विनोद के मुसान
नेता जी के आराम में खलल डालते हुए उनके सेके्रटरी चमच्च लाल ने तेजी से कमरे में प्रवेश किया और बोले, 'सर हमारी कान्सीटेंसी में 'मुद् दों` का सौदागर घूम रहा है।` 'कहो, तो बुला लाऊं।` 'पिछले चुनाव के बाद अबकी बड़ी मुद् दत के बाद दिखाई दिया है। कहीं ऐसा न हो, पिछली बार की तरह इस बार भी विपक्षी दल के लोग उसे लपक ले जाएं और हमारे हाथ इस बार भी खाली रह जाएं।` 'वैसे पिछली बार तो जुगाड़ से काम चल गया था, लेकिन इस बार या होगा।` नेता जी ने बड़ी सी जमाही ली और बोले, 'कौन-कौन से मुद् दे हैं इस बार सौदागर की झोली में।` 'महाराज, वो तो उसे बुलाने पर ही पता चलेगा।`
'कहो तो, बुला लाऊं`। 'हां,` 'लेकिन रूको।` 'पहले इस बात की तफ्तीश कर लो, या इस बार मुद् दों की जरूरत है भी या नहीं।` 'जहां तक मेरी जानकारी है इस बार बड़ी-बड़ी पार्टियां भी बिन मुद् दई चुनाव लड़ रही हैं।` 'कहीं ऐसा न हो उसे बुलाकर हम बेकार का खर्च सिर मोल ले लें।` 'चुनाव आयोग का या भरोसा इसे भी हमारे चुनाव खर्च में ही जाे़ड लेगा।` 'फिर भला उसके पास इस बार कौन से नए मुद् दे होंगे। दशकों पहले हमने जो मुद् दे चुनाव के व त जनता के बीच रखे थे, वह आज भी वैसे ही हैं।` 'हर बार गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आतंकवाद और जनता को बरगलाने वाली कुछ नई योजनाएं इस बार भी चला देंगे। वैसे भी जनता के बीच अब ये मुद् दे बाजार में खोटा सि का चलाने जैसी बात है।`
'जनता के पास ही इन बातों के लिए समय नहीं, तो भला हम यों मथापच्ची करें।`
'लोकतंत्र का यह महापर्व अब रस्मी अनुष्ठ ान बन गया है। जिसे पूरा करने के लिए अगर मुद् दों के सौदागर के पास कोई बूटी हो तो जरूर उसे बुला भेजो।` 'वैसे भी आतंकवाद पर एक पार्टी का कब्जा है, दूसरी परमाणु करार को लेकर चिंतित है, तीसरे हॉट मुद् दे का मुद् दा भी तीसरे र्मोचे ने लपक लिया है।`
'मंदी को लेकर हम जनता के बीच जाना नहीं चाहते, योंकि यही असली मुद् दा है।` 'अगर गए तो कल जवाब देना पड़ेगा। इसलिए मुद् दों की बात न ही करो, तो ज्यादा अच्छा है। वैसे तो जनता की याददाशत बहुत कमजोर होती है, लेकिन बात जब सतही मुद् दों की आती है तो कोई भी 'जवाब हाजिर` हो सकता है।`
'जनता को मुद् दों की याद दिलाकर, अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसी बात होगी। इसलिए अच्छा यही होगा, मुद् दों केसौदागर को न ही बुलाओ।` 'आगे काम की बात सोचो।` 'चुनाव जीतने के बाद किस पार्टी की गोद में बैठें और अभी किस की यारी प्यारी है।`
नेता जी के तर्क सुनकर सके्रटी भी सोचने लगा, जब मुदई ही मुस्तैद नहीं है, तो भला चम्मच लाल यों अपनी चम्मची चमकाए।
2.5.09
मुद् दों का सौदागर
Labels: लोकतंत्र का महापर्व
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