भाजपा के बुढे व ठंडे पड़ चुके हिंदुत्व में वरुण गाँधी का गरमागरम जवानी से लबरेज़ हिंदुत्व मिल जाने से लाल कृष्ण अडवाणी के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने की उनकी बरसो पुरानी अभिलाषा में पर लगा दिया है तो वहीं राहुल गाँधी के युवा कंधो के सहारे यूपी में अपनी चुनावी वैतरणी पर करने का सपना संजोए कांग्रेस की उम्मीदों पर प्रश्न चिन्ह सा लग गया है ? साथ ही नेहरू परिवार की गांधीवादी सोच व धर्मनिरपेक्षता की छवि को भी दागदार करने का एक सुनहरा मौका भाजपा व उसकी मातृत्व संस्था आर.एस.एस के हाथों में आ गया है।
15 वी लोकसभा के चुनाव की घोषणा के समय पूरे देश में यह बात बड़ी मजबूती के साथ चर्चाओं में थी कि संप्रंग की सरकार ही एक बार पुनः प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सत्तासीन होगी। इसके पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा था की केसरिया रंग का बुखार और कही हो न हो उत्तर प्रदेश से उतर चला है । उदाहरण स्वरूप वर्ष 2007 यूपी विधानसभा चुनाव को पेश किया जा रहा था । जब भाजपा राम मन्दिर के गढ़ में चित होकर गिर पड़ी और कांग्रेस के वोट बैंक में इजाफा हुआ ।
इस बात से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने अपने युवराज राहुल गाँधी को और महत्त्व देना प्रारम्भ कर दिया और यूपी में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन का श्री राहुल गाँधी के कंधो पर डालकर अन्य राज्यों में भी राहुल के ग्लैमर को अजमाने कि बातो ने शिद्धत अख्तियार कर ली ।दरअसल कांग्रेस ने बहुत पहले ही इस बात का अनुमान लगा लिया था की 15 वी लोकसभा में 18 वर्ष से 35 वर्ष के मतदाताओं की संख्या देश के कुल मतदाताओं का 60 प्रतिशत है।
उधर भाजपा चुनावी मैदान में अपने बूढे सिपहसालार लाल कृष्ण अडवानी के अनुभवहीन कंधो के सहारे उतरने का मन बना चुकी थी । क्योंकि आधी सदी से अधिक समय तक पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व के सहारे तीन बार केन्द्र की सत्ता हासिल करने के पश्चात् १५ वी लोकसभा के चुनाव में उसका यह पराक्रमी योद्धा उसका साथ ख़राब स्वस्थ के चलते छोड़कर खटिया पकड़ चुका है । उधर भाजपा अपने उभरते हुए नेता प्रमोद महाजन का साथ भी उनकी अकस्मात मृत्यु पश्चात खो चुकी है । तीन बार लोकसभा और देश के एक चौथाई राज्यों में सत्तासीन होने के कारण पार्टी में अनुशाशनहीनता पनप चुकी थी । भ्रस्टाचार का वायरस अलग उसके शरीर में पेवस्त हो चुका था ।, जिसके कारण बंगारू लक्ष्मण जैसे पार्टी अध्यक्ष को पद त्याग करना पड़ा था . उमा भारती , कल्याण सिंह, भैरो सिंह शेखावत , कलराज मिश्र, मदन लाल खुराना जैसे नेताओं की नाराजगी कोढ़ में खाज बनी हुई है . उधर गुजरात में हिंदुत्व की प्रयोगशाला का सियाशी वैज्ञानिक नरेंद्र मोदी को भाजपा की कमान सौपने के स्वर अन्दर ही अन्दर तेजी पकड़ रहे थे।परन्तु इन सबके विपरीत वर्षो से प्रधानमंत्री की कुर्सी की बाँट जोह रहे लाल कृष्ण अडवाणी के अरमान बड़ी बेताबी के साथ मचल रहे थे । भाजपा की चिंतन बैठको में बड़ी चतुराई से अडवाणी ने अपने पक्ष में माहौल बनने में सफलता प्राप्त कर ली थी इसके लिए कोई खतरा न मोल लेते हुए अडवाणी ने अपने सबसे विश्वास प्राप्त उस राजनाथ सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनवाया जिसने पूरे राजनैतिक कैरियर में बाराबंकी की हैदरगढ़ विधान सभा का चुनाव जीतने के अलावा कभी अपनी कोई राजनैतिक कर्मभूमि नही बनाई। हैदर गढ़ का चुनाव भी उन्होंने मुख्यमंत्री की ग्लैमर के सहारे जीता था।
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में जल्द प्रकाशित ॥
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