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आज दैनिक भास्कर में छापी ख़बर के अनुसार कुछ बाते जो मनमोहन सिंह जी ने भारत की जनता और संसद से
छुपायी परमाणु करार के बारे में-
परमाणु ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित रखने के आश्वासन का अर्थ भारत को परमाणु परीक्षण के परिणामों से बचाना नहीं है।* ईंधन आपूर्ति सुनिश्चित करने से आशय मात्र इतना था कि व्यापारिक स्पर्धा के कारण यदि कोई देश आपूर्ति रोकता है, तो अमेरिका उसे सुनिश्चित करेगा।* भारत ने यदि परणामु परीक्षण किया तो अमेरिका करार खत्म कर देगा, ईंधन आपूर्ति रोक देगा और दिए गए परमाणु आयटम व सामग्री वापस मांग लेगा।* हाइड एक्ट के तहत कुछ परिस्थितियों में संवेदनशील परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की जा सकती है, लेकिन करार के बाहर जाकर ऐसा करने का बुश प्रशासन का कोई इरादा नहीं है।* संवेदनशील प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और इसके लिए आवश्यक महत्वपूर्ण उपकरण मुहैया कराने के लिए करार में संशोधन का कोई इरादा नहीं है।
पूरी ख़बर यहाँ पढ़े -http://www.bhaskar.com/2008/09/04/0809040758_nuclear_deal.html
क्या ये सब जानते हुवे भी मनमोहन सिंह जी के लिए परमाणु करार करना इतना जरुरी था?
अगर हा तो क्यों?
जब भारत को इस करार से फायदा उठाने में कई सल् लगने वाले है और फ़िर भी इससे मिलने वाली बिजली महंगी
परेगी तो उन्होंने ये करार किया ही क्यों?
क्यों भारत की जनता और संसद को दोखा दिया?
क्यों भारत में वो बाते छिपा ली गई जिन्हें अमेरिका वाले पहले जी जानते थे?
क्या मनमोहन सिंह जी ये समझते है की भारत वासी वो नही जो भारत में रहते है बल्कि वो है जो अमेरिका में रहते है?
या मनमोहन सिंह जी बुश के जेर्खारीद गुलाम है जो किसी बात पैर ऐतराज उत्ता ही नही सकते थे?
कुछ भी हो अगर मनमोहन सिंह जी और सोनिया जी ने सब कुछ जानते हुवे भी देश की शान और सुरक्षा से समझोता करके उन्होंने ये करार किया है तो साफ है की उन्होंने देश से गद्दारी की है और ऐसे लोगो को देश कभी
माफ़ नही करेगा.
4.9.08
मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी गद्दार या बेवकूफ ?
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3 comments:
इस करार से आने वाले बीस से तीस साल में महज देश की कुल ऊर्जा जरूरतों की महज पांच से छह प्रतिशत बिजली मिलेगी.. वो भी काफी महंगे दरों पर. जहां तक तकनीक की बात है, इतिहास गवाह है कि दूसरे की तकनीक से कोई देश विकसित नहीं हुआ है. दरअसल ये बहुत बड़ा समझौता है जो बुश मनमोहन के बीच हुआ है.
न तो गद्दार हैं न ही बेवकूफ़ ये तो बहुत सयाने हैं। यह आचरण कमीनापन कहना उचित रहेगा.....
राजा जी,
बडा ही तेज अखबार है ये भाष्कर, क्योंकि अंग्रेजी अखबार ने तो एसा कुछ चेपा ही नही है, जो भी हो हमारे राजनेताओं का देश नही अपितु विदेश प्रेम और अपने अकाउंट प्रेम ही ऐसा है कि देश जाए भाड में,
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