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3.9.10

अमरीका का पुनर्पाठ- अमरीकी नव उदार फासीवाद का पतन अपने दुस्साहस के कारण होगा-राउल वालदेस विवो







इस मसले की तीन बुनियादी परिस्थितियां इस प्रकार हैं :

इराक के खिलाफ हमले का कारण उसका पेट्रोलियम है जो कि उनके अपने पेट्रोलियम से दस गुने से अधिक सस्ता और प्रचुर है। संयुक्त राज्य के एकाधिकारियों का यह पेट्रोलियम चाहिए। साथ ही वे यूरोप और जापान में अपने प्रतिद्वंद्वियों को इससे दूर रखना चाहते हैं।


इसी क्षेत्र में (उदाहरण के लिए बंगलादेश में) भारी मात्रा में प्राकृतिक गैस उपलब्ध है। 21वीं शताब्दी पेट्रोलियम के मुकाबले कम नुकसानदायक तथा सस्ती गैस की शताब्दी होगी। यह माइक्रोचिप्स और बायोटेक्नोलॉजी से जुड़े ज्ञान की शताब्दी होगी।
इस सबके पीछे अमरीका की स्थायी नीति काम कर रही है जिसके तहत वह भू-रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र (फिलिस्तीन सहित) पर जबर्दस्ती बर्चस्व कायम करना चाहता है ताकि जनसंख्या और क्षेत्र की दृष्टि से बड़े देशों : चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान तथा ऊर्जा स्रोत वाले देशों जैसे कि सउदी अरेबिया को डराया-धमकाया जा सके।
हम निम्नलिखित मुद्दों की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं :
संभवत: हमने समाज वैज्ञानिक तत्व पर पूरा विचार नहीं किया है। पहले विश्वयुध्द के बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में मारियाटेगुई पहले ही बता चुके हैं। यूरोप में विषाक्त मानसिक वातावरण पैदा हो गया था जिसमें से फासीवाद का जन्म हुआ।
उग्र दक्षिणपंथियों और मियामी में उनके फासीवादी माफिया की चालबाजी और जादू से बेटे जार्ज बुश की सरकार सत्ता में आई। उसके सलाहकारों के समाज विज्ञान में दुस्साहस शामिल है।
लेनिन ने पूरी ताकत के साथ क्रांतिकारियों में अत्यधिक व्यक्तिपरकता की आलोचना की। ये व्यक्तिवादी लोग द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, वास्तविक और वस्तुपरक स्थितियों को भूल गए और सोचने लगे कि कोई छोटा सा एक समूह ऐतिहासिक परिवर्तन कर सकता है और वह भी अंधाधुंध हिंसा का सहारा लेकर।
पूंजीवाद आज भी इसलिए मौजूद है क्योंकि पूरी दुनिया में अवाम ने इसके स्थान पर अपनी सत्ता कायम करने में देरी कर दी। इस पूंजीवाद के बेकाबू होने का एक संकेत यह है कि उसके हृदय में फिर से प्रतिक्रियावादी किस्म की हलचलें पैदा होने लगी हैं। इनके
हामीदारों को नकारवादी नहीं कहा जा सकता। ये उसके उलट हैं। 19वीं शताब्दी के अंत में रूसी पोपुलिस्ट अनास्था सिखा रहे थे जबकि ये खुद को धार्मिक कट्टरपंथियों, रूढ़िवादियों के रूप में पेश कर रहे हैं। सबसे अधिक विख्यात मामला ओसामा बिन लादेन का है। उसने अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक और क्रांतिकारी ताकतों के खिलाफ अमरीका का साथ दिया था, उसकी मदद से सत्ता में आया। बाद में उसने 11 सितंबर 2001 को वहशियाना हमले कराए। इससे रूढ़िवादी तथा उतनी ही कट्टर लेकिन ईसाई बुश बेटे की ऐंग्लो-सेक्शन सरकार को पूरी दुनिया में सैनिक तानाशाही के लिए मुहिम चलाने का अच्छा बहाना मिल गया। इस बात को कोई भी नहीं मान सकता कि अमरीका के राष्ट्रपति दयालुतापूर्ण चरम-रूढ़िवाद के पक्षधर हैं।
संक्षेप में दुस्साहसवाद वाम और दक्षिण दोनों बिलकुल अलग राजनीतिक और सामाजिक ताकतों से पैदा हो सकती है। तो इसका क्या अर्थ निकाला
जाए?
