गोली सूं जाए पहलवान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
लेखन के खेतन में क-ख-ग जोत बोय
एक-एक विधा कूं सौ-सौ खलिहान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
रीत रह्यौ कोस जो हिंदी कौ मीत मोए
रचना के गहना गढ़ इए धनवान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
रहन-सहन हाव-भाव बोल चाल लील लियौ
पच्छिम कौ कलचर जौ आज हमै रह्यौ चर
लरकन औ बच्चन को तनिक को सावधान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
ए-बी-सी भासा के भूसा को झटक फटक
अंगरेजी कागद कौ मरघट मसान करौ
देवन की लिपी लिखौ देसज अभिमान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
अम्मा और बाबूजी कहन में लजाए रहे
मम्मी और पापा जू पुरखन को भूल गए
दादन-परदादन को नैक तो सम्मान करौ
हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ
जिसका जिसका मन करे मीनमेख निकालने के लिये तो भड़ासी जनों जी भर कर कोसिये, गरिआइये कि देसी हिंदी क्यों लिखा क्या हिंदी भी विदेशी हो सकती है? तो बस इतना ही कहना है कि भाई पिछले साल हिंदी दिवस पर मैं एक विद्यालय में मंगवाया गया था वहां की प्रधानाचार्या ने मंच पर आकर बोला : डियर स्टुडेंट्स! इट इज़ हिंदी डे टुडे, दैट्सव्हाई वी विल स्पीक इन हिंदी टुडे टु सैलीब्रेट दिस डे.........(गिटिर-पिटिर) । इसलिये मैंने देसी हिंदी लिखने की गुस्ताखी करी है अगर गांव की मिट्टी की गंध याद आ जाए तो आप लोग भी लिखने का प्रयास करियेगा।
9.9.08
देसी हिंदी की एक रचना
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: देसी हिंदी, राजभाषा
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2 comments:
रुपेश भाई अच्छा भा की आप याद दिला दीन्ह्यो की देसी हिन्दी भी होत है। हम भदेस,देशज भी अग्रेजी के पाछे भाग रहैन। एमा कौनव के गलती आए ना सिवाए खुद के।
शेष अउ कबहूं.....
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डॉक्टर साहब,
हिन्दी के तथाकथित ठेकेदारों पर इस भादेसना हिन्दी का जो ठोस जुटा मारा है आपने वोह लाजवाब है,
किसी को अच्छा लगे किसी को बुरा, हमको इस से कोई परवाह नही, बस हिन्दी और हिंद के अनन्य प्रेमी है सो हिन्दी के ठेकेदारों को याद दिलाना, बेहतरीन रहा.
उदाहरण के साथ मगर इसमे मास्टर जी ही क्योँ ससुरे बाकि के कद्दू भी इंग्लिश पेल कर बड़प्पन झड़ने की जुगत में रहते हैं,
सबको हिन्दी का प्रणाम, बोलो या न बोलो
खुश रहो, खुश करो.
जय जय हिन्दी
जय जय भड़ास
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