पाठशाला का वो आखरी दिन अब तक याद है
जब अचानक जा बैठा था मैं एक अजीब सी क्लास में
शोर बहार तक आ रहा था उस क्लास से
अपनों सा था लिबास पर रंग था भगवा जरा
तेज थी वक्ता की वाणी
सुर में भी एक ओज था
कह रहे थे सुनलो बंधू गांठ बांधो तुम इसे
"जिस समस्या पर हो नजर तमाम मुल्क की
जिस की खातिर कोई मरने मिटने को तैयार हो
जिस की खातिर भाइयो में दूरियां बढती रहें
जिस का नाम आते ही माँओ की पेशानी पर बल पड़े
वो समस्या "समस्या" नही हथियार है
हथियार भी ऐसा की समझलो तुम की ब्रह्मास्त्र है
वो समस्या हल न करना
हर चुनाव में भुनाएंगे
लोग भावनात्मक मुर्ख हैं
हम फिर से जीत जायेंगे
पाठशाला मैं जब ये सबक पढाया गया
क्रोध भी आया फिर तरस आया मुझे
और किसको जा कर के समझाता में अपनी बात को
बस वो सबक था आखिरी फिर पाठशाला अच्छी न लगी
वो दिन था की मैंने पाठशाला छोड़ दी
22.4.09
पाठशाला छोड़ दी ...
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