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5.10.09

भारत का कारपोरेट लोकतंत्र में रूपान्‍तरण

हरि‍याणा वि‍धानसभा चुनावों में वि‍भि‍न्‍न दलों के द्वारा जि‍स तरह के प्रत्‍याशी खड़े कि‍ए गए हैं उससे एक चीज साफ है कि‍ अब लोकतंत्र गरीबों का खेल नहीं है। लोकतंत्र में वही प्रत्‍याशी खड़ा हो सकता है जो धनी हो अथवा धनी दल का उम्‍मीदवार हो। यह लोकतंत्र के कारपोरेट लोकतंत्र में रूपान्‍तरि‍त होने की प्रक्रि‍या का संकेत है। जो लोग यह भ्रम पाले हैं कि‍ देश में 'आम आदमी' का लोकतंत्र है उन्‍हें अब कम से कम इस भ्रम से बाहर आ जाना चाहि‍ए। लोकतंत्र में हि‍स्‍सेदारी के लि‍ए जि‍स तरह कोई शर्त नहीं है वैसे ही उम्‍मीदवार के बारे में भी कोई शर्त नहीं है। कोई भी नागरि‍क उम्‍मीदवार हो सकता है, वह अमीर हो या गरीब हो। अमीर जब लोकतंत्र को चलाएंगे तो शासन कैसा होगा ? प्रशासन का अनुभव कैसा होगा ? लोकतांत्रि‍क हि‍स्‍सेदारी की शक्‍ल क्‍या होगी ? लोकतांत्रि‍क संरचनाओं का भवि‍ष्‍य क्‍या होगा ? इत्‍यादि‍ सवालों पर भारतीय परि‍प्रेक्ष्‍य में गंभीरता से वि‍चार करने की जरूरत है।

हरि‍याणा वि‍धानसभा के लि‍ए वि‍भि‍न्‍न दलों के द्वारा जो प्रत्‍याशी खड़े कि‍ए गए हैं उनमें सबसे ज्‍यादातर करोड़पति‍ कांग्रेस ने खड़े कि‍ए हैं। 'आम आदमी' का नारा लगाने वाली कांग्रेस ने 90 सदस्‍यीय वि‍धानसभा के लि‍ए 70 करोड़पति‍ खड़े कि‍ए हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के वि‍रोध में खड़े दलों ने भी करोड़पति‍ प्रत्‍याशि‍यों को खड़ा कि‍या है। 'नेशनल इलेक्‍शन वाच' नामक संस्‍था ,इसके देश में तकरीबन 1200 स्‍वयंसेवी संगठन सदस्‍य हैं, के द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि‍ मुख्‍य राजनीति‍क दलों ने आधे से ज्‍यादा सीटों पर करोड़पति‍ प्रत्‍याशी खड़े कि‍ए हैं। इनके पास एक करोड से ज्‍यादा की संपत्‍ति‍ है। चुनाव आयोग में उम्‍मीदवारी का पर्चा दाखि‍ल करने वाले उम्‍मीदवारों में से 489 उम्‍मीदवार करोडपति‍ हैं। जि‍न दलों ने करोडपति‍ उम्‍मीदवार खड़े कि‍ए हैं वे हैं कांग्रेस,भाजपा, बसपा, राष्‍ट्रीय लोकदल,समाजवादी पार्टी। कांग्रेस ने 90 में से 72 करोड़पति‍ उम्‍मीदवार खड़े कि‍ए हैं। आंकडे बताते हैं कि‍ कांग्रेस उम्‍मीदवारों की औसत संपत्‍ति‍ है 5.59 करोड रूपये, भारतीय राष्‍ट्रीय लोकदल के उम्‍मीदवारों की औसत संपत्‍ति‍ है 3.42 करोड,हरि‍याणा जनहि‍त पार्टी 3.03 करोड़, भाजपा 2.23 करोड़, बसपा 2.08 करोड रूपये। कांग्रेस ने 80 प्रति‍शत करोड़पति‍ उम्‍मीदवार खड़े कि‍ए हैं।

