दक्षिण एशिया भयंकर साम्राज्यवादी तूफ़ान की चपेट में-1
अमर प्रताप सिंहलेखिका -निलोफर भागवत ,उपाध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ lawyers
अनुवादक -मोहम्मद एहरार , मो .न. 09451969854
प्रस्तुतकर्ता- अमर प्रताप सिंह
अफगानिस्तान सदैव साम्राज्यों का कब्रिस्तान साबित हुआ है। इस सच्चाई को , U.S central कमांड के प्रमुख जनरल डेविड .ह .पद्रिउस ने, उस समय उजागर किया जबकि वे उन कारणों पर रोशनी डाल रहे थे जिनकी वजह से नाटो की उपनिवेशिक सेनाओ , जिनका नेतृत्व अमेरिका एवं ब्रिटेन करते है , को निरंतर एवं गंभीर मिलिट्री नुक्सानात का सामना करना पड़ा । उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि "हम इतिहास को हल्के रूप में नही ले सकते है। " जिस बात को हम अनदेखा करते है वह यह है कि दक्षिण एशिया, सम्पूर्ण रूप से साम्राज्यों की कब्रिस्तान रहा है । 'इस हकीक़त को अमेरिका एवं उसके सहयोगियों को याद रखना होगा इससे पहले कि वे अपने ही लोगो के ख़िलाफ़ कोई घनिष्ट राजनैतिक, सैनिक एवं गुप्तचर सम्बन्धी गठजोड़ करें । '
अविभाजित भारतीय उपमहाद्वीप में साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ विद्रोह का नेतृत्व निसंदेह रूप से महात्मा गाँधी के द्वारा किया गया। यह विद्रोह संसार के सबसे बड़े जन आंदोलनों में से एक था । फिर भी स्वतंत्रता के इस महान संघर्ष की कुछ अन्य शाखाएं भी थी जैसे कि जल सेना के ख़िलाफ़ विद्रोह जिनका मुख्यालय बम्बई एवं कराची था एवं सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज का गठन । 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन के पहिले भी जिसकी यादें आज भी दक्षिण एशिया के राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गूंजती है, (जब इराक को नष्ट किया जा रहा था , उस समय उन लाखो शहीद हिन्दुस्तानियों की याद ताजा हो रही थी जो कि अंग्रेजी सेनाओ के खौफ से जंगल में पेडो पर छिपकर जीवन गुजर रहे थे ) हिन्दुस्तानी केवल एक ही जज्बे से काम कर रहे थे वह यह था कि हिन्दुस्तान को कैसे अंग्रेजी साम्राज्यवाद के चंगुल से आजाद करें जिसने हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था एवं समाज को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था । परिणाम स्वरूप बहुत से प्रारम्भिक क्रांतिकारियों ने हिंदुस्तान को छोड़कर अफगानिस्तान और उसके सीमा उस पार के मुल्को में शरण ली थी।
यहाँ पर हमें यह याद रखना जरूरी है कि जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई, तो उस समय भारतीय उपमहाद्वीप का व्यापार में योगदान 22 प्रतिशत था एवं चीन का 24 प्रतिशत ।
उस समय हिंदुस्तान और चीन दोनों अपने व्यापारिक,राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा दे रहे थे एवं आपस में संदेह का वातावरण न था जैसा कि वर्तमान में मौजूद है एवं जिससे वाशिंगटन एवं लन्दन दोनों अत्यधिक प्रसन्न है। अमेरिका एवं ब्रिटेन दोनों अब चीन को आर्थिक मदद भी दे रहे है ।
ज्ञातव्य हो कि अमेरिका की नई विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अपने पहले राजनयिक मिशन पर हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान दोनों की उपेक्षा की और विश्व के देशो को यह स्पष्ट संदेश भेजा की प्राक्शी देश (वह मुल्क जिनका सहारा लेकर दूसरा मुल्क अपने हितों को फरोग देता है ) ज्यादा महत्व नही रखते है। इसके बावजूद दोनो देशो के कारपोरेट एवं आर्थिक कुलीन तंत्र अमेरिकी एवं ब्रिटिश प्रशासनों के प्रति समर्पित है । इसका खुलासा उस समय हुआ जब U.P.A सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सन् 2008 में बुश प्रसाशन की ओर अपना झुकाव यह कहकर स्पष्ट किया की "भारत को अमेरिका से प्रेम है ।" ठीक उसी समय लाखो लोग अमेरिका के द्वारा इराक, अफगानिस्तान एवं अन्य देशो में बेरहमी से मारे जा रहे थे। अमेरिकी सीनेटर जान डिआन फीन स्टेन ने यह भी rahsyoudghatan किया कि पाकिस्तान के वजीरिस्तान एवं नॉर्थ वेस्ट सीमावर्ती प्रदेश के लोगों पर बम वर्षा अमेरिकी सेनाओं ने नई केवल अफगानिस्तान से किया ,बल्कि पाकिस्तान से भी किया जिसमे वहां की सरकार की मूक सहमति शामिल थी।
क्रमश...
1 comment:
मैं तो शीर्षक पढ़ का डर ही गया था..
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