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19.4.09

हमारे समाज और देश में बूढों की हालत देख कर जी भर आता है.पिछले कुछ वर्षों में देश में जिस तेजी से वृद्ध आश्रम बढे है...वो सारी कहानी ख़ुद ही बयान कर देते है..!भारत जैसे देश में जहाँ माता पिता को देव तुल्य समझा जाता है...वहां इस तरह की बेरुखी सतब्ध करती है..!क्या वाकई में हम इतने आगे बढ़ गए है की आज ये बूढे हमारे लिए बोझ बन गए है?जिस घर को इन्होने अपने खून पसीने से सींचा ..उसी घर के एक बाहरी कोने में इन्हे पड़े देख कर दिल पर चोट सी लगती है..?पूछने पर आज की संतान कहती है इन्होने नया क्या किया?सभी माँ बाप अपने बच्चों के लिए ये सब करते है...!लेकिन मैं उनसे पूछना चाहता हूँ की क्या संतान भी ऐसा ही कर पाती है...?आख़िर माँ बाप भी तो उम्मीद करते है की उनकी .संतान उनके बुढापे की लाठी बने...!पर ऐसा कहाँ होता है...!बूढे अपनी मूक नज़रों से ये सब होते हुए भी क्या चाहते है..सिर्फ़ इज्ज़त के साथ दो वक्त की रोटी ?क्या ये भी उन्हें नहीं मिलनी चाहिए?अगर नहीं तो फ़िर क्यूँ हम दान के नाम पर इधर उधर चंदा देते .फिरते है ?ताकि सोसायटी में हमारी इज्ज़त बनी रहे...?मैं ऐसी मानसिकता वाली सभी संतानों से कहना चाहता हूँ की जिन्होंने आपके सुख के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया..आप भी उन्हें कुछ समय .दे...!देश में वृधाश्रम की नहीं स्कूल की जरुरत है जो संतानों को सही संस्कार दे सके..... !आगे यहाँ पर..

2 comments:

mark rai said...

is lekh se aapki pida samajhi jaa sakti hai

दर्पण साह said...

...dukhi hoon aur apne bhoode hone se pehle hi mrityu ki kaamna karta hoon !!

saath hi saath apne se yw vaada ki main apne mata pita ke saath aisa kya kuch bhi bura nahi hone doonga...