* संतोष सारंग
गाँधी पूर्ण आध्यात्मिक व ईश्वरीय व्यक्ति थे, जिन्हें समझना एक व्यक्ति के लिए उतना ही कठिन है जितना परमेश्वर के तत्वज्ञान को जान पाना। जो मूढ़ मानूष आजतक ख़ुद को, अपने अंतर्मन को, अपनी अंतरात्मा को, जीवन व प्रकृति के गूढ़ रहस्यों से अपरिचित रह अधकचरे ज्ञान के अहम् में मस्त है, भला उसे ईश्वर सत्ता के मर्म की समझ कहाँ होगी? सुकरात, ईसा मसीह की तरह गांधी को भी यह भौतिक जगत नहीं पचा सका, क्योंकि ये महामानव जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, ऊंच-नीच, वाद, क्षेत्र में बंटे इस जगत को भी हमेशा प्रकृति के मूल तत्व की कसौटी पर कसकर देखा। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि में भेद न कर गांधी ने आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा पर खुद को विराजमान किया। और यही जीवन का सार तत्व भी है, लेकिन रंग, वर्ण, धर्म में बांटकर समाज में जहर फैलाने वाले लोगों को गांधी नहीं सुहाए। प्राण त्यागने के समय भी गांधी की जुबान से 'हे राम' निकला। इससे समझा जा सकता है कि गांधी का जीवन परम ज्ञान व ब्रह्म शब्द से कितना पिरोया हुआ था। 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम...' प्रार्थना व गीता का संसर्ग उनके अन्दर दिव्य शक्ति पैदा किया था। आज के युवा कही-सुनाई बातों को लेकर गांधी को बुरा-भला कहते हैं। बुरा-भला वही कहते हैं जो मूढ़ हैं, जो अधकचरे ज्ञान से भरे हैं, जो जीवन जीने की कला आज तक नहीं सीख पाए। हिंदुत्व, इस्लामियत, ईसाइयत, यहूदियत आदि धर्मों का झंडा ढोने वाला कभी दिव्य पुरूष हो ही नहीं सकता, क्योंकि हरेक धर्म का सार है-सत्य का धारण करना। और सत्य सिर्फ़ वही है जो प्रकृति से उत्पन्न है। कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या इंसानों को बांटने का संदेश नहीं देता है। चालाक इंसान यानि धर्मावलम्बी अपनी मठाधियत बरकरार रखने की लिए धर्म को अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर समाज को बांटने का काम किया है। युवाओं, पहले गांधी के जीवन व कर्म का अध्ययन करो। ख़ुद तो अपने तक सिमटे रहे। जनकल्याण के लिए एक तिनका भी खर्च नहीं किया आजतक और चल दिए आलोचक बनने। अरे, गांधी तो दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत को आजाद करवाने एवं अस्पृश्यता के खिलाफ लंबी लडाई का शंखनाद किया। अपना पूरा जीवन देश के लिए झोंक दिया। भारतवासियों ! अपने गांधी को तुम गाली देते रहो, दुनिया तो पूज रही है न। क्योंकि तुम अधकचरे हो और दुनिया बुद्धिमान। दुनिया हीरे को पहचानती है। तभी तो संयुक्त राष्ट्र संघ गांधी जयंती को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' घोषित किया। गांधी का सिद्धांत 'सत्य व अहिंसा' ही अन्तिम सत्य है, तुम्हारा सिद्धांत चाहे हिंदुत्व का हो या इस्लामियत का मिट जाने वाला है। हिंदुत्व के झंडाबरदारों, मुझे यह तो बताओ की फिर अछूत-पिछडे-दलित-हरिजन क्या हिंदू नहीं है? यदि है तो कहाँ लगाते हो उसे गले। न तुम्हारे संगठन में, न तुम्हारी पार्टी में और न तुम्हारे किसी समारोहों में दीखते हैं ये लोग। यह ढोंग असली हिंदू समझ गया है। सच्चे मुसलमान, हिंदू या सिख, ईसाई के लिए तो सारा संसार उसका अपना है। 'वसुधैव कुटुम्बकम' ही उसका नारा है। गाँधी भी तो इसी बुनियाद पर खड़े थे।
1 comment:
Gandhi gave new word Harijan
good article
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