Loksangharsha: चुनाव की बहारें और मीडिया के छक्के पव्वे --ज़मील आज़मी एडवोकेट
चुनाव की बहारें और मीडिया के छक्के पव्वे --ज़मील आज़मी एडवोकेट
लोकतंत्र के महोत्सव के तौर पर शुमार किए जाने वाले आम चुनावो के दौरान समाज के चौथे खम्भे मीडिया के रजूब छक्के पव्वे लगते है , करोडो रुपये का सौदा लीडिंग समाचार पत्रों से प्रमुख राजनैतिक डालो का होता है जो उनके हक में फिजा बनने में कोई कोर कसर उठा नही रखते ,फिर जिला स्तर पर समाचार प्रतिनिधियों को अलग से प्रत्याशियों को समझना होता है जिसे मीडिया मैनेज़ की संज्ञा दी जाती है । व्यवसायिकता के इस दौर में मीडिया अपने मूल फर्ज से किस हद तक मुँह चुरा चुका है।इसका नग्न प्रदर्शन हर चुनाव के दौरान देखने को मिलता है ।
चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा या स्थानीय निकाय का सभी चुनाव मे मीडिया की अहमियत बढ़ जाती है। चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खर्चो पर नज़र रखने की बात करता है । प्रदूषण के कारण झंडे, बैनर , होर्डिंग्स इत्यादि पर अंकुश लगाता है । रात्रि दस बजे के बाद से ध्वनि प्रदूषण के मद्देनजर चुनाव प्रसारण पर भी पाबन्दी आमद कर दी गई है परन्तु मीडिया के बिजनेस पर कोई प्रभाव नही पड़ा है। आमतौर पर चुनाव आयोग रुपया बाटं कर अपने हक मे फिजा बनाने के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की बात करता है ,परन्तु प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक खुलेआम पार्टियों व प्रत्याशियों द्वारा पैसा बाटां जाता है और चुनाव आयोग मूक दर्शक बना रहता है ।
यही कारण है की आम चुनावो से पूर्व अचानक समाचार पत्रों की बाढ़ सी आ जाती है। जो समाचार पत्र केवल सरकारी विज्ञापन के सहारे अपना वजूद फाइलों तक सीमित रखते है वह भी ताल ठोंक कर मैदान में आ जाते है ।
पहले समाचार पत्रों के पन्ने प्रत्याशियों के विज्ञापनों से भरे रहते थे, मगर विगत एक दो चुनावो से चुनाव आयोग चुनाव का खर्चा कम करने में लगा हुआ है इसलिए समाचार पत्रों के विज्ञापनों में जब कटौती प्रत्याशियों ने करनी शुरु की तो इसका दूसरा रास्ता मीडिया ने निकाला । प्रत्याशियों के साक्षात्कार निकालने शुरु किए गए और जितनी मोटी रकम उतना बड़ा साक्षात्कार चुनावो के दौरान छपने लगा । साक्षात्कार के दौरान प्रश्न व उत्तर सभी प्रत्याशियों के अनुसार छापा जाता और मतदाताओं को लुभाने व प्रभावित करने का काम धड़ल्ले से चलता रहा।इस बार चुनाव में चुनाव आयोग ने साक्षात्कार व जनसंपर्क छापने पर अंकुश लगाने की सख्त हिदायत जिला प्रशासन को दे दी तो प्रिंट मीडिया ने इसका दूसरा रास्ता खोज निकाला । अब बड़े समाचार पत्रों ने अपने पन्ने व्यवसायिक दरो पर लाखो रूपए में बेचने शुरू कर दिए। एक-एक पार्टी का प्रत्याशी 10,10 लाख रूपए देकर स्पेस खरीदने लगा । विज्ञापनों से अधिक लाभ समाचार पत्रों व प्रत्याशियों दोनों का होने लगा । चुनाव आयोग चाह कर भी इस पर नकेल नही कस पाया क्योंकि मीडिया की स्वतंत्रता आडे आ गई ।
कमोबेश यही हालत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की है जहाँ राष्ट्रिय स्तर पर पार्टियों से सौदेबाजी होती है और पहले चुनावी सर्वेक्षण प्रमुख चैनल जारी करते थे अब चुनाव आयोग द्वारा चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगा दिए जाने से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसका दूसरा रास्ता निकाल लिया और चुनावी क्षेत्रो की यात्रा के शीर्षक से मतदाताओ को दिशा निर्देश देने का काम प्रारम्भ कर दिया है।
मीडिया मैनेजमेंट का यह सब धंधा तो वह है जो कमोबेश नंबर एक का बिजनेस कहलाता है इसके अतिरिक्त परदे के पीछे से बंद मुट्ठी मीडिया को मैनेज़ करने का धंधा भी चुनावो के दौरान खूब चलता है । समाचार पत्रों में छपी हर ख़बर को उनका पाठक सच समझता है इसलिए पाठको को गुमराह करने का काम बड़े पैमाने पर समाज के इस जिम्मेदार तबके द्वारा किया जाता है। बिरादरियों व धार्मिक संप्रदायों की जनसँख्या के आंकडो को तोड़ मरोड कर पेश करना ,धार्मिक मुद्दों को प्रमुखता से छापकर मतदाताओं को धार्मिक भावनाओ से आवेशित करना राजनेताओं के वक्तव्यों को तोड़ मरोड़ कर पाठक के सामने परोसना समाचार पत्रों का मुख्य खेल है जो चुनावो के दौरान धड्ल्ले से जारी रहता है।
इस प्रकार लोकतंत्र के इस पर्व पर जो चंद वर्षो बाद कभी लोकसभा चुनाव के रूप में तो कभी विधान सभा चुनाव के रूप में जनता के सामने जवाबदेह हो चुके चौथे खम्भे के खूब वारे -न्यारे होते है । लाभ में राजनेता और उनके दल रहते है जो जनता के सामने आए उस सुअवसर को बड़ी अय्यारी व मक्कारी के साथ उसे छलकर उससे छीन लेते है और लोकतंत्र का प्रमुख अंग आम जनमानस चुनाव बाद अपने को ठगा महसूस करता है ।
लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित होगा ।
aapki pratikriyaon k liye shukriya
1 comment:
aapne jo bat media ke bare me kahi hai wo to bilkul thik hai parantu chunaw aayog kya kar raha hai? rajasthan me bade akhbaro me news ko paisa laker he print kiya gaya wah kharch umidwar ke chunav kharch me nahi likhi gayi fir yeh natak chunav kharch ki seema ka kyon? akhabaron me chhpe ko janta sach manti aai hai! per kya es tarah se umidwar hi jab jo chhe wah apne bare me chap wa lega to sach -juth ka kya pata lagega.?
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