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20.9.10

कल्कि पुराण : मेरा पुनर्जन्म


कहते है सतयुग में , मै ही हिरणाकश्यप था । 
मेरे कठोरतम शासन से , कम्पित सारा जग था ।
जन्म लिया प्रह्लाद ने , फिर मेरे ही अंश से ।
मुझे मारने के खातिर , याचना किया नरसिंह से ।
मर कर जब मै पहुंचा ऊपर , छीना सिंहासन इन्द्र का ।
घबड़ाकर देवो ने मुझसे , अनुरोध किया फिर जन्म का ।
तब तक सतयुग बीत चुका था , पृथ्वी पर चल रहा था त्रेता ।
बिखर चुके थे राक्षस सारे , छिन गया  रसातल था उनका । 
इस बार मै जन्मा ब्रह्मण था , पर प्रवित्ति वही राक्षसी  थी ।
मेरे कठोर तप के आगे , फिर झुक गयी दैवीय शक्ति थी ।
रावण था मेरा नाम मगर , बन गया दशानन मै बल से ।
छीन लिया सोने की लंका , अपने पराक्रम के बल से ।

लगा मिटाने फिर मै जग से , भोग विलास में डूबे प्राणी ।
हाहाकार मचा फिर जग में , लगे भागने कायर प्राणी ।
जन्म लिया फिर राम ने , और सौदा किया मेरी मृत्यु का ।
मृत्युलोक के बदले मुझको , सिंहासन दिया फिर इन्द्र का ।
मगर कुटिल था इन्द्र बहुत , उबा दिया मुझे स्वर्ग से ।
छोड़ा मैंने भोग विलास , लौटा करने धरती पर राज ।
फिर मेरे लौटने के पहले , लौट चुके थे राम भी ।
धरती पर आ गया था द्वापर , बीत चुका था त्रेता भी ।
इस बार हुआ मेरा जन्म जहाँ , वो यदुवंशो का घर था ।
भूल कर अपना बाहु-बल , वो पशु बल पर निर्भर था ।
युवा हुवा तो मैंने मांगी , उत्तराधिकार में अपनी सत्ता ।
मिली नही जब बातों से , छीन ली मैंने बल से सत्ता ।

मैंने कठोरतम नियमो को , फिर से लागू किये सभी ।
यज्ञ भाग के छिनने से , व्याकुल हो गए देव सभी  ।
पाकर प्रेरणा मेरी ही , तब जन्म लिया फिर कृष्ण ने ।
मेरी कृपा से ही सारी , लीला किया सब कृष्ण ने ।
फिर से आया वो दिन जब , मुझको वापस स्वर्ग मिला ।
आराम मिला मुझको थोड़ा , जग को गीता ग्रन्थ मिला ।

द्वापर बीता जब धरती पर , शासन कलयुग का आया ।
कलयुग ने पाखंड रचाकर , मानव को फिर से भटकाया ।
जाति पांति में बांटा समाज , भ्रष्टाचार को पनपाया ।
धर्म के नाम पर मची लूट , बहु ईश्वर का युग आया ।
देख जगत की हालत को , स्वर्ग में मै फिर रह ना पाया ।
लेकर जन्म पुन: धरा पर , लो आप के मध्य मै वापस आया ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

6 comments:

माधव( Madhav) said...

सही लगा

Akhilesh pal blog said...

sundar

vandana gupta said...

सुन्दर प्रस्तुति।

Khare A said...

kaki avtaar ki kahani /

achha laga padhna, lekin mujhe lagta he, ki ye kalyug he, bhagwaan ko kafi soch samjah ke aana hoga, treta me to ek ravan tha, lekin is kalyug me bahgwaan ji giti bhul gaye honge, soch rahe hongeki kitne avtar lun yar, so just calcualting ,...

बाल भवन जबलपुर said...

वाह विवेक जी सत्य वचन

Kalki said...

Ghabrane ki zarurat nahin, main hoon kalki avatar, aur maine bhi janam liya hai tumhe kaliyug mein swarg ka anubhav karane...