यह व्यक्तिपरकता का अति प्रयोग है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक निर्णय निर्णय करने वाले व्यक्ति पर छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार उसके द्वारा देखा गया सत्य उसी तक सीमित रह जाता है। हीगेल और उसके बाद प्रोटागोरस का कथन है कि मनुष्य सभी चीजों का मापदंड है। इसकी दो व्याख्याएं हैं। एक, प्रतिक्रियावादी, आदर्शवादी जो ज्ञान को व्यक्ति के ज्ञान तक सीमित कर देती है। दूसरी क्रांतिकारी द्वंद्वात्मक और भौतिकवादी व्याख्या है क्योंकि वह मानव जाति को इतिहास के केंद्र में रखती है।
दुस्साहसवादी व्यक्तिपरकता से खुद को जोड़कर अमरीकी पूंजीपतियों के प्रभुत्वशाली हिस्से ने ऐंग्लो-अमरीकी व्यावहारिकता को छोड़ दिया है। यह व्यावहारिकता तर्कसंगत प्रत्यक्षवाद पर आधारित थी। इस प्रत्यक्षवाद ने ही काफी लंबे समय तक बुध्दिवादियों के विरोध में उनका आचरण तय किया। उन्होंने बुध्दिवादियों के इस दावे को दूषित बताया कि तर्क के अनुसार हमारा आत्म वास्तविकता की प्रतिकृति है।
अमरीका का वर्तमान शासक व्यावहारिकता का ही शत्रु नहीं है। वह बुध्दिवाद का भी शत्रु है क्योंकि वह मानता है कि वास्तविकता को उसकी इच्छा के हिसाब से मोड़ा जा सकता है।
यह स्थिति मार्क्सवाद-लेनिनवाद से मेल नहीं खाती। उसके अनुसार दर्शन का प्रमुख लक्ष्य संसार की व्याख्या करना नहीं बल्कि इतिहास के वस्तुपरक प्रयाण के अनुरूप उसका क्रांतिकारी कायाकल्प है। मार्क्सवादी-लेनिनवादी हीगेल के इस विचार को ग्रहण करते हैं कि बाध्दिक प्रक्रिया के रूप में इतिहास मानव स्वतंत्रता अर्थात कम स्वतंत्रता से अधिक स्वतंत्रता की ओर जाने का रिकार्ड है। अवाम की भूमिका की बात कर वे इस विचार को वास्तविक अर्थ देते हैं। हीगेल इससे नफरत करता था।
इसके विपरीत फासीवादियों की कोशिश रहती है इस असंगत संसार में कुछ भी न बदले जिससे कि वे बॉस बने रहें, लोगों को आजादी न हो। 250 धनी लोगों की आय 2.5
अरब लोगों की आय के बराबर बनी रहे और जिससे मानव जाति के लुप्त हो जाने का खतरा बना रहे।
फासीवाद की प्रबल अनिवार्य मनोवैज्ञानिक विशेषता अर्थात उसका दुस्साहस ही हमेशा उसके पतन का कारण बनता है। लेकिन यह विचार सही नहीं है कि उसका पतन अपने आप होगा। सोवियत संघ के विभिन्न नेता लेनिन के मार्ग से भटक गए। उनके द्वारा की गई गलतियों के कारण मानवता ने 20वीं शताब्दी गंवा दी। फासीवाद के पहले मॉडल की पराजय से जो महान अवसर मिला था उसे उन्होंने गंवा दिया और मानव तर्क की सार्वभौमिक जीत होने से रह गई। सवाल 21वीं शताब्दी को गंवा देने का नहीं है। यहां तो हर दिन के नुकसान से धरती पर मानवता के अस्तित्व को खतरा बढ़ता जा रहा है।
फासीवाद बुर्जुआ लोकतंत्र के विपरीत है, हालांकि दोनों का ताल्लुक पूंजीवाद की अधिरचना (सुपर स्ट्रक्चर) से है।
