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23.9.10

जातिवाद या विकाश


 जातिवाद या विकाश
बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है. बिहार में इस बार होने वाला चुनाव देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाला होगा. इस बार के चुनाव में यह देखना है कि यहाँ के चुनाव में विकाश और जातीय समीकरण में से कौन जीतता है. हलाकि अभी देश की राजनीति में जातिवाद ने अपनी जड़े काफी गहरी कर ली है. बिहार में छह चरणों में होने वाले चुनाव के पहले से ही राजनीति में जातिवाद की धमक साफ- साफ सुनने को मिल रही है. सभी दलों के नेता अलग-अलग जाति के मतदाताओ को रिझाने में लगे है. कोई अगड़ी जाति के मतदाताओ को रिझा रहा है तो कोई अति पिछड़ा और मुस्लिमो को.
हमारे देश की राजनीति के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि राष्ट्रवाद और समाजवाद कि बात करने वाले राजनीतिक दल भी जातिवाद को बढ़ावा दे रहे है. विश्व में प्रजातंत्र की पहली किरण इसी भारत देश के छोटे से वैशाली जनपद से फैली थी. आज हमारा देश जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति की धुरी बनकर रह गयी है.  देश में सबसे पहले अंग्रेजो ने सन 1857 के ग़दर के बाद जातिवाद और मजहब के नाम पर लोगो को बाटने का कम किया था. चंद गद्दारों के कारन अंग्रेज इस भारत विरोधी षड़यंत्र में काफी हद तक सफल हुए और लम्बे अरसे तक हम पर राज किया. सन 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन भी इसी आधार पर हुआ था. अंग्रेजो से तो हमारा मुल्क आजाद जरुर हो गया लेकिन अंग्रेज हमे जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद के दलदल में फसा कर चले गये.
आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने जातिवादी जनगणना का विरोध किया था. इसके बाद पूर्व प्रधामंत्री विपी सिंह ने मंडल कमीशन को लागु कर जातिवादी राजनीति को हवा दी. उस वक़्त कई युवको ने इसके कारन अपनी जान गवांई थी. उस वक़्त लगी आग की लपटे आज भी भारतीय राजनीति को प्रभावित कर रही है.
बिहार में छह चरणों में चुनाव होने है. एक दो दिनों  में सभी दलों के प्रत्यासियो की घोषणा भी हो जाएगी. लेकिन इस बार के चुनाव में भी विकाश के मुद्दे पर जातीय समीकरण हावी दिख रहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया थी कि इस बार का चुनावी मुद्दा बिहार का विकाश और विनाश होगा लेकिन हालिया घटनाक्रम को देखते हुए ऐसा लगता है की राजनीति वे भी अछूते नहीं है.
बीजेपी- जेडीयूं  गठबंधन, राजद - लोजपा और कांग्रेस सहित सभी दल के लोग जाति विशेष के मतदाताओ को रिझाने में लगे है. सभी दलों के लोग अगड़ी और मुसलमान मतदाताओ को अपने पक्ष में करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे है. अभी यहाँ की चुनावी राजनीति में दल- बदल का खेल जोड़-शोर से चल रहा है. ये दल बदल जातीय समीकरण और टिकट को लेकर हो रहे है.
सवाल यह उठता है कि आखिर हमे जातीय राजनीति से कब मुक्ति मिलेगी. कब हम जात- पात से ऊपर उठकर विकाश के मुद्दे पर वोट करेंगे. इसके लिए हम सब को जागरूक होना पड़ेगा. जिस दिन हमारे देश की राजनीति में जातिवाद पर विकाश हावी हो जायेगा उस दिन हमारा देश पूरी दुनिया का सिरमौर्य कहलायेगा.जातिवाद या विकाश

2 comments:

माधव( Madhav) said...

agrred

अरुणेश मिश्र said...

अब तो योजनाओँ एवं राजनीति का ढाँचा ही जातिवादी है ।