प्रकाश चण्डालिया
टाटा के नैनो प्रोजेक्ट के लिए राज्य सरकार की ओर से सिंगुर के किसानों के साथ की गयी जबरदारी के खिलाफ ममता बनर्जी का 24 अगस्त से जारी हुआ धरना बदस्तूर जारी है, लेकिन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी की सदाशयता का सम्मान करते हुए ममता ने अपने अडिय़ल रवैये में कुछ ढ़ील दे दी, जिससे दुर्गापुर हाईवे पर माल-लदे हजारों ट्रकों का चक्का फिर से चलने लगा।
ममता की नरमी पर बंगाल के शहरी अंचलों, खासकर कोलकाता में जो प्रतिक्रिया आ रही है, वह शुकूं देने लायक नहीं है। कोलकाता के तमाम अखबार,विशेषकर टाटा के विज्ञापनों के लिए उनकी चाटुकारिता करने पर मजबूर बड़े घरानों वाले तमाई भाषाई व अंग्रेजी अखबार भी, यह दिखाना चाहते हैं कि ममता के आन्दोलन में दम नहीं रह गया था, इसलिए उन्हें अपने रवैए में ढील देनी पड़ी। पता नहीं, इस आकलन का सच्चाई से कितना वास्ता है, पर इतना जरूर है कि शहरी लोग जिस प्रकार से टाटा के नैनो प्रोजेक्ट की खिदमतगारी कर रहे हैं, उसका बंगाल की कमोबेश 70 प्रतिशत जनता से कोई लेना देना नहीं है। दलाल और मौकापरस्त लोग हर समाज और पार्टी में हैं, ममता की पार्टी में नहीं हों, ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन ,जिस अनुपात में दलाल और ठेकेदार किस्म के लोगों की जमात वामपंथी संगठनों में बढ़ रही है, उस पर दुख होना लाजिमी है। दुख इसलिए कि वामपंथियों ने यहां की सर्वहारा जनता को उसकी कृषि भूमि, उसके रोजगार के हक, उसकी शिक्षा, चिकित्सा आदि के लुभावने नारे देकर 30 सालों से लूटा है, गरीबों के अरमानों के साथ मुसलसल बलात्कार किया है। आज वही वामपंथी लोग सामर्राज्यवादी ताकतों के परचमबरदार बने घूम रहे हैं और उनका साथ दे रहा है बड़े घरानों वाला चाटूकार मीडिया।
दुष्यन्त कुमार ने ऐसे खुदगर्ज दलों के लिए ही लिखा था,
कहां तो तय चिरागां हरेक घर के लिए,
कहां मयस्सर नहीं चिराग इस शहर के लिए
शहरी लोग कुछ पल के लिए खुश हो सकते हैं कि दुर्गापुर हाईवे चालू हो जाने से ममता के तेवर ढीले पड़ जाएंगे, पर उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि गरीबों के पेट काटकर कार को रास्ता देना आज नहीं तो कल इस देश को अश्य भारी पड़ेगा।
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