इनमें अंतर कई रूपों में देखा जा सकता है जिसे कम महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। बुर्जुआ लोकतंत्र पूंजी के संचय और विस्तारित पुनरुत्पादन के आर्थिक तंत्र के भीतर उत्पादन के बुनियादी साधनों के मालिकों के वर्चस्व को कायम रखता है। फासीवाद गैर आर्थिक बलप्रयोग का अधिक आश्रय लेता है। बुर्जुआ लोकतंत्र सर्वसम्मति पर आधारित होता है लेकिन बीच-बीच में हिंसा (प्रदर्शनों और हड़तालों आदि का दमन) का सहारा लेता है। फासीवाद हिंसा का निरंतर प्रयोग या उसके प्रयोग का खतरा है।
     बुर्जुआ लोकतंत्र नस्लवाद या विदेशी द्वेष का उन्मूलन तो नहीं करता लेकिन उसके खिलाफ कदम उठा सकता है। फासीवाद बहुत ऊंचे दर्जे का नस्लवाद और विदेशी द्वेष है।
बुर्जुआ लोकतंत्र युध्द कराता है लेकिन उनके बीच में शांति भी कायम करता है। सोवियत संघ रूपी गढ़ के कारण यूरोप की तीन पीढ़ियों ने युध्द नहीं देखा। सोवियत संघ और यूरोप में उसके द्वारा निर्मित समाजवादी शिविर के खत्म हो जाने के बाद यूगोस्लाविया के टूटने के साथ युध्द शुरू हो गया। फासीवाद निरंतर और स्थायी युध्द है। शांति केवल युध्द विराम होती है।
चेग्वेरा द्वारा दी गई जबर्दस्त परिभाषा बार-बार चरितार्थ होती है : जब तक अवाम का डर नहीं होता तब तक बुर्जुआ लोकतंत्र का सहारा लेता है। जब उसे उनका डर लगने लगता है तो वह फासीवाद की ओर चला जाता है।
बुर्जुआ लोकतंत्र को बरकरार रखने वाले शासन बहुत सी बातों का ध्यान रखते हैं। फासीवादी की ओर झुके शासन स्वभाव से ही दुस्साहसी होते हैं। यह दुस्साहस उनके अक्खड़पन, दूसरों के प्रति उनकी नफरत, अपनी वहशी ताकत के ज्यादा अनुमान तथा दूसरों की क्षमता के कम अनुमान से पैदा होता है।
     दुस्साहस और फासीवाद के ताल्लुक का यदि विश्लेषण किया जाए तो यही निष्कर्ष निकलता है कि अपने वहशीपन के पोषण के लिए दोनों झूठ और मसीहा के मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं। पहले हिटलर ने जर्मनी के लिए जरूरी 'जगह' तथा 'अयोग्यों' को खत्म करने और 'सुपरमैन' उत्पन्न करने वाली 'नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था' के बारे में झूठ बोला।
    आज (ब्लेयर, अजनार और बेरलुस्कोनी जो ब्रिटिश, स्पेनिश और इतालवी अवाम से कट गए हैं के समर्थन से) बुश स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकार कायम करने की अपनी दिव्य नियति तथा इराक और अन्य देशों में मौजूद आम विनाश के हथियारों के बारे में झूठ बोल रहा है। ऐसे हथियार कहीं नहीं थे।
