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18.4.09

सोचना


कोई कहता है
बहुत सोचती हो
कम सोचा करो
दूसरों के
सोचने के लिए भी
कुछ छोड़ना है
सोच लिया करो ।
कोई कहता है -
सोचो
चाहे जितना तुम
लेकिन सोचो में अपनी
मुझे भी शामिल
कर लिया करो ।
कोई कहता है -
सोचो
लेकिन इतना नही
की महज
सोचने के लिए
रह जाए ।
सोचती हूँ मैं
क्यों न अब
छोड़ दिया जाए
सोचना ही।
आरती "आस्था"

1 comment:

Unknown said...

इतना भी क्या सोचना, दूसरों की पसंद से क्या जीना, हमें तो बस अपनी राह चलना है. सोचो तो फलसफा है, लिखो तो शायरी है...कृष्ण कल्पित का यह शेर ख्याल में रखिये और ज़िन्दगी को पूरे उल्लास के साथ जीया कीजिये...शुभकामनाएं..