सरकार मीडिया को अपने इशारे पर नचाने की तैयारी कर चुकी है। शुरुआत टीवी न्यूज चैनलों से की जा रही है। केंद्र सरकार इस महीने एक ऐसा कानून बनाने जा रही है जिसके अमल में आते ही किसी भी तरह के उपद्रव, बवाल, दंगा, अपहरण, बंधक, जन विक्षोभ, आंदोलन को कवर करने से टीवी न्यूज चैनलों को रोक दिया जाएगा। अगर चैनलों ने इन घटनाओं को शूट कर भी लिया तो उन्हें दिखाने की इजाजत न होगी। वे वही दिखा पाएंगे जो पुलिस अफसर या ब्यूरोक्रेट तय करेंगे। वे वही सच दुनिया के सामने ला सकेंगे जो सरकार बताएगी। मीडिया पर सेंसरशिप लागू करने से संबंधित प्रस्ताव केंद्र सरकार तैयार कर चुकी है और इसे सभी केंद्रीय मंत्रियों के बीच वितरित करा चुकी है। इस कैबिनेट नोट पर मंत्रिमंडल की अगली किसी भी बैठक में मुहर लगते ही इसे कानून का रूप दे दिया जाएगा।
मुंबई पर आतंकी हमलों को लेकर टीवी न्यूज चैनलों ने केंद्र सरकार, नेताओं, खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की विफलता को जिस आक्रामक ढंग से देश के सामने पेश किया, उससे चिढ़ी सरकार अब मीडिया का 'संपूर्ण इलाज' करने की ओर कदम बढ़ा चुकी है। सूत्रों का कहना है कि टीवी न्यूज चैनलों पर बनाए जा रहे कानून के अमल में आने के बाद अगला निशाना प्रिंट और वेब मीडिया के माध्यम होंगे। मुंबई आतंकी हमलों को कवर करने के तरीके को लेकर टीवी न्यूज चैनलों के खिलाफ लोगों में गुस्से को देख सरकार इस गुस्से को अपने हित में भुनाने की साजिश रच चुकी है। इस साजिश का पता इसी बात से चलता है कि जिस कैबिनेट नोट को मंत्रियों में वितरित किया गया है उसमें साफ-साफ कहा गया है कि नेशनल क्राइसिस और इमरजेंसी सिचुएवशन (incidents of terror, communal riots, hijacking, hostage situations and incidents that are perceived to be a threat to national security) में टीवी न्यूज चैनल को सरकारी फुटेज मुहैया कराएगी और वे सिर्फ वही फुटेज दिखाने को बाध्य होंगे। मीडिया के जानकारों का कहना है कि इमरजेंसी सिचुएशन का मतलब सरकार अपने हिसाब से गढ़ेगी और ऐसे हर जनांदोलन को कवर करने से रोक देगी जिससे सरकार की छवि पर असर पड़ता हो।
अपने उपर शिकंजा कसते देख मीडिया के एक बड़े हिस्से में सुगबुगाहट तेज हो गई है। भड़ास4मीडिया को मिली जानकारी के अनुसार देश के सभी छोटे-बड़े टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों ने पिछले दिनों एक आपात बैठक कर सरकार के इस कदम की निंदा की है और मीडिया पर सरकारी सेंसरशिप थोपने के काले कानून को वापस लेने की मांग केंद्र सरकार से की है। टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों का कहना है कि सरकार पब्लिक के गुस्से को किसी भी तरह मीडिया में मुद्दा न बनने देने की ठान चुकी है जो लोकतंत्र में आजाद मीडिया की मूल भावना पर कुठाराघात है। सरकार अमरनाथ प्रकरण और गुर्जर आंदोलन जैसे मामलों को भी इमरजेंसी सिचुवेशन बता रही है। इसी से साफ पता चलता है कि कल अगर दिल्ली में जनता ब्लू लाइन बसों की अराजकता के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं तो सरकार इसे इमरजेंसी सिचुवेशन कहकर टीवी पर कुछ भी दिखाए जाने से मना कर सकती है। मीडिया के लिए ऐसा काला कानून बनाना किसी भी लोकतांत्रिक देश में मीडिया का गला घोंटने जैसा है। ऐसे में अगर देश के सभी मीडियाकर्मी उठ खड़े नहीं हुए तो फिर मीडिया एक तरह से सरकार के इशारे पर संचालित होने वाला उपक्रम बनकर रह जाएगा।
इन संपादकों का यह भी कहना है कि टीवी न्यूज चैनलों ने अपनी कमियों से खुद सबक लेते हुए अपने को ठीक करने के लिए एनबीए के तहत गाइडलाइऩ बना दी है और कई अन्य कदम उठाए हैं। पर सरकार जिस जल्दबाजी में नया कानून ला रही है, वह बताता है कि नेताओं की मंशा ठीक नहीं है। कहीं न कहीं टीवी न्यूज चैनलों को अपना गुलाम बनाने की तैयारी है। जिस तरह राजनीति में हजार तरह की गड़बड़ियों के बावजूद देश में मिलिट्री राज नहीं लागू किया जा सकता है, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के कई गलत फैसलों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट को सरकार के अधीन नहीं किया जा सकता है उसी तरह मीडिया को भी उसकी कुछ गल्तियों के लिए हमेशा के लिए सरकार का गुलाम नहीं बनाया जा सकता है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया को पंगु बनाने के लिए केंद्र सरकार जो कानून ला रही है, उसका कई स्तरों पर विरोध भी शुरू हो चुका है। ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें और मामले की गंभीरता को समझें-
I&B guidelines on media coverage soon
Return of the Censor
Mind the minders
साभारः भड़ास4मीडिया
12.1.09
मीडिया पर सरकारी नियंत्रण के लिए 'काला कानून' !
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: काला कानून, भड़ास, मीडिया, विरोध, सरकार
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1 comment:
भङास तक तो ठीक है, मगर सुनें मेरी बात.
मीडीया भी कुछ कम नहीं, करे धर्म का घात.
करे धर्म का घात,अर्थ और काम की खातिर.
शब्दों से बहलाती सबको, बहुत ही शातिर.
कह साधक कवि, बात आपकी जरा ठीक है.
मगर सुनें मेरी बार, भाङास तक ही ठीक है.
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