दिनेश काण्डपाल
क्या आपको लगता है कि किसी नेता के व्यक्तिगत जीवन से हमें कोई लेना देना नहीं रखना चाहिये। हमको तो बस ये देखना चाहिये कि कैमरे के सामने नेताजी ने क्या कहा और क्या किया। इन नेताओं का व्यक्तिगत जीवन आखिर होता क्या है। सरकारी कोठी के अन्दर संसद में सवाल पूछने के लिये नोट मांगना व्यक्तिगत है या सार्वजनिक। प्लेन में अपने साथ दूसरे की बीबी को दूसरे देश ले जाकर कबूतरबाज़ी करना व्यक्तिगत है या सार्वजनिक। उदार दिल के लोग इस बात के लिये आसमान सर पर उठा लेंगे कि नेताओं के व्यकितगत जीवन में नहीं झांकना चाहिये। किसी और की निजी ज़िन्दगी से असर पड़ता हो न पड़ता हो लेकिन नेताओं की निजी ज़िन्दगी तो जनता की ही है ना सर। हमारा एक अदद निजी वोट जो बेहद निजी निर्णय है, वो एक नेता को जाता है तो हमारी निजता जब उसके लिये है तो उसकी निजता हमारे लिये कैसे न हो। ये कैसे हो सकता है कि हमारा नेता कुछ भी करे और ये कह दे कि ये निजी है। ये तो कोरी बहानेबाज़ी हो गयी कि ये मामला निजी है। इसी निजीपन से जब बात आगे बढ़ती है तो सामने आता है व्यक्तिगत आरोप।
इंटरनेट पर एक अखबार की वैबसाईट में एक पोल चल रहा है, इसका सवाल है "चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं द्वारा एक—दूसरे पर व्यक्तिगत छींटाकशी करना ?" जवाब में अधिकाशं पाठकों का कहना है कि व्यकितगत छींटाकशी से बचना चाहिये। अब आप ही बताइये व्यक्तिगत छींटाकशी में क्या बुराई है। हमारे नेता जो कृत्य करते हैं वो खुद तो कभी बताने से रहे अब अगर उनके विरोधियों ने ये बीड़ा उठा लिया है तो मेरे ख्याल से तो ठीक ही है। बहुत सारे लोग इस तर्क से असहमति जताते हुये मर्यादा की सीमा का उदाहरण रख सकते हैं लेकिन अगर व्यकितगत आरोप गलत हैं तो मर्यादा का हनन तो बिल्कुल नहीं होता। और ज़रा गंभीरता से सोचिये कि जब भी हम अपने नेताओं के बारे में सोचते हैं क्या मर्यादा कभी हमारे ज़ेहन में कुलबुली करती है। आज क्या इस बात का कॉम्पटीशन नहीं चल पड़ा है कि किसकी मर्याद कितनी गिरी हुयी है। एक नेता की करतूतें तब आपको शर्मसार करती हैं जब कभी भी आप उसे इस महान देश के सन्दर्भ में देखते हैं। दुनिया हमारे लोकतंत्र के गुण गाती है लेकिन क्या हमें हमारे नेताओं पर गर्व है।
हम अपने आदर्श नेताओं के बारे में जब भी खुद पढते हैं या अपने बच्चों को पढाते हैं तो उनका जीवन चरित्र ही उन्हें बताते हैं। गांधी के बारे में हम ये जानते हैं कि उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। क्या नेता किसी आदर्श से कम है, हम क्यों अपने जलसों में नेताओं को बुलाते हैं, क्यों अपनी दुकानों के रिबन उनसे कटवाते हैं। ये नेता ही तो हमारे देश के सैनिकों के सीने पर मैडल लगाते हैं। इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी वाला नेता का व्यकितगत जीवन अगर खराब तो बताईये कैसै चलेगा।
चलिये ये पता करने की कोशिश करते हैं कि व्यकितगत छींटाकशी क्या नुकसान करती है। दरअसल व्यक्तिगत छींटाकशी से कई बातें सामने आ जाती हैं। एक तो वो जो सीधे नेता का नाम लेकर आरोप लगाता है दूसरा वो जिस पर आरोप लग रहे होते हैं। दोनों की मर्यादा आपके सामने खुले आम आ जाती है, हुजूर ऐसे ऐसे तथ्य सामने आ जाते हैं जो आपको आरटीआई से भी नहीं मिलेंगें। इन आरोपों का मतलब समझिये, बारीक नज़र डालकर ये जांचने की कोशिश कीजिये कि आरोप लगने के बाद नेताजी कैसे कुलांचे भरते हैं। जवाब क्यों नहीं देते अपने ऊपर लगे आरोपों का। हर नेता बच के निकलने चाहता है। कोई जवाब नहीं देना चाहता हमारे उस सवाल का जो हम वोट के बदले मांग रहे हैं।
ये उम्मीद करना भी बेमानी ही है कि विरोधी नेता आरोप लगायेगें तो दूसरे नेता की पोल पट्टी सामने आ जायेगी। लेकिन कम से कम इस बात का डर तो मन में बैठेगा कि जो भी करना है और छिप के करो क्योंकि जनता तो बेचारी है वो पूछ भी लेगी तो हम जवाब क्यों दे, लेकिन अगर विरोधी को पता लगा तो वो कहीं पोस्टर न चिपका दे।
आजकल के मूर्धन्य नेता जो करतूतें कर रहे हैं वो तो ऐसे ही सामने आयेगीं। जब तक छील छील कर इनकी गेंडें जितनी मोटी खाल को उतारा नहीं जायेगा तब तक ये हर नाजायज काम निजी ज़िन्दगी की आड़ में करते रहेंगें और हम ओपिनियन पोल ही चलाते रहेंगें कि इनकी निजी ज़िन्दगी में झांकना चाहिये या नहीं।
11.4.09
क्यों न झांके तुम्हारी ज़िन्दगी में ?
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