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22.8.10

मीडिया...... हाँ बड़े धोखे है इस राह मैं....

पत्रिकारिता के फील्ड मैं आने वाले नौजवानों को दूर से बेसक यह दुनिया लुभाए लेकिन इस दुनिया का यह कडवा सच है...
जी हाँ बड़े धोखे है इस राह मैं....
पत्रकारिता की डगर आसान नहीं रह गई है। कारण साफ है कि ये अब मिशन नहीं रह गया, बल्कि पूंजीवादी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। जो जड़ें पहले समाज कि मजबुतियाँ हुआ करती थीं, वो जड़ें अब व्यवसायी धरानों मैं बंद कर रह गयी हैंआज पत्रकारिता के छेत्र मै आने वाले अधिकतर नवोदित को इस लाइन कि दुस्वरियों से दो चार होना पड़ रहा हैलाखों रूपये कोर्श करने मै लगाने के बाद, नौकरी मिलती है तो ००० रूपये कि उसके लिए भी जुगाड़ नाम कि वैशाखियों का सहारा लेना पड़ता हैकोर्स करने के बाद बड़े-बड़े चैनलों तथा अखबारों में इंटर्न के रूप में सफर शुरू तो हो जाता है, लेकिन एक महीने कि उस इटरनशिप की मियाद खत्म होने के बाद सभी अपना रिज्यूम लेकर अखबारों और चैनलों के चक्कर काटने शुरूं हो जाते हैएक महीना बीता, दो महीने बीते, तीन बीत गया, पर कहीं से कुछ हो ही नहीं पाता हैफिर शुरू होता है पत्रकारिता को छोड़ कोई और राह तलाशने का दौर। रोजगार मिलने पर कोई पीआर की ओर रुख किया। कोई ने एमबीए या अन्य प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भविष्य बनाना बेहतर समझता है
शायद मैंने अभी कुछ ही समय इस फील्ड मै गुजरा है तो आप लोग मेरी बातों का विरोध करें, लेकिन जब तक पत्रकारिता में भाई-भतीजावाद औरएप्रोच, रिफरेंश जुगाड़ जैसे शब्द रहेंगे, पत्रकारिता के फील्ड मै आने के बाद इससे मोहभंग होने के शिकार पत्रकारों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी, क्योंकि आजकल बिना जुगाड़ के पत्रकारिता में शुरुआत भी मुश्किल है। आप मुझसे बहुत बड़े हो सकते हैं और आप ये भी जरुर कहेंगे कि अगर आपके अंदर प्रतिभा होगी तो लोग उसकी कद्र जरूर करेंगे, लेकिन को भी एक मौके कि तलाश होती है और मौका तो तभी मिलेगा, जब एक शुरुआत मिले।
जब शुरुआत ही मुश्किल हो जाती है तो प्रतिभा का आंकलन कैसे होगा आप अच्छी तरह से बता सकते हैं. यही वजह है कि पत्रकारिता के फील्ड मै कदम रखने के बाद आज युवा अपने कदम वापस खींच रहा है.
ये बहुत बड़ा सच है कि अधिकतर युवा ग्लैमर की चाह में इस ओर निकल तो पड़ते हैं, लेकिन जब संघर्ष की बात आती है तो पसीने छूट जाते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को ग्लैमर मानकर आने वाले यहां घुसने की भूल करें तो ही बेहतर है। भले ही पत्रकारिता को ग्लैमर की हवा लग गई हो, लेकिन इसकी राह पहले आसान थी और अब है। जब से पूंजी ने पत्रकारिता में सेंध मारी है, तब से हालत और भी खराब हो गई है।


मुझे आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।


आपका

ANUJ SHARMA



2 comments:

दीपक बाबा said...

सही बात है .... बाबू जी धीरे चलना..........

डॉ. मोनिका शर्मा said...

sahi aur sateek baat kahi hai aapne....