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4.4.10

मेरठ प्रेस क्लब ने पत्रकारों को बताया फालतू




'अमर्यादित' ढंग से चलाये जा रहे मेरठ प्रेस क्लब में पत्रकारों से 'मर्यादा' में रहने के साथ- साथ ही 'फालतू' बैठने पर रोक के तुगलकी आदेश दीवारों पर चस्पा किये गए हैं।
'सचिव प्रेस क्लब के अदेशानुस्र प्रेस क्लब में कोई भी व्यक्ति आकार फलतू न बैठे मर्यादा का ध्यान रखे। -आज्ञा से महासचिव प्रेस क्लब मेरठ'। यह वो आदेश है जिसे मेरठ प्रेस क्लब की दीवारों पर चस्पा किया गया है। ऐसे क्या कारण हैं जिसकी वजह से मेरठ प्रेस क्लब को यह कथित 'कठोर' कदम उठाना पड़ा ।
मेरठ प्रेस क्लब अपनी दो वर्ष की निष्क्रियता को छुपाने के लिए अब 'सच का सामना' करने के लिए तैयार नहीं है। विगत दिनों मेरठ प्रेस क्लब में 'समाचार बंधू' नामक पत्रकार संगठन की एक बैठक हुई जिसमें मेरठ प्रेस क्लब की कुछ खामियों को उजागर किया गया, जिसको कुछ अख़बारों ने प्रमुखता से छापा भी। मेरठ प्रेस क्लब कार्यकारिणी का शायद मानना है की प्रेस क्लब के अन्दर पत्रकारों का आपसी विचार-विमर्श करना 'फालतू' बैठना है और प्रेस क्लब सोसाइटी की खामियों को उजागर करना 'मर्यादा' का उल्लंघन करना है।
पत्रकारों के पास कभी भी 'फालतू' बैठने का समय नहीं होता है। यदि प्रेस क्लब में पत्रकार अपने व्यस्त कार्यक्रम में से थोडा समय निकलकर आकर बैठ जाते हैं 'विचार-विमर्श' कर लेते हैं तो 'फालतू' बैठना कहना कहाँ तक उचित है? आखिर प्रेस क्लब की स्थापना किस लिए की गयी है? कैरम बोर्ड क्यों रखा गया था वहां? बेडमिन्टन कोर्ट क्यों बनाया गया था वहां? शायद 'फालतू समय का सदुपयोग करने के लिए।
जहाँ तक 'मर्यादा' का सवाल है एसा कोई घटनाक्रम नहीं हुआ है जिसमें किसी सदस्य ने अन्य किसी सदस्य से 'अमर्यादित' ढंग से वयवहार किया हो। वो अलग बात है की कार्यकारिणी की मीटिंग में पदाधिकारी आपस में 'मर्यादा' तक पर रखकर 'मुखातिब' हुए तथा किसी पदाधिकारी ने साधारण सदस्य से कई लोगों के मध्य अपनी 'मर्यादा' खोकर 'अमर्यादित' आचरण किया। एसी स्थिथि में प्रेस क्लब के पदाधिकारी ठन्डे दिमाग से सोचकर 'मर्यादा' की परिभाषा का 'आंकलन' कर सकते हैं।
एक पहलु यह भी!
बताया जाता है १५ लोगों की कार्यकारिणी में २-२ सदस्यों को जिम्मेदारी दी गयी थी की प्रत्येक दिवस निर्धारित समय प्रेस क्लब में अवश्य दें। इस तरह से एक सदस्य का प्रेस क्लब में बैठने का नंबर एक सप्ताह के बाद आता था। अति उत्साह में कुछ दिन यह क्रम अवश्य चला लेकिन उसके बाद हो गया 'फेल' । शायद 'कामकाजी' कार्यकारिणी सदस्यों के पास 'फालतू' समय नहीं होता है?
अपवाद स्वरुप वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री रवि कुमार विश्नोई (संपादक दैनिक केसर खुशबू ) अवश्य ही लगभग प्रतिदिन प्रेस क्लब में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।

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