राजस्थान में २००३ में श्री अशोक गहलोत की सरकार को हार का सामना करना पड़ा। तब यह चर्चा थी कि हाय कर्मचारी खिलाफ थे। बीजेपी सरकार ने आते ही पहले कर्मचारियों पर डोरे डाले। अब चुनाव के निकट तो वसुंधरा राजे ने उनके लिए ५ दिन का सप्ताह कर दिया। मतलब साल में १०५ तो शनिवार,रविवार हो गए। उसके बाद भारत में मेले पर्व होली दीवाली ईद बड़े बड़े नेताओं का जीना मरना ,१५ अगस्त ,२६ जनवरी ओर भी न जाने क्या क्या। हड़ताल,घेराव ,बंद तो गिने ही नहीं। इन सबको मिला कर कितने दिन सरकारी दफ्तर बंद रहेंगें इसकी कोई गिनती करे तो पता लगे कि कर्मचारी कितने दिन काम करेंगे। इस से तो अच्छा यही होता कि सरकार उनको घर बैठे तनख्वाह देने का एलन कर दे । किसी को काम होगा तो कर्मचारी के घर चला जाएगा। किसी को तकलीफ भी नही होगी। जिसने काम करना है वह तो करेगा ही लेकिन हरामखोरी करने वालों की ओर अधिक चांदी हो गई। ऐसा लगता है कि कोई भी पार्टी हारना नही चाहती चाहे उसके लिए उसको कुछ भी करना पड़े। जनता के पास कोई विकल्प है ही नहीं क्योंकि उसको जो मैदान में है उसको ही वोट देने है। जो जीत गया वह सरकार है। इस सिस्टम को बदला नही गया तो जनता की हालत जो होगी उससे बगावत अधिक दूर नहें रहेगी। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान में अभी आजादी या तो आनी बाकी है या फ़िर हिन्दुस्तानी जनता आजादी का अर्थ नहीं जानती ओर इसका नाजायज़ लाभ राजनीतिक दल उठा रहें हैं।
2.9.08
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