वि‍गत वि‍धानसभा के 42 सदस्‍य दोबारा चुनाव लड रहे हैं। इनकी संपत्‍ति‍ में वि‍गत पांच सालों में औसतन 388 फीसदी की बढोत्‍तरी हुई है। औसतन 4.8 करोड रूपये की संपत्‍ति‍ अर्जित की है। एक उम्‍मीदवार ने तो वि‍गत पांच सालों में 5,500 प्रति‍शत संपत्‍ति‍ पैदा की है। ‍

तकरीबन 50 करोडपति‍ उम्‍मीदवार ऐसे हैं जि‍नके पास करोडों की संपत्‍ति‍ है लेकि‍न इन्‍कम टैक्‍स का 'पेन' नम्‍बर तक नहीं है। जबकि‍ सभी बडे वि‍त्‍तीय लेन-देन के लि‍ए 'पेन' कार्ड नम्‍बर का होना कानूनन जरूरी है। कांग्रेस ने 72,राष्‍ट्रीय लोकदल 56,भाजपा 41,बसपा 29 और हरि‍याणा जनहि‍त पार्टी ने 44 करोडपति‍ उम्‍मीदवारों को खड़ा कि‍या है। उल्‍लेखनीय है वि‍गत वि‍धानसभा चुनाव में कुल उम्‍मीदवारों में मात्र 19 प्रति‍शत करोडपति‍ उम्‍मीदवार थे,जबकि‍ इसबार 50 फीसद करोडपति‍ उम्‍मीदवार चुनाव लड रहे हैं। इस बार के चुनाव में फरीदाबाद जि‍ले में 45,गुडगांव 37 और हि‍सार जि‍ले में 37 उम्‍मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। हरि‍याणा में 28 उम्‍मीदवारों पर आपराधि‍क मुकदमे चल रहे हैं। जबकि‍ महाराष्‍ट्र में आपराधि‍क पृष्‍ठभूमि‍ के 132 उम्‍मीदवार चुनाव लड रहे हैं। कहने का तात्‍पर्य यह है कि‍ महाराष्‍ट्र में आपराधि‍क पृष्‍ठभूमि‍ के ज्‍यादा उम्‍मीदवार चुनाव लड रहे हैं जबकि‍ हरि‍याणा में करोडपति‍ ज्‍यादा संख्‍या में चुनाव लड रहे हैं। हरि‍याणा में 52.22 प्रति‍शत करोडपति‍,महाराष्‍ट्र में 37.50 प्रति‍शत, अरूणाचल प्रदेश में 28.33 प्रति‍शत करोडपति‍ उम्‍मीदवार चुनाव लड रहे हैं। दूसरी ओर अरूणाचल प्रदेश में एक भी महि‍ला उम्‍मीदवार चुनाव मैदान में नहीं है,जबकि‍ महाराष्‍ट्र में 4 प्रति‍शत,हरि‍याणा में मात्र 12प्रति‍शत औरतें चुनाव मैदान में हैं। इससे यह भी पता चलता है कि‍ हमारे मीडि‍या प्रचार अभि‍यान का कम से कम राजनीति‍क दलों के ऊपर एकदम राजनीति‍क असर नहीं होता। मीडि‍या का जब राजनीति‍क दलों पर असर नहीं होता तो आम जनता पर कि‍तना असर होता होगा, इसका आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। समग्रता में देखें तो मीडि‍या के द्वारा अमीर व्‍यक्‍ति‍ को हमेशा आदर्श पुरूष के रूप में पेश कि‍या जातस है, अपराधी का महि‍मामंडन कि‍या जातस है और औरतों को दोयमदर्जे के नागरि‍क के रूप में रूपायि‍त कि‍या जाता है,ऐसी स्‍थि‍ति‍ में अमीर,अपराधी और पुरूष को चुनावी जंग के मैदान से बेदखल करना संभव ही नहीं है।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इसे कॉरपोरेट लोकतंत्र के स्थान पर कॉरपोरेट गणतंत्र कहना अधिक उचित होगा। यह जनतंत्र तो रहा ही नहीं है।