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17.11.08

महाकवि सेठिया को रुखी विदाई

प्रकाश चंडालिया
कोलकाता का राजस्थानी समाज शायद सो गया है। सोया नहीं है तो निसंदेह अपनी सौजन्यता के समृद्ध पारम्परिक पथ से विमुख हो रहा है। धरती धोरां री और पाथळ र पीथळ जैसे अमर गीतों की रचना करने वाले, हिन्दी, राजस्थानी एवं उर्दू की 34 पुस्तकों के रचयिता महाकवि कन्हैयालाल सेठिया की श्रद्धांजलि सभाओं में उपस्थित लोगों की गिनती तो कमोबेश यही संकेत देती है। राजस्थानी समाज के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में कई दशकों तक सक्रिय रहने वाले सेठियाजी के महाप्रयाण को रोकना तो, माना, किसी के वश में नहीं था, पर उन्हें जागरूक समाज पूरी भावना से विदायी देता-यह तो वश में था। एक सप्ताह में अलग अलग स्थानों में सेठियाजी की दो सभाओं का आयोजन हुआ। दोनों सभाओं में मोट उपस्थिति गिनी जाए, तो 200 के आंकड़ों को पार नहीं कर पाएगी।राजस्थान परिषद के साथ सेठियाजी का जुड़ाव उतना ही गहरा रहा, जितना उनकी अपनी रचनाधर्मिता से। इस परिषद के साथ वे वर्षों तक आत्मीय भाव से प्राण पुरुष के रूप में जुड़े रहे। पर लगता है, वर्तमान में परिषद की बागडोर संभालने वालों के मन में उनके योगदानों पर उत्साह कम, उदासीनता अधिक थी। आम तौर पर राजस्थान परिषद के आयोजनों में ओसवाल भवन के पूरे तल्ले में कुर्सियां लगाई जाती हैं, लेकिन सेठियाजी की शोकसभा में होने वाली उपस्थिति का अंदाजा इन्हें पहले से ही था, सो आधे हॉल को खाली छोड़ दिया गया। जितने में कुर्सियां बिछी थीं, उनमें भी कुछेक मेहमान को तरस रही थीं। राजस्थान परिषद की वार्षिक स्मारिका में प्रवासी राजस्थानियों की जितनी प्रतिनिधि ग्राम संस्थाओं के नाम प्रकाशित होते हैं, उनमें से कईयों के प्रतिनिधि नदारद थे। क्या यह इन संस्थाओं का सामाजिक कर्तव्य नहीं था कि जिन सेठियाजी ने अपना पूरा जीवन राजस्थान और राजस्थानी भाषा के लिए खपा दिया, उनके सम्मान में श्रद्धा के दो फूल चढ़ा आते? प्रतिनिधि संस्थाओं के साथ राजस्थान परिषद का कितना आन्तरिक सम्बन्ध है, यह इसी से उजागर होता है।मंच पर अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के निवर्तमान होने जा रहे महामंत्री मौजूद थे, जबकि अन्य पदाधिकारियों के पास फुर्सत नहीं थी। शायद सेठियाजी का आकलन लोग ऐसे ही करते हैं। सेठियाजी जन्मना सेठिया होकर भी आमजन के कल्याण के लिए सक्रिय रहे। हरिजनों के लिए खड़े हुए, पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा, राजस्थानी के लिए भूख हड़ताल पर बैठे, नेताओं से लोहा लिया। पर उन्हें प्रवासी राजस्थानी समाज ने इतनी जल्दी भुलाने का बीड़ा उठा लिया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।राजस्थान परिषद चाहता तो इस शोकसभा को संकल्प सभा में तब्दील करवा सकता था। सेठियाजी के महाप्रयाण के साथ राजस्थानी को संविधान की मान्यता दिलाने का सपना खत्म नहीं हो गया है। परिषद के कर्णधारों से अपेक्षा है कि वे अब भी सकारात्मक सोच के साथ आगे आएं, ताकि राजस्थानियों की पहचान केवल लोटा-डोरी लेकर आने वालों के रूप में न रह जाए। सेठियाजी तो भाषा, संस्कृति और संस्कार लेकर आए थे। लोटा-डोरी वालों ने अर्थ का घड़ा भरा, पर सेठियाजी ने तो जीवन पर्यन्त साहस और स्वाभिमान का प्रसाद बांटा। जिस कोलकाता महानगर में राजस्थानी समाज की तमाम संस्थाओं के केंद्रीय कार्यालय हों, वहां राजस्थान के सदी के श्रेष्ठ कवियों में अग्रणी सेठियाजी के महाप्रयाण पर रूखी विदाई कई सवाल खड़ा करती है। जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है।

2 comments:

Shambhu Choudhary said...

जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है।
प्रकाश जी, जब इसी तरह का आक्रोस इस समाज के प्रति मेरा होता है तो आप मुझे रोक देते हैं। प्रकाश जी सच पुछें तो मेरा हृदय रोता है इस प्रवासी मारवाड़ी समाज को देख कर मन कई बार विचलित हो उठता है। क्या हम आने वाली पीढ़ी को यही सब दे कर जायेंगें? समाज ने सीताराम सेकसरिया, भवरमल सिंधी, सेठ गोविन्द दास, महावीर प्रसाद पोद्दार, ज्योति प्रसाद अगरवाला, डॉ.गुलाव चन्द कटोरिया, श्री हरीश भादानी, श्री सीताराम महर्षि, अम्बू शर्मा, गुरुवर कल्याणमल जी लोढ़ा, श्री कमल किशोर गोयनका, श्रीमती इन्दु जोशी, प्रतिभा अग्रवाल, कुसुम खेमानी, प्रतिभा खेतान, श्री दाउलाल कोठारी, श्री देवीप्रसाद बागड़ोदिया,श्री कन्हैयालाल सेठिया, न जाने अनगिनत नाम मेरे जेहन में गूंज रहें हैं जिनका नाम लिखने के लिए एक लंबी फेहरिस्त तैयार करनी होगी। पर इस समाज को पता नहीं किसका शाप लग गया है। जो समाज एक पुस्तक नहीं खरीद सकता पर लाखों रुपये शादी-समारोह में पनी में बहा देता हो, कोई विरोध करने वाल तक नहीं, समाज के युवकों को कोई दिशा देने वाला तक नहीं , जो नेता बन जाते हैं वे अपना नाम रोशन करने और खुद को महान बनाने के चक्कर में समाज को कितनी क्षति पंहुचाने में लगे हैं यह बात हम सोच भी नहीं सकते । हो सकता है कल मेरी भी मौत हो जाय। इसी दर्द को मन में छुपाये हुए 20 साल से इस प्रयास को बल देता हूँकि कम से कम 20-25 युवकों मेंस्शैत्य के प्रति रुचि पैदा कर सकूँ। आपके जैसे पत्रकार को सामने ला सकूँ। शायद समाज की थोड़ी सी तस्वीर को बदल सकूँ।- आपका ही
शम्भु चौधरी
कोलकाता।

Shambhu Choudhary said...

जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है।
प्रकाश जी, जब इसी तरह का आक्रोश इस समाज के प्रति मेरा होता है तो आप मुझे रोक देते हैं। प्रकाश जी सच पुछें तो मेरा हृदय रोता है इस प्रवासी मारवाड़ी समाज को देख कर मन कई बार विचलित हो उठता है। क्या हम आने वाली पीढ़ी को यही सब दे कर जायेंगें? समाज ने सीताराम सेकसरिया, भवरमल सिंधी, सेठ गोविन्द दास, महावीर प्रसाद पोद्दार, ज्योति प्रसाद अगरवाला, डॉ.गुलाव चन्द कटोरिया, श्री हरीश भादानी, श्री सीताराम महर्षि, अम्बू शर्मा, गुरुवर कल्याणमल जी लोढ़ा, श्री कमल किशोर गोयनका, श्रीमती इन्दु जोशी, प्रतिभा अग्रवाल, कुसुम खेमानी, प्रतिभा खेतान, श्री दाउलाल कोठारी, श्री देवीप्रसाद बागड़ोदिया,श्री कन्हैयालाल सेठिया, न जाने अनगिनत नाम मेरे जेहन में गूंज रहें हैं जिनका नाम लिखने के लिए एक लंबी फेहरिस्त तैयार करनी होगी। पर इस समाज को पता नहीं किसका शाप लग गया है। जो समाज एक पुस्तक नहीं खरीद सकता पर लाखों रुपये शादी-समारोह में पनी में बहा देता हो, कोई विरोध करने वाल तक नहीं, समाज के युवकों को कोई दिशा देने वाला तक नहीं , जो नेता बन जाते हैं वे अपना नाम रोशन करने और खुद को महान बनाने के चक्कर में समाज को कितनी क्षति पंहुचाने में लगे हैं यह बात हम सोच भी नहीं सकते । हो सकता है कल मेरी भी मौत हो जाय। इसी दर्द को मन में छुपाये हुए 20 साल से इस प्रयास को बल देता हूँकि कम से कम 20-25 युवकों मेंस्शैत्य के प्रति रुचि पैदा कर सकूँ। आपके जैसे पत्रकार को सामने ला सकूँ। शायद समाज की थोड़ी सी तस्वीर को बदल सकूँ।- आपका ही
शम्भु चौधरी
कोलकाता।