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6.11.08

अपना-अपना कारगिल

दोस्तों बहुत ही विषम परिस्थिति सामने आने वाली है। आओ हम सब मिलकर युद्ध की तैयारी में लग जाएं। जब युद्ध करना ही है तो पहले उसकी ड्रेस का निर्धारण कर लें। सामान्य तौर पर इस युद्ध के लिये लोग सूट का इस्तेमाल करते हैं। जरूरी है कि अपनी-अपनी शादी के सिलाये सूट निकालकर उनपर स्त्री-सिस्त्री करवा लें। एक अदद जूते भी खरीद लें। ठोस और जमाऊ एड़ी वाले जूते को प्राथमिकता दें। अगर सूट नहीं है तो ठीक-ठाक सी जैकेट से भी काम चल सकता है। युद्ध का बिगुल नौ तारीख को बजने जा रहा है। आपको कब इस युद्ध में जाना है इसके लिये घर में रखे कार्ड देख लें। नहीं समझे। अरे दद्दू। शादी में खाने जाओगे तो युद्ध तो करना ही होगा। तुम क्या सोच रहे थे बार्डर पर तुम्हें भेजने का रिस्क लूंगा। कतई नहीं। तुम जाकर कारगिल की लड़ाई लड़ोगे और गोल्ड पाओगे। अरे भाई बीबी को सभी स्टाल का नाश्ता चखा दिया तो समझ लेना वीरता पदक मिल गया।
ध्यान रहे, पुराने समय की कहावत को मत भूल जाना। जिसने की शरम उसके फूटे करम। शादी में चाहे लड़की वाले की ओर से जाओ चाहें लड़के वाले की ओर से अपना टारगेट मत भूल जाना। सबसे पहले खुद पानी की टिकिया की लाइन में लगना और भाभी जी को भल्ले के लिए खड़ा कर देना। लाइन में लगते समय कतई बच्चे और बूढ़े का लिहाज मत कर जाना। यूं खड़े हुए तो बर्तन खाली होने के बाद ही नम्बर आयेगा। अपने सूट की क्रीज की चिन्ता की तो समझ लेना गये काम से। पता नहीं कब कोई भाई, भाभी या माताजी पीछे से आपके सूट पर दही या सौंठ टपका दें।
अपने दास जी इस मामले में बहुत ही एक्सपीरेंस्ड हैं। बिल्कुल अमेरिका की तरह। कोई लाइन नहीं, सब जगह बीटो पावर का इस्तेमाल। भैये सबसे पहले टिकिया वाले के पास पीछे से जाते हैं और रौब से कहते हैं, छोटू मजे में है। कैसा चल रहा है। अब टिकिया वाले को छोटू कहो या बड़को सब चलता है। बेचारा खींसे निपोर देता है और दास जी अचक से दोना उठाकर बढ़ा देते हैं जरा चखइयो तो। कैसा पानी बनाया है तूने। दास जी अपने साथ एक-दो चमचे को ले लेते हैं। कभी भल्ले वाले से पूछते हैं कोई चीछ कम तो नहीं। भल्ले वाला दमक कर बोल देता है सब ठीक है बाऊजी। बस हो गया दासजी का काम। हाथ बढ़ा कर कह देते हैं जरा दिखइयो तो कैसा माल डाल रहा है तू। दास जी एक-एक करके सभी स्टाल का माल चख लेते हैं।
ये दास जी के एक्सपीरेंस का मामला है। आपको तो आमने-सामने का युद्ध ही करना है। कभी इसको झिड़का, अरे क्या तमीज नहीं है भाई। पैंट पर दही गेर दिया। इसी बीचे पीछे से कोई बच्चा निकला नहीं कि पूरी पैंट का कबाड़ा। ऐसे में बड़बड़ाने के अलावा क्या कर सकते हैं। पहले खाने को तो मिले। पिछली बार चचे शादी में गये तो भूखे ही आ गये। एक स्टाल पर गये तो वहां भाभी और चाची जी को ही आगे करते रहे। यूं ही पहले आप-पहले आप कहते-कहते शाम से रात हो गयी और प्लेट साफ की साफ ही रही। बाहर निकले तो लिफाफा थमा दिया लड़की के पिता के हाथ में। उन्होंने भी पूछ लिया, अरे भाई कुछ लिया कि नहीं। बिना लिये मत जाना। अब उन्हें कौन बताये, कुछ हो तो लें।
पिछली बार अपने एक दद्दू भी गाम से पहली बार शहर की शादी में आ गये। अंदर पहुंचे तो सबसे पहले छोरी के पिता को ढूंढने में लग गयी। लड़की के चाचा मिले तो नमस्ते कर दी। एक बार नमस्ते कर आये पर कोई असर नहीं। इसके बाद एक-एक करके दर्जन भर बार नमस्ते कर आये। बार-बार सोच रहे कोई खाने को पूछे। किसी ने उनसे खाने को नहीं पूछी। बेचारे सोच रहे थे कोई एक बार तो कह दे कुछ खा लो दद्दू।
इस युद्द में जो भी अपने दोनों हाथों में दोने लेकर निकलता है वह खुद को राणा प्रताप से कम नहीं समझता। बाहर सबसे पहले दोने बीबी को थमाता है फिर अपना कोट संभलता है। बड़ी मुश्किल से मिला। लो चुन्नू तुम भी चख लो। पता नहीं, अंकल ने कैसा इंतजाम कराया है।
नाश्ते के बाद चुन्नू के पापा खाने की ओर गये और प्लेट में एक-एक करके सब कुछ भर लाते हैं। यही खाने का दस्तूर है। बार-बार लाइन में कौन लगे। कभी-कभी तो ऐसा लगता है मटर पनीर में दही ज्यादा पड़ गया या रसगुल्ला थोड़ा चटपटा है। कभी दाल मीठी सी लगने लगती है तो कभी मिठाई नमकीन। जब लोग सब ओर से निपट लेते हैं फिर ध्यान आती है कि वो शादी में मेहमान है। अपनी घरवाली से कहते हैं सुनो, वो लिफाफा जरा दे आओ फिर चलें। ये युद्ध किसी कारगिल से कम नहीं है। फिर चलो। तैयार हो जाएं।
पंकुल

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