फासीवादी अवधारणा के अंतर्गत वित्तीय कुलीन तंत्र के सबसे अधिक प्रतिक्रियावादी तबके की सत्ता की रक्षा के लिए हर चीज में गैर आर्थिक हिंसा का सहारा लिया जाता है। यह अवधारणा किसी राष्ट्र, प्रजाति या धर्म के प्रतिनिधि के रूप में खुद को विशुध्द बताने वाले लोगों की दूसरे राष्ट्रों, प्रजातियों या धर्मों के प्रति नफरत पर आधारित है। यह सभ्यताओं के टकराव का मसला है। जोसे मारती ने इस बारे में कहा है कि यह उपनिवेशवादियों का विश्वासघाती बहाना है।
दुस्साहस विदेशी-द्वेष, नस्लवाद या धार्मिक असहिष्णुता से खुराक लेता है तथा उसमें कमांड और आदेश देने की उन्मादपूर्ण ललक होती है। उसे यह विश्वास होता है कि दूसरों पर आसानी से वर्चस्व कायम किया जा सकता है।
समकालीन इतिहास से कुछ उदाहरण
मूल फासीवादियों का दुस्साहस इस विचारधारा से जुड़ी तीन शक्तियोंनाजी जर्मनी, मुसोलिनी के इटली और सैन्यवादी जापानके आचरण में प्रकट हुआ। जर्मनी ने ग्रेट ब्रिटेन पर हमला करने से पूर्व सोवियत संघ पर हमला किया जहां उसे रोक लिया गया। इटली एबिसिनिया (इथियोपिया) को जीतना चाहता था लेकिन उसके पास आवश्यक सेना नहीं थी। जापान ने ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका के एशियाई उपनिवेशों पर ध्यान केंद्रित कर दिया जिसकी वजह से वह स्तालिनग्राद की निर्णायक लड़ाई में जर्मनी की सहायता के लिए नहीं आ सका। तीन फासीवादी ताकतों की यह निर्णायक पराजय सिध्द हुई।
      व्यावहारिकता का परिचय देते हुए अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने सोवियत नेता स्तालिन के साथ संधि की। इनके गंठजोड़ ने जर्मनी, इटली और जापान के फासीवादी गुट को पराजित किया। फासीवाद के विनाश में सोवियत अवाम की प्रमुख भूमिका रही। उसने अपने एक बटा पांच सपूत इसमें बलि चढ़ा दिए। यह संख्या अमरीका और ग्रेट ब्रिटेन की संख्या से कहीं अधिक थी। फासीवाद की दुस्साहसी प्रवृत्ति की उपेक्षा करके यदि स्तालिन हिटलर के साथ युध्द न करने का करार करने की भूल नहीं करते तो जान-माल का इतना नुकसान नहीं होता।
      दोहरा तत्व : सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में समाजवादी के मजबूत होने, तीसरी दुनिया के देशों की स्वतंत्रता प्रक्रिया तथा चीन, वियतनाम और क्यूबा में वास्तविक सामाजिक क्रांतियों के कारण अमरीका को कलह की रणनीति पर आना पड़ा। इसके भीतर वे लोग भी थे जो समाजवाद के विध्वंस तथा उपनिवेशवाद और नव उपनिवेशवाद से मुक्त देशों की स्वतंत्रता की रणनीति के पक्षधर थे। समाजवाद के सोवियत मॉडल तथा सोवियत संघ सहित इसके शासनों के समाप्त हो जाने के बाद ये दोनों रणनीतियां जारी रहीं। इन्हें अंग्रेजी में 'कंटेनमेंट (घेराबंदी)' और 'रोल बैक (पलट देना)' कहा जाता है। रीगन, पिता बुश और क्लिंटन ने पहली रणनीति अपनाई। लेकिन बेटा बुश उस हर चीज को नष्ट करने की रणनीति अपना रहा है जो स्वतंत्र रास्ता अख्तियार कर रही है (फ्रांस और जर्मनी सहित) या सामाजिक प्रगति की ओर जा रही है।
