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6.4.10

कहीं तो चूको चौहान....

                   (उपदेश सक्सेना)
राजों-रजवाड़ों के दौर में उनके दरबार की शान गवैये और चारण-भाट बढाते थे. ये लोग राजाओं की शान में कसीदे पढ़ा करते थे. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने खुद 'राजा' होते हुए भी इससे मिलती जुलती राह पकड़ ली है.वे खुद की प्रशंसा तो नहीं करते मगर अपने एक 'गुण' का सार्वजनिक गान जरूर करने लगे हैं. संगीत की धुन बजते ही पैर थिरकाने वाले कुशल नर्तक की तरह चौहान उन मंचों पर 'बे'काबू होने लगे हैं, जहां कोई गायक अपनी प्रस्तुति दे रहा होता है. ....आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ... गीत गाकर शिवराज वहां मौजूद अपने अफसरों को तो तालियाँ पीटने पर मजबूर ही कर देते हैं( चाहे उनकी इच्छा हो या न हो).
वैसे शिवराज को यह गाने का आइडिया संभवतः अपने कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की गायन कला सामने आने के बाद आया है. 'शिव' का वास 'कैलाश' पर होता है मगर यह कैलाश तो स्वयं कई बार 'शिव' बनने की लालसा पाल चुके हैं. शिवराज के कई विरोधियों को उनके यह गीत गाने पर आपत्ति है, कुछ कहते हैं, आदमी से आदमी के प्यार के अब मायने बदल गए हैं इसलिए उन्हें आदमी की बजाये जनता शब्द का उपयोग करना चाहिए. कई लोग तो यह भी कहने से नहीं चूकते हैं कि, वे भले ही अपनी भावनाओं को जनता तक पहुंचाना चाहते हों, मगर वे मुख्यमंत्री हैं और उनके पास यह 'प्यार' जताने के और भी कई दीगर तरीके हो सकते हैं, बड़े गायक तो उनके मुख्यमंत्री होने के भय से उनके सुर-ताल तक पकड़ना भूल जाते हैं. यहाँ मेरा तात्पर्य चौहान साहब की शैली पर अंगुली उठाना नहीं है, मगर उन्हें कई जगह 'चूको मत चौहान' के मुहावरे से दूरियां बनाना चाहिए. अब यह तो पुराणों में भी लिखा है कि -शिव भोले थे, मगर वे शिव थे और आप शिव'राज' हैं, शिव को ' 'हलाहल' पिलाने वालों की संख्या भी अब कई गुना बढ़ चुकी है.

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