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26.11.08

बह मुझे अब भी माँ कहता है

भड़ास से इतने कम समय में जो रिश्ता बना है उसे में जिंदगी का सबसे खूबसूरत मुकाम मानता हूँ और मैन शुक्रिया करना चाहता हूँ भड़ास के उन तमाम लोगों का जिन्होंने मुझे अपनी भावनाए व्यक्त करने के लिए ये मंच दिया !!भड़ास पर आज मैं अपनी सबसे प्यारी कविता प्रकाशित कर रहा हूँ जिस कविता ने मुझे लिखना सिखाया और आगे बढने की प्रेरणा दी ..हलाकि मैं कोई कवी नहीं हूँ पर भावना तो हर दिल में होती है है सो मेरी दिल की भावना आपके सामने है !!इस कविता की एक और ख़ास बता ये है की यह कविता दैनिक भास्कर रसरंग में प्रकाशित हो चुकी है और यह कविता मेरे ब्लॉग पर भी नहीं है क्यों की हमारा घर तो सूना ही रहता है ..इसलिए घर सजाने का मतलब नहीं है !!!तो अहसास कीजिये इस खूबसूरती का !!!!
वह मुझे मां कहता है।
वह अब भी मुझे मां कहता है।
सताता हैं रुलाता है
कभी हाथ उठाता है पर
वह मुझे मां कहता है।
मेरी बहू भी मुझे मां कहती हैं
उस सीढ़ी को देखो,मेरे पैर के
इस जख्म को देखो,
मेरी बहू मुझे
उस सीढ़ी से अक्सर गिराती है।
पर हाँ,वह मुझे मां कहती है।
मेरा छोटू भी बढिया हैं,जो मुझको
दादी मां कहता है,
सिखाया था ,कभी मां कहना उसको
अब वह मुझे डायन कहता हैं
पर हाँ
कभी कभी गलती सें
वह अब भी मुझे मां कहता है।
मेरी गुड़िया रानी भी हैं ,जो मुझको
दादी मां कहती है
हो गई हैं अब कुछ समझदार
इसलिए बुढ़िया कहती हैं,
लेकिन हाँ
वह अब भी मुझे मां कहती है।
यही हैं मेरा छोटा सा संसार
जो रोज गिराता हैं
मेरे आंसू ,
रोज रुलाता हैं खून के आंसू
पर मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि वे सभी
मुझे मां कहते है।
--संजय सेन सागर
10.02.2006
परिचय
संजय सेन सागर
जन्म 10 जुलाई 1988 म.प्र सागर
उपलब्धि
संजय सेन सागर की इसी कविता ''बह मुझे माँ कहता'' है को ब्राइटनेस पब्लिकेशन ऑफ दिल्ली की तरफ से राइस ऑफ राइटर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

8 comments:

love-is-life said...

गजब की रचना है संजय जी ..सच बेहद खूबसूरत और बेहद प्रभावशाली
आपकी रचना सीधी दिल मे उतर गयी है
आपने जिस तरह से माँ के दर्द को बताया है ..मैं आपको सलाम करती हूँ!!!

sanjay jain said...

श्री संजय जी की रचना माँ ! बहुत ही भावनात्मक एवम मन को झक झोर देने वाली है / इस जगत में दो ही पूज्य है एक ब्रह्मा और दूसरा माँ ! क्योंकि ब्रह्मा ने इस स्रष्टि को बनाया है और उस पर मनुष्य की रचना की परन्तु स्वयम ब्रह्मा भी मनुष्य को जन्म नहीं दे सका / मनुष्य को जन्म देने के लिए ब्रह्मा को भी माँ की रचना करनी पड़ी अत ब्रह्मा के साथ माँ भी इतनी ही पूज्य है / पुन साधुवाद ........
मुनि श्री तरुण सागर जी अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है एवं महाराष्ट्र में है / रचना बहुत समय पहले लिखी गई थी परन्तु पब्लिश नहीं हो पाई /

sanjay jain said...

श्री संजय जी की रचना माँ ! बहुत ही भावनात्मक एवम मन को झक झोर देने वाली है / इस जगत में दो ही पूज्य है एक ब्रह्मा और दूसरा माँ ! क्योंकि ब्रह्मा ने इस स्रष्टि को बनाया है और उस पर मनुष्य की रचना की परन्तु स्वयम ब्रह्मा भी मनुष्य को जन्म नहीं दे सका / मनुष्य को जन्म देने के लिए ब्रह्मा को भी माँ की रचना करनी पड़ी अत ब्रह्मा के साथ माँ भी इतनी ही पूज्य है / पुन साधुवाद ........
मुनि श्री तरुण सागर जी अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है एवं महाराष्ट्र में है / रचना बहुत समय पहले लिखी गई थी परन्तु पब्लिश नहीं हो पाई /

Anonymous said...

माँ माँ माँ ........एक बहुत ही सुखद अहसास है आपकी रचना बेहद भावनात्मक है इसलिए खुद को रोक नहीं सका...सच आप बहुत अच्छा लिखते हो

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

संजय जी बहुत सुंदर रचना है उम्मीद है कि पिता के प्रति भी कुछ इससे मिलते जुलते भाव समेट सकेंगे।

Anonymous said...

saNJAYJEE aapne bhut achchha likha hai sch me maa yaisi hi hoti hai maa ke dard ko ak maa hi jan skti hai pita tokoi bhi bn skta pr maa nhi AASHA HAI AAP AAGE BHI YAISA LIKHTE RHEGE

Anonymous said...

saNJAYJEE aapne bhut achchha likha hai sch me maa yaisi hi hoti hai maa ke dard ko ak maa hi jan skti hai pita tokoi bhi bn skta pr maa nhi AASHA HAI AAP AAGE BHI YAISA LIKHTE RHEGE

News4Nation said...

हाँ रुपेश जी बिलकुल आपकी यह फरमाइश बहुत जल्द पूरी होगी