Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

16.8.10

पीपली लाइव के संग


आजादी की ६३वी सालगिरह,सावन की बरसात,दोस्त के साथ, चले गए पीपली लाइव देखने। सालों बाद किसी फिल्म को थियेटर में देखने का मन बना था। बनना ही था। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने इसकी इतनी बल्ले बल्ले की कि हमें ऐसा लगा अगर पीपली को नहीं देखा तो हमारा जीना ही बेकार हो जायेगा। लोग ताने मार मार के हमें जिन्दा ही मार देंगे। अंत देखकर यही सोचा कि क्यों आ गये इसे देखने। सब कुछ ठीक था। मीडिया जो असल में करता है वह तो फिल्म में जानदार शानदार और दमदार तरीके से दिखाया गया है। लेकिन आखिर में मीडिया को क्या हो जाता है। वह ऐसा तो नहीं है कि उसे पता ही ना लगे कि मरने वाला नत्था नहीं लोकल पत्रकार है। पोस्ट मार्टम के दौरान भी पहचान नहीं हुई कि मरने वाला नत्था नहीं है। जबकि दोनों के पहनावे, बदन की बनावट में काफी अंतर था। इससे भी कमाल तो ये कि "नत्था" की लाश को ख़बरों में दिखाने से पहले ही मीडिया छूमंतर हो गया। ऐसा होता नहीं है। मुझे तो लगता है यह फिल्म किसान की स्थिति पर नहीं मीडिया के प्रति दिल में छिपी कोई भड़ास निकालने के लिए है। इसमें कोई शक नहीं कि लोकल लेवल की किसी बात का बतंगड़ इसी प्रकार बनता है। मगर ये नहीं होता कि किसी को पता ही ना लगे कि मरने वाला नत्था था या कोई ओर। जिस तमन्ना से फिल्म देखने और दिखाने ले गए थे वह पूरी नहीं हुई। लेकिन फिर भी दो घंटे तक दर्शक इस उम्मीद के साथ थियेटर में बैठा रहता है कि कुछ होगा और फिल्म ख़त्म हो जाती है। समस्या के साथ समाधान भी होता हो अच्छा होता।

3 comments:

मुसाफिर said...

फिल्म का अंत तो नही सुधार सकता .. कृपया इस पोस्ट की अंतिम पंक्ति पर ध्यान दे.
"समस्या " का " समाधान " नही "निराकरण" होता है .

Pawan Kumar Sharma said...

iss film ko dekhne k liye wife k saath gaya tha, magar film me bhari be-hisaab gaaliyon k kaaran maza kirkira ho gaya, ye film waalon ko kya ho gaya hai, kya matherc..d or g..d ghisana behan...d jaisi galion ko dekhne k liye sesor board nahin hai, saaf dikhta hai ki film me gaalion ko dikhane k liye aamir khaan ne sensor board ko sensor karne k liye mota paisa kharach kiya hai,aisi filmo se bachon par bura asar to padta hi hai. aisi filmo par rak lagayi jaani chahiye

ye film ek kisaan ki kahani kam or midia waalon k prati aamir khaan ki bhadas jyada dikhayi deti hai. or haan film k ant me media walon ko bewkoof dikhaya gaya hai jo ki local reporter or nattha ki dead body nahin pehchaan paayi.

अजित त्रिपाठी said...

bilkul sahi kaha aapne!
kisan ki sthiti ki bajay is film men media ko zarur nanga kiya gaya hai...