     अमरीकी केंद्र (विश्व अर्थव्यवस्था का एक तिहाई, विश्व व्यापार का 18 प्रतिशत, शेष दुनिया से बड़ा सेना बजट, डालर का सार्वभौमिक मुद्रा बनना, जिस पर यूरो के आने से प्रश्न चिह्न लग गया है, आदि) वाली एक ध्रुवीय दुनिया तो स्थापित हो गई है लेकिन इस बात को लेकर सतर्कता भी है कि दुनिया का फिर बहु धु्रवीय होना तय है जिसका एक धु्रव चीन होगा और साथ ही तीसरी दुनिया के देश विशेषकर क्यूबाई क्रांति के पीछे पड़े हमारे अमरीका के देश फिर से ऐतिहासिक पहल करेंगे। इसकी वजह से नव फासीवाद की समस्याएं तथा इसका जन विरोधी मनोविज्ञान जगजाहिर हो रहा है। सिएटल तथा अन्य कई शहरों में पूंजीवाद का जबर्दस्त विरोध हुआ जिसके केंद्र में अमरीकी अवाम का अत्यधिक सतर्क तबका था। इसकी वजह से अति दक्षिणपंथी अमरीकी तबके में हर तरीके से सत्ता लेने की हड़बड़ी पैदा हो गई है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि अमरीकी लोग विश्व क्रांति के लिए आरक्षी सेना में शामिल हो सकते हैं। लूट तथा गुलाम बनाने के लिए अपनी ही सरकार द्वारा चलाए जा रहे युध्दों को रोकने के संघर्ष में शामिल हो सकते हैं। बेटे बुश के नेतृत्व में जो दुस्साहसवादी शासन स्थापित हुआ है उसने अमरीकी साम्राज्यवाद के पक्षधर लोगों की भाषा ही बदल दी है। इस भाषा में अधिक ढिठाई आ रही है।
9 अक्टूबर 2001 को वॉल स्ट्रीट जरनल ने लिखा : 'आतंकवाद का जवाब? उपनिवेशवाद।' अमरीकी बैंकरों के महत्वपूर्ण स्वर के रूप में फाइनेंसियल टाइम्स ने 10 अक्टूबर 2001 को लिखा : 'हमें साम्राज्यवाद की जरूरत है।' इसके 19 दिन बाद वाशिंगटन पोस्ट ने दृढ़ता के साथ कहा : 'हमें संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व बैंक जैसी उपनिवेशवाद के बाद की संस्थाओं को नया साम्राज्यवादी आवेग देना चाहिए।' 17 जुलाई 2003 को अमरीकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने कहा, 'आज अंतर्राष्ट्रीय नीति के तहत इससे खतरनाक सिध्दांत नहीं हो सकता कि अमरीकी शक्ति के खिलाफ प्रतिस्पर्धी शक्तियां हों।'
    लेबर पार्टी के अधिकृत प्रवक्ता रॉबर्ट कॉपर ने लंदन ऑब्जर्वर में और भी साफ तौर पर कहा, 'आज उपनिवेशवाद की पहले से ज्यादा जरूरत है। विश्व में व्यवस्था पैदा करने
तथा उसे संगठित करने के लिए हमें नव साम्राज्यवाद की जरूरत है।' दुस्साहसवादी भावना डब्ल्यू.टी.ओ. के दोनों टावरों के गिरने के बाद अचानक नहीं आई। वह शीत युध्द के शुरू होने से परिपक्व हो रही थी। इसी भावना के अनुरूप अमरीकी संयुक्त सेना कमान के प्रमुख हेनरी शेल्टन ने कहा, 'अमरीका को निरंकुश पूर्ण आधिपत्य कायम करना चाहिए।' शांति, स्वतंत्रता और प्रगति के लिए दुनिया के देशों के लोगों की इच्छा तथा अमरीकी अवाम की लोकतांत्रिक उपलब्धियोंजो कि देश में फासीवादी दृष्टिकोण को लागू करने की दिशा में जबर्दस्त बाधा हैको चुनौती देते हुए सी.आई.ए. के प्रचालन निदेशक क्रोंगर ने हाल ही में कहा : 'आज एक ही नियम मौजूद है और वह यह कि कोई नियम नहीं है।'
