इन्ना अनज़लना लै-लतुल क़द्र। कुर्आन शरीफ के तीसवें पारे की सत्तानवीं सूरत है। शबे क़द्र की रात अल्लाह तआला फरमाता है कि "है कोई अमान पाने वाला, है कोई निजात पाने वाला, है कोई मेरा चाहने वाला" अल्लाह तआला फरिश्तों का मार्फत यह संदेश पूरी दुनिया को पहुँचाता है। शबे बारात की रात इबादत की रात है। लोग अल्लाह की बारगाह में अपने गुनाहों की तौबा करते हैं और अल्लाह से अपनी जानी-अनजानी ग़लतियों की म'आफी माँगते हैं। हदीस शरीफ है कि 'अरब में बनी कल्ब नाम का एक क़बीला था। यह कबीला बकरियाँ पालता था। आज की रात इबादत करने वाले और अपने गुनाहों से तौबा करने वाले को अल्लाह तआला बकरियों का बालों के बराबर बख्शिश देगा।' अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की बारगाह में शबे बारात की रात हर इंसान की ऑडिट रिपोर्ट तैयार होती है। जिसमें उनके भले-बुरे कामों का लेखा-जोखा होता है। आज की रात यह तय होता है कि इस साल किस-किसका अल्लाह के घर से बुलावा आयेगा और किस-किसको ज़िन्दगी मिलनी है। यानि मौत के ख़ौफ के साथ लोग अल्लाह की बारगाह में अपनी निजात की अर्ज़ी लगाते हैं। तभी तो मुहावरे में अक्सर कहा जाता है कि आज की रात शबे क़द्र की रात है।
दंगे की जद में आये किसी भी शहर की हर रात शबे क़द्र जैसी होती है। अचानक मोबाइल की घन्टी बजती है कि पूरा शहर जल रहा है। मारकाट मची है। लोगों को घरों से निकाल-निकालकर मारा-काटा जा रहा है। हिन्दु और मुसलमान अपने-अपने अपमान का बदला ले रहे हैं। हालात यह हैं कि शायद अब शहर में कोई भी ज़िन्दा न बचे। पूरी फिज़ा दो हिस्सों में बँट चुकी है। रात की काली गहराई में कहीं हर-हर महादेव तो कहीं नारा ए तकबीर। ऐसा लगता था कि मानों हर चीज़ दो भागों में बंट गयी। फोन की घन्टी भी हिन्दु और मुसलमान हो गयी थीं। ऐसा लगता था कि हिन्दु की रात अलग और मुसलमान की रात अलग है। ख्वाब बंट चुके थे। रिश्ते बंट चुके थे। जज्वात बंट चुके थे। मोहब्बतें बंट चुकी थीं। ग़र्ज़ यह कि रोटी-चावल, आटा-दाल, सब्जी़-फल सभी को दो हिस्सों में बाँट दिया गया था। यहाँ तक कि चुन्ना मियाँ के मन्दिर में चुन्ना मियाँ अलग और मन्दिर अलग हो गया था। अजीब क़ैफियत के साथ ज़ेहन पर जबरदस्त डर हावी हो रहा था। बुज़ुर्गों के मुँह से बेसाख्ता निकल पड़ा कि बँटवारे के वक्त भी ऐसे ही हालात थे। लग रहा था कि आज की रात जिन्ना साहब की ख़ताओं का सिला हिन्दुस्तान में रहने वाले हर मुसलमान को मिलने वाला है और गुजरात की सज़ा हिन्दुओं को। उन हाथों में भी नंगी तलवारें थीं जो हाथ हमेशा कौमी एकता का झन्डा उठाते हैं।
हर कोई आमादा था बस हिन्दु और मुसलमान हो जाने पर। इस बात से बेख़बर कि आने वाली नस्लों को क्या मुँह दिखाया जाएगा। चारों तरफ से शोर और धार्मिक नारों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं आ रही थी। मस्जिदों से ऐलान होने लगे और मन्दिरों में घन्टे बजने लगे। धर्म के तथाकथित ठेकेदार लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे थे। कोई कुछ नहीं जानता था, क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, कौन करवा रहा है। शायद पहली बार मैंने अपने पड़ोसी बच्चे को बिना दूध के सोते देखा। दूध और पानी भी शायद हिन्दु और मुसलमान हो गये थे। गाय और भैंसे भी दो खेमों में बँट गयी थीं। हिन्दु जानवर अलग हो गये और मुसलिम जानवर अलग। मुसलिम मोहल्ले में रहने वाले बन्दर मुसलिम और हिन्दु मोहल्ले में रहने वाले बन्दर भी हिन्दु हो गये थे। चारों तरफ से ख़बरों का सिलसिला जारी था। बात-बात पर जायज़ा लिया जा रहा था। तालिब चचा अचानक बोले आज रात कुछ संघ वाले पड़ोस के वैद्य जी के घर में छिपकर बैठ गये हैं, आज रात मोहल्ले में हमला होना है। कहीं गुजरात न बन जाए। सभी जागते रहो, अल्लाह से सलामती की दुआ माँगते रहो। बड़े-बड़े फर्जी़ सैक्युलर अपनी कैंचुली बदल चुके थे। जो मोहल्ला सबसे ज्यादा संगीनों के साये में था, वहीं आगज़नी और लूट सबसे ज्यादा हुई। दहशत लोगों के चेहरे पर साफ दिख रही थी। शायद मौत का ख़ौफ या फिर कुछ और। ऐ खु़दा शबे बारात की रात उन लोगों को म'आफ करना, जिन लोगों ने शहर की रातों को शबे क़द्र की रात बनाया।
या अल्लाह म'आफ करने देना उन लोगों को, जो अपने घरों से पेट्रोल दे रहे थे शहर जलाने को। या अल्लाह म'आफ करने देना फहीम को जो माथे पर तिलक लगाकर हनीफ की दुकान काट रहा था। या अल्लाह म'आफ करने देना राजीव को, जो जालीदार टोपी लगाकर सुनील की दुकान लूट रहा था। या अल्लाह म'आफ करने देना उन ठेकेदारों को जो एयरकंडीशन्ड कमरों में बैठकर क़ौम और देश का भविष्य तय करते हैं। या अल्लाह म'आफ करने देना उन दोगले नेताओं को, जिन्होंने शहर के मुँह पर कालिख पोत दी। या अल्लाह म'आफ करने देना उन लोगों को, जिन्होंने जज्बाती नारों के सिवा कुछ न दिया, कुछ न किया। या रब्बुल आलमीन तू आलम का रब है, सब पर रहम करने वाला है, म'आफ कर दे उन लोगों को भी, जिन्होंने घरों के चूल्हे उजाड़ दिये। या अल्लाह ये दुआ है मेरी कि फिर कभी ऐसी रातें न देखनी पड़े कि जिसमें ख्वाब भी हिन्दु और मुसलमान हो जाएं।
1.8.10
शबे क़द्र जैसी वो रातें।
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3 comments:
जिसमें ख्वाब भी हिन्दु और मुसलमान हो जाएं।
very thoughtful
अगर इज़ाज़त हो तो मै अपने पोर्टल आपकी आवाज़.कांम पर इसे डाल दूँ।
सहयोग हेतु धन्यवाद.
एस.एम,मतलूब -मुख्य संपादक
ji matloob bhai zaroor.main is ko apni khushkismati samjhunga.
regards---
dr.s.e.huda
bareilly
09837357723
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