मैंने लिखा था - भारत में आज केन्द्रीय मजदूर संगठनों के आह्वान पर राष्ट्रीय हड़ताल चल रही है। मेरे शहर कोलकाता और समूचे प्रांत में इस हड़ताल ने आम हड़ताल की शक्ल ले ली है। यह मजदूर संगठनों की मंहगाई के विरोध की गई जायज हड़ताल है। आपके शहर और प्रांत में यह हड़ताल कैसी रही कृपया बताएं ?
Subhash Rai- 08 सितंबर 2010 को 04:32 बजे
Jagdishwar jee, Agra mandal men bhee hadtal ka vyaapak asar raha. sadakon par aavajaahee kam rahee, sarkaree daftar soone rahe.
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Niranjan ShrotriyaSeptember 8, 2010 at 6:41am
जगदीश्वर भाई! दुखद है की मध्य प्रदेश में अब ट्रेड यूनियन्स का वह प्रभाव अब नहीं रहा! केवल बॅंक्स में छुटपुट असर दिखा! कुल मिलाकर हड़ताल निष्प्रभावी ही रही
Kishan Kaljayee - wrote:
"Delhi me bhi mujhe band ka koee khas asar nahi dikha.Lekin yah hadtal jaruri mudde par thi."
Divik Ramesh commented -
"दिल्ली महानगर ही नहीं देश की राजधानी हॆ । फिर भी काफ़ी अचर रहा हॆ । मुझे १९७३-७४ के दिन याद आ गये । महगाई के विरोध में ही मॆने भी धारा १४४ तोड़ी थी ऒर भूपेश गुप्त जॆसे बड़े नेताओं के साथ जेल (तिहाड़ जेल) में भी रहा था । शायद अध्यापक होने के नाते नॊकरी नहीं गई ।"
Ashish Tripathi - yahan banaras men to kuch ka pata hi nahin chal raha hai...
Asrar Khan -
"Delhi samet NCR mein hadtal kafee had tak kamyaab rahi ..Trade unions ne jamkar akta dikhai jise dekhkar aissa laga ki vartmaan sarkar se log keval asantust hi nahin valki sarkar se logon ka vishvaas uth gaya hai... mujhe lagta hai ki hamara desh bahut bade asantosh ki taraf badh raha hai."
ent you a message.
Jitendra Srivastava- 08 सितंबर 2010 को 08:52 बजे
dilli men vasa hee hai jaisa aksar hota hai.
Abdul wrote:
"yes com this is Indian Historic movment, long live All india UTUC ..........."
and Ajay Kamath like this.
Tapan Dasgupta -All Central Trade Union called an all India industrial stike agaist price rise, contract system, rights of the unorganised workers, privatisation etc., which got tremendous support and has been a great sucess. In Vadodara thousands of workers took out a rally from Mandvi - a historic central place of Vadodara to Collector Office and submitted a memorundum to him.
message.
Shri Krishna Sharma- 07 September 2010 at 17:34
दिल्ली के मजदूरों की स्थिति दूसरे राज्यों के मजदूरों से ज्यादा खराब है। कभी किसी बहाने तो कभी किसी वजह से , उन्हें एक जगह पर रहने तक
नहीं दिया जाता है इसलिए वे हक की लडाई तक में पीछे रह जाते हैं। एक तो कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी, ऊपर से घनी बरसात ने मजदूरों को बिखेर कर रखा है। इस वजह से यहाँ उतना प्रभाव दिखाई नहीं दिया जितना आप वहाँ बता रहे हैं।
Pankaj Chaturvedi- 08 September 2010 at 09:42
delhi is the capital and i saw little bit effect on auto rickshaw, except life was normal
Anupam Ojha - "Mumbai me atyant safal rahi ye hadataal !"
you a message.
Vineet KumarSeptember 8, 2010 at 10:51am
सॉरी सर,अभी आपका मैसेज देख पाया। दिन में फर्स्ट हाफ में थोड़ा असर दिखा लेकिन शाम के वक्त सीपी में तो सारी दूकानें खुली दिखी। काफी-चहल पहल भी। मयूर विहार में रहता हूं,वहां कोई असर नहीं दिखा।
ent you a message.
Meethesh Nirmohi08 सितंबर 2010 को 10:38 बजे
samanya rukh hee raha.
Sudha Tiwari - "चंडीगढ़ में बंद का असर मिला- जुला रहा.बैंक वगैरह बंद थे,स्कूल सारे खुले रहे और सड़क पर निजी वाहन ही चल रहे थे,बस- ऑटो वालो ने बंद का साथ पूरी तरह से दिया जबकि टैक्सी वालों ने आंशिक रूप से ."
Satyanand Nirupam -
dilli mein kuchh pata nahin chal paya, jahan tak main dekh paya...
Ajay Saklani - जगदीश्वर जी, मैं दिल्ली में रहता हूँ और यहाँ हड़ताल के लिए कोई जगह नहीं है| जंतर मंतर में जो लोग आन्दोलन करते हैं वो वहां आन्दोलनकारियों की भीड़ में खो जाते हैं| रोजाना वहां जा पाना नहीं हो पता है और समाचार वाले तो सर्कार और पूंजीपतियों के गुलाम हैं| तो असर कैसा है उसे जान पाना थोड़ा मुश्किल है| गरीबों को इस आन्दोलन के बारे में या तो पता नहीं है क्योंकि वो अपने जीने के लिए दो पैसे कमाने में व्यस्त हैं और अमीर इसे तमाशा समझते हैं| कौन जी रहा है और कौन मर रहा है इस से अमीरों को कुछ लेना देना नहीं है| उन्हें तो बस हराम की कमाई पसंद है|
कुछ आन्दोलन ऐसे भी अहिं जिन्हें समझ पाना बहुत मुश्किल है| उन आंदोलनों में बैठे ज़्यादातर लोग यह भी नहीं जानते की वो यहाँ क्यों बैठे हैं क्योंकि उन्हें राजनीती के तहत किसी राजनितिक दल के स्वार्थ के लिए उपयोग किया जा रहा है|
कुछ आन्दोलन ऐसे भी अहिं जिन्हें समझ पाना बहुत मुश्किल है| उन आंदोलनों में बैठे ज़्यादातर लोग यह भी नहीं जानते की वो यहाँ क्यों बैठे हैं क्योंकि उन्हें राजनीती के तहत किसी राजनितिक दल के स्वार्थ के लिए उपयोग किया जा रहा है|
1 comment:
Mujduron kee upeksha behad dukhprad hai... aaj hadtaal jarur hote rahte hai lekin sab mili-bhagat hokar majduron ke saath dhokha karne se baaj nahi aati hai...
N jaane kab sachhe aur imandaar log aage badhkar mujduron kee aawaj buland kar unko unka hak dilayengen
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