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8.5.09

ग़ज़ल

लिख नहीं पाए बहुत ज़्यादा मगर कुछ तो लिखा
प्यार की दीवार पे ग़म का असर कुछ तो लिखा।

मन की उलझन, तन की चिंता, काम से भारी थकन,
जिंदगी के फलसफे पर रातभर कुछ तो लिखा।

ये चलो माना कि हम आगाज़ पे चुप रह गए,
जिंदगी लेकिन तेरे अंजाम पर कुछ तो लिखा।

पढ़ नहीं पाया हमारे दिल को वो तो क्या हुआ,
चूमकर उसने हमारे गाल पर कुछ तो लिखा।

छोड़िये किस्मत में उसने क्या लिखा, क्या न लिखा,
चिलचिलाती धूप में लंबा सफर कुछ तो लिखा।
चेतन आनंद

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