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14.4.09

हिजड़े चाँद से नहीं गिरते

(बरेली के पत्रकार साथी रहमान भी ब्लागिंग में कूद पड़े हैं। उनके ब्लाग 'आजाद आवाज' पर दो पोस्टें हैं जिनमें से एक यहां प्रकाशित कर रहा हूं। उनके ब्लाग का पता है- www.azadawaz.blogspot.com, रहमान की ब्लागिंग की पारी का हम स्वागत करते हैं- यशवंत)
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बरेली में १२ अप्रैल को हिजड़ों पर एक नेशनल सेमिनार हुआ। यहां इसकी चर्चा कई वजहों से जरूरी है। एक तो ये कि ये सेमिनार कथित सभ्य समाज और हिजड़ों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए किया गया था। दूसरे इसे एक एजूकेशनल फाउंडेशन ने आयोजित किया था और संभवतः ये उत्तर प्रदेश का पहला अपनी तरह का आयोजन था। चर्चा इसलिए भी कि ये सेमिनार कुछ सवाल छोड़ गया, जिस पर बहस जरूरी है।सैयद शाह फरजंद अली एजूकेशनल एंड सोशल फाउंडेशन आफ इंडिया के इस आयोजन में जेएनयू के दर्शन शास्त्री प्रो. सत्यपाल गौतम, मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डा. संदीप पांडेय, अमरीका से प्रकाशित उपन्यास नेवर ट्रस्ट अ गाड से चर्चा में रहे प्रो. एमआई सिद्दीकी, अंग्रेजी लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट शारदा दुबे, गोपाल कृष्ण जैसे लोग इसमें शामिल रहे। इसमें रुहेलखंड भर से तमाम हिजड़े भी जमा हुए थे, जिनका प्रतिनिधित्व उनकी गुरू मीनाक्षी ने किया। मीनाक्षी अंग्रेजी से एमए हैं और काफी संवेदनशील और जागरूक हैं।

कार्यक्रम के बीच में दर्शकों की तरफ से शुरू की गई बहस से मीनाक्षी उद्वलित हो उठीं और उन्होंने एक ऐसा कदम उठा लिया, जिसके बारे में उस वक्त तो कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन कार्यक्रम के बाद वक्ताओं के बीच ये जेरेबहस रहा। मीनाक्षी के वक्तव्य के दौरान एक दर्शक ने सवाल किया कि आप लोग खुद ही समाज से दूर रहते हो और जबरन अपनी संख्या बढ़ाते हो। इस मीनाक्षी जज्बाती हो उठीं। उन्होंने जवाब में समाज को उसका ही चेहरा दिखा दिया। कहा कि हिजड़े चांद से नहीं टपकते, न ही वह जंगल से आते हैं। इसी के साथ उन्होंने हया नाम की अपनी बेटी को मंच पर बुला लिया। कुछ देर बाद ही दर्शकों के बीच से एक पांच-छह साल की एक सुंदर सी दुबली-पतली सी बच्ची गुलाबी फ्राक पहने नजरें झुकाए खड़ी थी। उसके मंच पर आते ही सन्नाटा छा गया। मीनाक्षी ने कहना शुरू कियाः ये बच्ची भी आप ही के सभ्य समाज से आई है। छह साल पहले इसके मां-बाप मेरे पास आए थे और कहा कि मीनाक्षी तुम इसे अपना लो, नहीं तो हमारे पास इसे जहर का इंजेक्शन लगवाने के अलावा कोई चारा नहीं है। मीनाक्षी ने ये कहकर हाल में सनसनी फैला दी कि ये बच्ची भी किन्नर है। उन्होंने बताया कि इसके मां-बाप पहले इसे अनाथालाय ले गए थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये किन्नर है तो उन्होंने इसे अपनाने से ही मना कर दिया।

उस वक्त को बात आई-गई हो गई, लेकिन इस सबके बीच एक बच्ची से उसकी सुकून और सम्मान भरी जिंदगी छीन ली गई। उसे सबके बीच में असमान्य होने का एहसास करा दिया गया था। रही-सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी। उसने बच्ची की फोटो सहित इस पूरे वाकिये को फ्लैश कर दिया। उसका चेहरा भी ब्लर करने की जहमत नहीं उठाई गई। अब ये बच्ची न तो कथित सभ्य समाज में सामान्य जीवन जी सकेगी और स्कूल में भी सभी बच्चे उसे अलग तरीके से ट्रीट करेंगे और चिढ़ाएंगे। जाहिर है कि अब उसके पढ़-लिखकर सामान्य जीवन जीने की संभावना शून्य कर दी गई।

हमारा आपसे सवाल है कि इस मामले में बुद्धिजीवियों का क्या रुख होना चाहिए था?
मीडिया का क्या सावधानी बरतनी चाहिए थी?
अब वह बच्ची सामान्य जीवन कैसे जी सकेगी?
और आखिर में, हिजड़ों पर ये आयोजन फिजियो डा. एसई हुदा की सोच का नतीजा था। मरीजों से निकल कर थर्ड जेंडर के लिए ऐसे आयोजन का जोखिम उठाना सराहनीय है।

1 comment:

अनुराग तिवारी said...

Dr. Huda, aise sansanikhej sammelano ke liye hi kukhyat hain, pichale saal Musalmano ko aatnkawaad ke khilaf batane ke liye sammelan bulaya, sammelan ka ant hua doosare samuday ko gariyane se, waise bhi us sammelan ka sara Mudda SAR Gilani Hijack kar chuke the.

Aajkal media me "Ethics" ke mayane badal chuke hain. Jo Media Khud nanga ho wo dossaron ka chehara bhala kyon chupaayega?