टहनियों पर यांदो का इक सिलसिला रह जाएगा
लौट जायेंगे परिंदे घोसला रह जाएगा
टूट जायेंगे पर बोलेंगे सच ही
आईनों का येही इक सिला रह जाएगा
किस तरह से जी रहे हैं जन लोगे देख कर
ख़त हमारा एक भी गर अधजला मिल जाएगा
तुम भले बंद कर लेना मेरी यादों का रोशनदान
कोई न कोई झरोखा मेरी याद दिला ही जाएगा
फिर बसा लेगा वो पंछी अपना आशियाँ कहीं
पास उसके गर कुछ हौसला रह जाएगा ...
26.4.09
होसला ......
Posted by Amod Kumar Srivastava
Labels: दिल से
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1 comment:
बहुत ही उम्धा लिखा है, आपने... मेरी शुभकामनाएँ...
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