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21.4.09

Loksangharsha: आतंकवाद से रक्षा बनाम सम्प्रदायिक राजनीति-2

आतंकवाद से रक्षा बनाम सम्प्रदायिक राजनीति-2

यह एक लम्बी कहानी है की राज्य की लगातार बढती जन उपेक्षा धर्म्केंद्रित नेतागिरी क् बीच पिष्टी जनता किस तरह ख़ुद भी अपनी मूलभूत समस्याओं क् लिए लड़ने का संकल्प तोड़ती रही और किस तरह वह धार्मिक उन्माद की शिकार होने क् बावजूद धार्मिक उन्माद की गिरफ्त में ज्यादा मजबूती के साथ आती रही। यह भी लम्बी विवेचना का विषय है की धर्मनिरपेक्षता किस प्रकार सरकारी स्तर पर एक नारा मात्र रह गया है और किस तरह sarvjanik धर्मनिरपेक्ष संस्थाएं और कार्यालय अपने परिसर में मंदिरों और म्हणतो की स्थापना करा कर देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का मखौल उडाते रहे। इन संस्थाओं में सिर्फ़ सरकारी कार्यालय ही नही न्यायपालिकाएं भी शामिल रहेजनता के स्तर पर धर्मनिरपेक्षता क्यों जड़े नही जमासकी,धर्मनिरपेक्षता तथा सर्वधर्म समभाव क्यों एक आन्दोलन नही बन पाए ,धार्मिक कट्टरता तथापारस्परिक दुर्भाव फैलाने वाले संगठनों के हिमायती किस तरह न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं सेलेकर विभिन्न पार्टियों और मीडिया में भरे गए, इन सब सवालों के जवाब पाने के लिए ज्यादा बड़े फलकपर बात करना जरूरी नही होगा जो इस लेख में सम्भव नही है अभी यह कहना काफी होगा की धर्म के नाम पर नफरतफैलाने वाले संगठन विशेष रूप से हिन्दुत्ववादी संगठन जो काम पॉँच या छः दासको में नही कर पाए वहपिछले डेढ़ दो दशको में उन्होंने कर दिखायाबढती आर्थिक vishamta के samanantar जनता केदिलो पर बहुत haavi होने में safal हो पाए
सभी स्तरों पर अपनी घुसपैठ बना लेने की सफलता और जम्सेध्पुर, अयोध्या ,नैनी,हाशिमपुरा ,सूरत और कंधमाल से लेकर गुजरात तक के खुनी और शर्मनाक उपद्रवों में बिना किसी सजा के छूट जाने की kamyab sajisho से हिंदू राष्ट्रवादियों के हौसले चौगुना बुलंद हुए और अल्पसंख्यको में बेगाना और अशुरक्षित होने का खौफ बढ़ा। दोनों के ही परिणाम भयंकर होना lazmi था . इस आतंरिक स्तिथि के साथ antarrashtriy स्तिथि के मिश्रण नेइस्लामिक आतंकवाद का हौवा खड़ा किया जो हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए बेहद माकूल था और जिसका उन्होंने सत्ता व प्रशाशन में बैठे उनके गुगो ने भरपूर इस्तेमाल किया । देश में विश्फोतो की लहर फ़ेल गई । यह विष्फोट न केवल हिंदू बहुल चेत्रो में हुए ,मुस्लिम बहुल चेत्रो में भी हुए । यहाँ तक मस्जिदों को भी निशान बनाया गया। लेकिन जांच पड़ताल से भी पहले निष्कर्ष हर विष्फोट के बाद सरकारी अगेंसिओं और मीडिया दोनों ने हर बार निकल लिया वह यह की यह विष्फोट मुसलमानों का ही किया हुआ है। यह निष्कर्ष न सिर्फ़ जल्दीबाजी में निकला गया, कुछ हद तक साजिशन भी निकला गया । हर बार चटपट कुछ मुसलमान पकड़े गए जिनमें तक़रीबन हरेक को पिछले धमाको का भी मास्टर माइंङ कहा गया । लम्बी ताफ्तिशो में पकड़े गए ज्यादातर लोगो के खिलाफ कुछ भी नही पाया गया पर इस दौरान उन्होंने जिस्मानी दिमागी और पारिवारिक रूप से करीब करीब सब खो दिया । इस स्थाई और गंभीर नुकशान का कोई भी मुआवजा आज तक किसी को भी नही मिला।
क्रमस :
रूप रेखा वर्मा
लेखिका लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति है ।
आतंकवाद का सच में प्रकाशित ॥

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