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12.4.09

ये कैसी जिन्दगी मुझे जीनी पड़ गई....!!

जुर्म किए थे इतने,चदरिया झीनी पड़ गई
उम्र भी कमबख्त आख़िर दीन्ही पड़ गई !!
था शुक्र मुझपे इतना कि खुशियों का हाय

कुछ ख़ुशी कम करने को पीनी पड़ गयी !!
पता नहीं क्यूँ ऊपर वाले ने भेजा मुझे यहाँ
जिन्दगी जीने की खातिर जीनी पड़ गयी !!
लानत है मुझपे कि वक्ते-हयात पिया न गया
जन्नत में खुदा के साथ को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपने साथ लाया था कुछ सुख की शराब
ना चाहते हुए भी आदम को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपनी कब्र पे बैठा सोचा किया "गाफिल"
ये कैसी जिन्दगी थी जो मुझे जीनी पड़ गयी !!

1 comment:

शिखा शुक्ला said...

shabdo ka adbut sangam aur jeevan ki sacchaee es kavita me simat aie hai.