नव उदार फासीवाद के पुराने समर्थक तथा कोंडोलीजा राइस के साथी बिगनीव ब्रजेजिंस्की ने पूरी साफगाई के साथ लिखा : 'अमरीका का लक्ष्य अपने दासों को अधीन बनाए रखना, जनता की आज्ञापरायणता और सुरक्षा की गारंटी तथा असभ्यों को एकजुट होने से रोक होना चाहिए।'1
अमरीकी दुस्साहस की सर्वाधिक स्पष्ट मौजूदा मिसालें हैंइराक के खिलाफ युध्द और एफ.टी.टी.ए.।
संयुक्त राष्ट्र संघ से नफरत करने वाले तथा फासीवादी दुस्साहस के पैरोकार सी.आई.ए., पेंटागन और व्हाइट हाउस के दबदबे के कारण ही अमरीकी सरकार ने यह सोचा था कि इराक की बहुसंख्यक शिया जनसंख्या फूलों के साथ अमरीकी सैनिकों का स्वागत करेगी क्योंकि उन्होंने सुन्नियों का दमन सहा है। लेकिन शिया यह देखकर पूरा विरोध कर रहे हैं कि बुश ईरान जैसा शिया शासन यहां कायम नहीं कर सकता। साथ ही कुर्दों के इस्तेमाल से तुर्की के साथ अनसुलझी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
अमरीकी दमन कर रहे हैं। बच्चों को मारते समय वे धर्म का भेद नहीं करते। इसी कारण विरोध की भावना बढ़ रही है और वह देशभक्ति का रूप ले रही है। इसमें शिया लोग शामिल हो रहे होंगे। यदि ऐसा नहीं होता तो बगदाद तथा दूसरे शहरों, जहां वे बहुसंख्या में हैं, में विरोध नहीं होता। जिन देशों को खतरा है वे भी विरोध के लिए तैयार हैं। स्वतंत्र, प्रभुत्ता संपन्न समाजवादी क्यूबा, फिदेल, राउल, पार्टी, यू.जे.सी., उसका जन संगठन और उसकी सशस्त्र सेनाएं पूरी जनता के युध्द के लिए तैयार हैं। प्लाया गिरोन की तरह विजय हमारी होगी।
एफ.टी.टी.ए. भी दुस्साहस का चिह्न है जो बुश की हार का कारण बनेगा। कमांडर-इन-चीफ ने कहा है, 'यदि अमरीकी साम्राज्यवाद हमारे अमरीका को निगलता है तो वह उसे पचा नहीं पाएगा।' जैसा कि वेनेजुएला से प्रकट हो रहा है और ब्राजील, अजर्ेंटीना, बोलिविया तथा अन्य बहुत से देशों में गंभीर परिवर्तनों से साफ हो रहा है, दुस्साहस का समय खत्म हो गया है। लेकिन अमरीका के अवाम को इस छलावे से मुक्त होना होगा तथा समकालीन इतिहास के सबसे बड़े दुस्साहसी के भाग्य का फैसला करना होगा।


डॉ.  राउल वालदेस विवो,



कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ क्यूबा के हायर पार्टी स्कूल के रेक्टर)


जनवरी 2004
( नवउदारवाद का फासीवादी चेहरा,फिदेल कास्त्रो,अनुवाद,रामकिशन गुप्ता,ग्रंथ शिल्पी,नई दिल्ली-110092,फोन-22025140,65179059)









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