तुम जीते हो
एक - एक पल में
कई - कई जिन्दगी
और हम
नहीं जी पाए
पूरी जिन्दगी में
एक पल भी
इसका अभिप्राय
महज यही नहीं है कि
तुम्हें जीना आता है
और हमें नहीं
बल्कि यह
समेटे हुए है
स्वयं में
और भी
बहुत से निहितार्थ ............ ।
आरती "आस्था "
2.5.09
अभिप्राय
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